शरीर भले ही दिव्यांग हो, मन दिव्यांग न हो तो सफलता अवश्य मिलती

Post by: Rohit Nage

इटारसी। मन मजबूत हो, तो शारीरिक दिव्यांगता सफलता की राह में आड़े नहीं आती। शारीरिक दिव्यांगता मायने नहीं रखती, यदि मानसिक रूप से मजबूती हो। यह साबित करने के लिए जुनून की हद तक जाकर लक्ष्य पाना चाहती हैं, नरसिंहपुर जिले में रहने वाली सोनम। हाथ नहीं हैं, लेकिन पैरों से किस्मत की लकीरें खींचने का जज्बा उन्हें नरसिंहपुर से इटारसी तक ले आया।
मूलत: गाडरवारा के पास एक गांव में रहने वाली सोनम की स्कूली शिक्षा गांव के बाद हायर सैंकंड्री और कॉलेज की शिक्षा गाडरवार में हासिल की। वहां गरीबी के कारण फीस की दिक्कत आयी, स्कॉलरशिप के विषय में जब कहीं से कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिला तो अंतिम सूची में इटारसी का चयन कर लिया। यहां मां नर्मदा कालेज से बीएड कर रही सोनम सुबह जल्दी आती हैं और घर पहुंचने में रात को 11 बज जाते हैं। बावजूद इसके उसने हिम्मत नहीं हारी। अभी हाल ही में हुई बीएड की परीक्षा में शासकीय एमजीएम कालेज के परीक्षा केन्द्र पर उसे पैरों से पेपर हल करते देख हर कोई हैरान था।
इतनी लंबी जर्नी और जोखिम के बावजूद सोनम का कहना है कि उसका शिक्षक बनने का सपना है और इसके लिए वह हर मुसीबत से डटकर सामना करेगी। सोनम का कहना है कि वह अपने पैरों पर खड़े होना चाहती है, किसी पर आश्रित होना उसे पसंद नहीं। माता-पिता अभी मदद करते हैं, लेकिन उनको भी वह ज्यादा परेशान नहीं करना चाहती है। अपनी मदद आप करने का जज्बा लिए सोनम ने बीएड की परीक्षा दी है। सोनम ने प्रायमरी से लेकर हायर एजुकेशन तक पैरों से लिखकर पढ़ाई-लिखाई की है, अब वह शिक्षक बनकर सेवा करना चाहती है। सोनम के इसी जज्बे को देख परिवार ने भी उसकी हौसला अफजायी की है। उसके परिजनों के अनुसार सोनम के जन्म से ही हाथ नहीं हैं। बावजूद इसके वह उसके जैसे अन्य अनेक दिव्यांगों के लिए किसी मिसाल से कम नहीं है।

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