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कबीर के पास चले गए कबीर..!

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पंकज पटेरिया
बहुत मामूली कद काठी, सफेद काले बालो  की जुगलबंदी, साधारण वेशभूषा, कमीज-पजामा लेकिन चेहरे पर सौम्य, शांति, आत्मीय भावमयता जो बरबस ध्यान खींच लेती। अंदाज निहायत आडंबरहीन, खरा-खरा, पर प्यार भीगा। उन्हें कोई कबीर कहता तो कोई साहिब। जीविका जरिया कर पेंटिग, बढ़ईगिरी, ऐन सुबह थैली अपने औजार की पुरानी सी सायकिल पर टांगकर काम पर निकल जाते थे। साहिब या कबीर। घर पर कुछ मरम्मत का काम किसी ने बताया। मैंने संपर्क किया। वे राजी हो गये। आमतौर पूछा आप कितना पैसा लेंग। सरल पवित्र दूध जैसी हंसी उनके होठों से झर उठी और बोले जो साहिब की मौज होगी। दो तीन बार पूछा लेकिन उत्तर वही। चलिये ठीक है कहकर हमने काम शुरु करवा लियाद्ध वह हमें साहिब कहता हम उन्हें साहिब पुकारते। काम शुरू हो गया था। साहिब अपनी धुन में महात्मा कबीर जी का कोई न कोई भजन मन ही मन मगन होकर गुनगुनाते रहते। कभी कोई साखी भी मन ही मन हंसते, मस्त-मस्त, कभी-कभी आंखें भी हम हो जाती थी और दोहराते साहब तेरी सहिबी सब घट रही समाय जैयों मेहंदी के पात में। लाली लक्खी न जाए यानी कबीर जी कहते, हर जीव में ईश्वर का निवास है। जैसे मेहंदी के पत्तों में लालिमा रहती है। इसी तरह जो देखे तो के है नहीं कह ए तो देखे नहीं, सुन्हे, सो समझा, ये नहीं रसना दृग शरबन का ही। अर्थात जिसने ईश्वर को देखा वह बखान नहीं कर सकता। इसलिए चुप रहता जो कहता, मैंने देखा वह असत्य बोलते हैं। जिसने परमात्मा को देख लिया उसे खुद की खबर कहां रहती। कान जो सुनते उसे जीभ आंखें थोड़ी समझा सकते। यह सिलसिला सात दिन चलता रहा। पत्रकारिता की भागमभाग भरी दिनचर्या में। जब समय मिलता मैं साहिब के पास बैठ जाता। वे वैसे ही वसूले-रंदा की ताल पर गुनगुनाते रहते। एक दिन आया और उनका काम पूरा हो गया। हिसाब को कहा साहिब ने वही निर्दोष हंसी के साथ कहा को साहिब की मौज हो। अंत हमने अंदाज उनके काम के पैसे दिए। वे चलने को हुए। हमने कहा आते रहिए कबीर साहिब अच्छा लगा। उसी अंदाज में बोले जी साहिब की मौज बहुत दिन हो गए। वो दिखे नहीं तो उस मोहल्ले में उनकी खोज खबर लेने पहुंचा। काम धाम हुलिया बताया, लोग बोले वो तो साहिब साहिब बोलता था, वो? मैंने हामी भरी तो उत्तर मिला बाबू जी अच्छा मनुस था, मर गया। न सर्दी, ना बुखार। बस सोया तो उठा नहीं। गरीब आदमी था मंै सुनकर स्तब्ध रह गया। भीतर लगा कोई कह रहा है, साहिब था या कबीर, था बहुत अमीर। नर्मदांचल का यह कबीर, कबीर के पास चला गया।

Pankaj Pateriya

 

 

 

 

– पंकज पटेरिया, वरिष्ठ पत्रकार, कवि
होशंगाबाद 9893903003

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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