– विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha) :
जीतू सोनी , किशोर वाधवानी के बाद अब प्यारे मियां पुलिस के शिकंजे में आया है। ‘दबंग दुनिया’ का प्रधान संपादक किशोर वाधवानी तो राज्य स्तरीय अधिमान्यता प्राप्त पत्रकार था। जनसंपर्क विभाग की कार्यप्रणाली का आलम देखिए जो सही मायने में अधिमान्यता की योग्यता रखते हैं उन्हें तहसील स्तरीय अधिमान्यता भी नहीं मिलती और इधर किशोर वाधवानी जैसे राज्य स्तरीय अधिमान्यता पा जाते हैं ।
प्रदेश में ऐसे कितने ही सुविधाभोगी पत्रकार हैं जिनकी चाल, चरित्र और चेहरे पर आसानी से उंगली उठाई जा सकती है। अफसोस की बात है कि लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ कहे जाने वाले पत्रकारिता के चौथे स्तम्भ को ऐसे अपराधिक तत्व खोखला किये दे रहे हैं क्योंकि पत्रकार बनने के लिए न तो पहले कोई स्थापित मापदंड थे और न ही अब हैं। कोई भी ऐरा – गैरा इधर – उधर से जुगाड़ कर पत्रकार बन जाता है। ऐसे पत्रकार इतनी भी योग्यता नहीं रखते कि दो लाइन का समाचार बना लें । उनका काम मात्र पोस्टमेन का रह गया है। आप समाचार बनाकर देंगे तो लग जाएगा। अन्यथा कितना भी महत्वपूर्ण समाचार क्यों न हो कोई भी पत्रकार उसे कवर नहीं करता। आप उनको जो समाचार बना कर देंगे उसमें उनकी एडिट भर करने की रुचि रहती है। किसका नाम उड़ाना है, किसका नाम जोड़ना है ये पत्रकार इतना भर तय करते हैं।
हां , ऐसे पत्रकारों को गाड़ी पर प्रेस लिखाने का शौक जरूर रहता है क्योंकि तब उन्हें पुलिस भी नहीं रोक पाती। पुलिस वैसे भी रोकने का अधिकार नहीं रखती क्योंकि उनके अपने बच्चे तक बाईक पर पुलिस लिखवाकर यातायात के नियमों का उल्लंघन करते नज़र आते हैं। आम आदमी तमाशा भर देखता रहता है । उसमें विरोध करने की हिम्मत ही नहीं रह गई है। अभी कुछ वर्ष पूर्व ही मेरी बाईक को एक पुलिस वाले के लड़के ने पुलिस लाईन के पास ही टक्कर मार दी थी। मैंने जब उसे रोका तो वो यह कहते हुए मुझे रोब दिखाने लगा कि – ‘ मेरा बाप थ्री स्टार है ‘। मेरे द्वारा एस पी को इस घटना की शिकायत किये जाने पर एसडीओपी ने घटना की जांच की और अंततः मुझे उस पुलिसिया शहजादे को माफ करना पड़ा।
पत्रकारों के ऐसे ही काले कारनामों के कारण नागरिकों में उनकी छवि दलालों की बनकर रह गई है। आम आदमी की नज़र में नेता और पत्रकार एक ही सिक्के के दो पहलू माने जाते हैं।
मगर न ही सभी नेता ऐसे हैं और न ही सभी पत्रकारों की छवि खराब है कुछ पुलिसवाले आज भी साफ सुथरी छवि रखते हैं । मगर ज्यादातर नेताओं, पत्रकारो , पुलिसकर्मियों ने अपनी बिरादरी को कलंकित कर रखा है। इस तरह प्रजातंत्र के दो स्तम्भ तो भरभराकर कब गिर जायें कुछ नहीं कहा जा सकता।
ऐसे में पुरानी पीढ़ी का स्मरण हो आना स्वभाविक है। जब स्वर्गीय प्रेमशंकर दुबे , जवाहरसिंह पवार , सुरेन्द्र तिवारी जैसे योग्य और अनुभवी पत्रकार हमारे बीच मौजूद थे। उसके बाद की पीढ़ी ने भी पत्रकारिता के क्षेत्र में नए आयाम स्थापित किए । पंकज शुक्ल, प्रवीण तिवारी, प्रमोद पगारे, पुनीत दुबे तो न केवल राज्य स्तरीय पुरस्कार से पुरस्कृत हुए बल्कि सम्मानित् भी किये गए। संयोग देखिए कि उक्त सभी पत्रकार एक ही राशि वर्ग के थे। खैर। इनमें से पंकज शुक्ल तो शासकीय सेवा में चले गए। बाद में उन्होंने फिल्मों पर केन्द्रित एक पत्रिका का प्रकाशन भी किया। उनकी पत्नी भी साहित्य से जुड़ी हुई हैं। पंकज शुक्ल की माताजी और हम सबकी मौसी सावित्री शुक्ल ‘ निशा ‘ अपने समय की प्रतिष्ठित कवयित्री रही हैं। इस उम्र में भी उन्होंने लिखना नहीं छोड़ा है। दूसरी ओर प्रवीण तिवारी व्यवसाय के क्षेत्र में चले गए। हालांकि आज भी वे स्वतंत्र रूप से लिखते रहते हैं। रही बात पुनीत दुबे की तो वे पत्रकारिता के क्षेत्र में निरन्तर सक्रियता बनाए हुए हैं। इधर जिला पत्रकार संघ के अध्यक्ष प्रमोद पगारे प्रिंट मीडिया के साथ – साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया में भी दखल रखते हैं।
हमारा शहर इटारसी लिखने पढ़ने वालों का शहर है । यहां की किसी भी गली में चले जाईये वहां आपको कोई न कोई पत्रकार, लेखक, कवि या अध्येता मिल ही जायेगा। ऐसा है हमारा शहर।
विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)
Contact : 96445 43026
बहुरंग…. पत्रकारिता में आपराधिक तत्व… एक अशुभ संकेत के अंतर्गत श्री विनोद कुशवाहा का आलेख पढ़ा । कमोवेश सभी शहरों में यही स्थिति है। आज पत्रकारिता का तेजी से अपराधीकरण होता चला जा रहा है. यह चिंता का विषय है । मेरे शहर इटारसी के बारे में ताजा जानकारियां देने के लिए धन्यवाद… विपिन पवार, मुंबई