लेखक से संवाद :
– विनोद कुशवाहा :
इन दिनों ” राजपाल एंड संस ” द्वारा ‘ मेरे लेखक : मेरे सवाल ‘ के अंतर्गत बेहद सार्थक बातचीत हो रही है। इसमें मृदुला गर्ग, नरेन्द्र कोहली, राजेश जोशी, मृणाल पांडे आदि ख्यातिनाम लेखक शिरकत कर चुके हैं। इस चर्चा में इटारसी से मुझे शामिल किया जाता रहा है। *साहित्य अकादमी पुरस्कार* प्राप्त कवि राजेश जोशी ( Rajesh Joshi) से हुई बातचीत में भी मेरे सवाल सम्मिलित किये गए। उल्लेखनीय है कि *राजपाल एंड संस* ने मुझे ” टॉप फेन” के रूप में मान्यता भी दी है। सो मेरे सवालों को तवज्जो मिलना स्वभाविक भी है। खैर। इस चर्चा का पूर्ण विवरण तो यहां देना संभव नहीं है।
‘ नर्मदांचल ‘ के पाठकों की ” बहुरंग ” स्तम्भ में रुचि को देखते हुए उपरोक्त कार्यक्रम में हुई महत्वपूर्ण बातचीत का सारांश जरूर प्रस्तुत किया जा रहा है । ‘मेरे लेखक : मेरे सवाल’ में ” साहित्य अकादमी पुरस्कार ” प्राप्त कवि एवं लेखक राजेश जोशी से हुई चर्चा की शुरुआत् करते हुए कार्यक्रम के संचालक युवा साहित्यकार पल्लव ने पाठकों की ओर से श्री जोशी से प्रश्न किया कि ‘ वर्तमान समय में कवि के सामने महत्वपूर्ण चुनौती क्या है? ‘ इसके उत्तर में उन्होंने कहा – ‘चुनौती यह है कि वह समाज के दवाब, उदासियों, निराशाओं के बावजूद भी आज की स्थिति में भी कविता लिख सके। ‘पल्लव का अगला सवाल इससे भी ज्यादा गम्भीर था । उन्होंने सवाल किया कि- ‘ इस वैश्विक महामारी में हमें किसका सामना करना है ? महामारी का या सांप्रदायिकता का? ‘ राजेश जोशी ने इस सवाल का सीधा सा जवाब दिया- ‘महामारी और साम्प्रदायिकता की कोई तुलना नहीं की जा सकती क्योंकि महामारी से लड़ने के लिये वैक्सीन रहता है । सांप्रदायिकता का कोई मतलब नहीं ये नेताओं द्वारा फैलाई जाती है। हां इस संकट के बीच रचनाकार बेहतर सृजन कर सकता है।’ एक पाठक ने जब उनसे पूछा कि ‘आप साहित्यिक पत्रिकाओं से क्या अपेक्षा रखते हैं? ‘ तो उन्होंने बेहद सहजता से उत्तर दिया -‘ पत्रिका एक मंच है। वह अपने समय काल से रूबरू होती है। किसी भी लेखक को ये गलतफहमी नहीं होना चाहिये कि वह हवा से उतरा है। ‘जब श्री जोशी से ये प्रश्न किया गया कि – कालजयी कविता किसे कहते हैं ? आप के पसंदीदा कवि कौन है ? ‘ इस पर उनका उत्तर थ – ‘ कालजयी कविता के लिये कोई निश्चित तत्व नहीं होता। निराला को मैं सबसे बड़ा कवि मानता हूं।’ आजकल मंचीय कविता को लेकर तरह-तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। पल्लव ने जब इस विषय पर पाठकों की तरफ से उनकी राय जाननी चाही तो उन्होंने बहुत ही सार्थक टिप्पणी करते हुए कहा – ‘ मंचीय कविता की कोई पहुंच नहीं होती। ये एक भ्रम है । मंच पर केवल जुमलेबाजी रह गई है। दो दिन बाद कोइ नहीं बता सकता कि किसने क्या पढ़ा। सार्थक साहित्य हमेशा दूर तक जाता है। मल्टी चैनल किसी काम के नहीं रह गए हैं । दूरदर्शन ने जरूर पहल की है । छोटे मंचों से कविता पाठ की परंपरा शुरू हुई है।
‘ पल्लव के ये पूछने पर कि ‘ कविता और गद्य में बुनियादी अंतर क्या है ? ‘श्री जोशी ने जवाब दिया -‘ अब विधाओं के पारंपरिक ढांचे टूट गए हैं। कविता की लय है तो गद्य की भी एक लय है। ‘ जब मैंने राजेश जोशी से प्रश्न किया कि – ‘ कुछ समय पहले कतिपय साहित्यकारों ने उन्हें दिये गए सम्मान और पुरस्कार लौटा दिए थे। इस पर आप क्या कहेंगे ? क्या ये उचित था ? ‘ ज्ञातव्य है कि श्री जोशी ने भी उन्हें मिला *साहित्य अकादमी पुरस्कार* वापस कर दिया था। इस प्रश्न के उत्तर में उन्होंने बड़ी संजीदगी से उत्तर दिया कि – ‘ ये कोई सामान्य बात नहीं थी । सरकार को इससे झटका लगा। इसका असर बिहार के चुनाव परिणामों पर भी देखने को मिला । नीतीश कुमार और शरद यादव ने तो इस बात को ये कहते हुए स्वीकार भी किया कि – ” लेखकों द्वारा किये गये प्रोटेस्ट का हमारी जीत में बहुत बड़ा योगदान है। ” वैसे भी लेखक किसी नेता की तुलना में ज्यादा विश्वसनीय होते हैं । कलबुर्गी की हत्या पर सरकार की चुप्पी के विरोध में लेखकों ने ये सम्मान और पुरस्कार लौटाए थे । मगर ये कोई पहली घटना नहीं थी । जलियांवाला बाग की घटना के विरोध में रवींद्रनाथ टैगौर ने भी तो उन्हें मिली ‘ नाईट हुड ‘ की उपाधि लौटाई थी। सो कुछ लेखकों की हत्या का इतना असर तो होना ही था । ‘ राजपाल एंड संस , दिल्ली द्वारा पल्लव के कुशल संचालन में ‘ मेरे लेखक : मेरे सवाल ‘ के अंतर्गत ” साहित्य अकादमी पुरस्कार ” प्राप्त कवि राजेश जोशी से हुई बातचीत बेहद सार्थक और सफल रही।
– विनोद कुशवाहा ( Vinod Kushwaha)
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