इटारसी। संसार में कलयुग के प्रारंभ के साथ ही श्रीमद् भागवत कथा का पदार्पण हुआ, ताकि इसमेें रचित प्रभु परमात्मा के आध्यात्मिक एवं सांसारिक शिक्षाप्रद संदेश को हम सब आत्मसात कर कलयुग के प्रतिकूल प्रभाव से बच सकें। उक्त उद्गार कथाकार वाचक पं. जगदीश पांडेय ने ग्राम भट्टी में आयोजित श्रीमद् भागवत कथा के प्रथम दिन व्यक्त किये।
ग्राम भट्टी व नया यार्ड के मध्य डीजल लोको शेड के पास श्रीमद् भागवत कथा समारोह के प्रथम दिन कथा का महत्व बताते हुए श्री पांडेय ने कहा की भागवत महापुराण सभी धर्म ग्रंथों में सबसे बड़ा है, जिसमें सृष्टि की रचना से लेकर परमात्मा श्री हरि विष्णु के सतयुग से लेकर द्वापरयुग तक के सभी अवतारों व उनके महत्व का ज्ञानपूर्ण वर्णन किया है। उन्होंने कलयुग के नकारात्मक महत्व स अवगत कराते हुए कहा कि कलयुग ने संसार में अपने लिए कुछ स्थान परमात्मा से मांगे तो उसे वह स्थान दिए जहां असत्य अनाचार व अनैतिक कार्य होते हों। लेकिन उसने एक अच्छा स्थान भी मांगा तो ईश्वर ने उसे स्वर्ण स्थान दे दिया। यानी जहां सोना रखा हो वहां भी कलयुग का वास होगा। यह वरदान पाते ही कलियुग संसार में आया और सबसे पहले राजा परीक्षित के सिर पर सजे स्वर्ण मुकुट में समाहित हो गया। कलियुग के दुष्प्रभाव से राजा परीक्षित ने अनैतिक कार्य करते हुए तपस्या में लीन एक ऋषि के गले में मृत सर्प डाल दिया। यह देख समीप ऋषि के पुत्र श्रंगी ऋषि ने राजा परीक्षित को सात दिन में मृत्य का श्राप दे दिया। इस श्राप के प्रभाव से बचने राजा परिक्षित ने अपने गुरूजनों से मंत्रणा की तो सभी गुरूओं ने कहा कि ऋषि के श्राप से तो आप बच नहीं सकते अत: महर्षि वेद व्यास द्वारा रचित भागवत पुराण का श्रवण किसी कुशल कथा वाचक से करें। श्री सुकदेव मुनि ने गंगा जी के पावन तट पर राजा परीक्षित को पूरे सात दिनों तक परमात्मा की यह पावन कथा श्रवण करायी जिसे आत्मासात करने के पश्चात राजा परीक्षित की मृत्यु हुयी और उनकी दिवंगत आत्मा परमात्मा में विलीन हो गयी और इसी के साथ कलयुग का कार्यकाल भी संसार में आरंभ हुआ। कथा के प्रारंभ में एक शोभायात्रा गायत्री शिव हनुमान मंदिर से निकाली जो कथा स्थल पहुंचकर संपन्न हुई। मुख्य यजवान रामेश्वर प्रसाद वर्मा सहित समिति सदस्यों ने श्री पाण्डेय का स्वागत किया।