इटारसी।आज गांधी नगर क्षेत्र के व्यापारी और नागरिक भगवान की बारात में जमकर नाचे और बाराती भी बने उनमें प्रमुख रूप से जितेन्द्र अग्रवाल, मनोज यादव, दीपक जैन, गौहरपाल नामदेव, सुनील दुबे, अमित मौर्य, दीप अरोरा, मनीष पटैल आदि शामिल हुए। इस अवसर पर जोरदार आतिशबाजी की गई। गन्ने के मंडप में भगवान सालिगराम और तुलसी का विवाह दुर्गा नवग्रह मंदिर के पुजारी पं. सत्येन्द्र पांडेय एवं पं. पीयूष पांडेय ने संपन्न कराया।
मंदिर समिति के अध्यक्ष प्रमोद पगारे , विरेन्द्र पगारे, शेखर पगारे, पारूल पगारे, श्रीमति कीर्ति पगारे, श्रीमति उषा पगारे ने बारात की अगवानी की सभी बारातियों को मिष्ठान खिलाया पुष्पवर्षा की गई। भगवान सालिगराम (विष्णु) का रूप कुमारी पावनी अग्रवाल एवं तुलसी (वृन्दा) का रूप कुमारी माही पटैल ने धारण किया। कन्या पक्ष की ओर से कन्यादान के लिए श्रीमति सोनिया पटैल एवं विनोद पटैल ने विधि विधान से कन्यादान किया एवं सालिगराम (विष्णु) भगवान की ओर से जितेन्द्र अग्रवाल और शीतल अग्रवाल मौजूद थे। प्रतिवर्ष दुर्गा नवग्रह मंदिर समिति की ओर से देवउठनी ग्यारस पर भगवान सालिगराम और तुलसी का विवाह कराया जाता है।
क्या है तुलसी विवाह
देवउठनी एकादशी के दिन तुलसी विवाह कराया जाता है और ऐसी मान्यता है कि यदि किसी परिवार मे बेटी नहीं है और वह कन्यादान करते है तो उनको कन्यादान का पुण्य प्राप्त होता है। देवउठनी ग्यारस से ही मांगलिक कार्यक्रम शुरू हो जाते है भगवान सालिगराम और तुलसी के विवाह जिसके बारे में यह कथा प्रचलित है। जलंधर नाम का एक पराक्रमी असुर था और उसका वृंदा नाम की कन्या से विवाह हुआ था वृंदा भगवान विष्णु की परम भक्त और पतिव्रता थी। इसी कारण जलंधर अजेय हो गया। अपने अजेय होने पर जलंधर को अभिमान हो गया ओर वह स्वर्ग की कन्याओं को परेषान करने लगा तब दुखी होकर सभी देवता भगवान विष्णु की शरण में गए और जलंधर के आंतक को समाप्त करने की प्रार्थना की।
भगवान विष्णु ने अपनी माया से जलंधर का रूप धारण कर लिया और छल से वंृदा के पतिव्रता धर्म को नष्ट कर दिया। जिसके कारण जलंधर की शक्ति छिन्न हो गई और वह युद्ध में मारा गया।
जब वृन्दा को भगवान विष्णु के छल का पता चला तो उसने भगवान विष्णु को पत्थर का बन जाने का शाप दे दिया। देवताओ की प्रार्थना पर वृन्दा ने अपना शाप वापस ले लिया लेकिन भगवान विष्णु वृन्दा के साथ हुए छल के कारण लज्जित थे। अतः वृन्दा के शाप को जीवित रखने के लिए उन्होंने एक रूप पत्थर के रूप में प्रकट किया जो सालिगराम कहलाया। भगवान विष्णु को शाप वापस लेने के बाद वृन्दा जलंधन के साथ सती हो गई वृन्दा की राख से तुलसी का पौधा निकला। वृन्दा की मर्यादा और पवित्रता को बनाए रखने के लिए देवताओं ने भगवान विष्णु के सालिगराम रूप का विवाह तुलसी से कराया।
इसी घटना को याद रखने के लिए प्रतिवर्ष कार्तिक शुक्ल की एकादषी को यानि देवउठनी ग्यारस के दिन तुलसी का विवाह सालिगराम के साथ कराया जाता है।