रोहित नागे, इटारसी
मध्यप्रदेश में विधानसभा चुनाव में प्रचार के अब कुछ ही घंटे शेष हैं और चुनाव शोरगुल थमने की ओर बढ़ रहा है। यही वजह है कि अब प्रत्याशी सारी ताकत झौंकना चाह रहे हैं। नर्मदापुरम में विधानसभा चुनाव को त्रिकोणीय माना जा रहा है, हालांकि एक प्रत्याशी को प्रारंभ से जातिगत आधार पर चुनाव लडने वाला माना गया है और उन्होंने अपने प्रचार में स्वयं को सर्व समाज का प्रत्याशी बताने की भरसक कोशिश की है। वैसे नर्मदापुरम जिले का ही इतिहास ऐसा कभी नहीं रहा कि चुनाव जातिगत आधार पर जीते गये हों।
बहरहाल, भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी डॉ.सीतासरन शर्मा, कांग्रेस प्रत्याशी पं.गिरिजाशंकर शर्मा और निर्दलीय प्रत्याशी भगवती चौरे के अलावा बहुजन समाज पार्टी से प्रदीप मांझी भी पूरी जोर आजमाइश कर रहे हैं।
भारतीय जनता पार्टी की एक चुनावी सभा हो चुकी है, भगवती चौरे ने मंगलवार को दोपहर में नर्मदापुरम और शाम को इटारसी में सभा की है। कांग्रेस ने अब तक कोई बड़ी सभा नहीं की है। 15 नवंबर 2023 की शाम 5 बजे तक सभी दल अपनी पूरी ताकत अपना पलड़ा मजबूत करने में लगायेंगे। उसके बाद घर-घर दस्तक और फिर 17 नवंबर को वोटर का दिन रहेगा और 3 दिसंबर को फैसले की घड़ी आएगी। 17 तारीख को प्रत्याशियों के वचन और संकल्पों से कौन मतदाता कितना प्रभावित रहेगा, उसी के अनुसार अपना मत ईवीएम में कैद कर देगा।
भारतीय जनता पार्टी के प्रत्याशी तीन दशक में अपने किये विकास कार्यों को जनता के बीच ले जाकर अपने लिए समर्थन मांग रहे हैं, तो कांग्रेस ने अपने प्रत्याशी के दो बार के विधायकी कार्यकाल को सहारा बनाया है, साथ ही कमलनाथ के सस्ती बिजली, नारी सम्मान योजना को हाईलाइट किया जा रहा है। निर्दलीय प्रत्याशी त्रिकोणीय संघर्ष तो बनाते दिख रहे हैं, लेकिन राजनैतिक चर्चाओं में कहा जा रहा है कि जिन गांवों और शहरी क्षेत्रों में कुर्मी परिवार निवास करते हैं वहां पर तो भगवती चौरे का प्रचार प्रसार व्यवस्थित एवं मजबूती से हो रहा है। लेकिन अन्य जातियों, समाजों और सामाजिक लोगों से भगवती चौरे की आश्चर्यजनक दूरी बन रही है। अब जबकि मतदान को महज दो दिन का समय बचा है, ऐसे में अन्य समाजों में भगवती चौरे के लिए अपेक्षित उत्साह दिख नहीं रहा है।
विधानसभा क्षेत्र में ब्राह्मण समाज, बाल्मीकि समाज, यादव समाज भी बड़ी संख्या में उपस्थित हैं। अगर कोई प्रत्याशी जाति का फॉर्मूला अपनाएगा और बाकी समाजों की अवहेलना करेगा तो उसके लिए मुश्किल होगा। क्षेत्र में व्यापारी, उद्योगपति एवं समाजसेवा के कार्यों में जैन, मारवाड़ी और बड़ी संख्या में समस्त सवर्ण समाज एवं जातियां भी मौजूद हैं। एक प्रत्याशी होने के नाते विधानसभा क्षेत्र का हर एक मतदाता समान भाव रखता है। इस जिले का इतिहास जातिगत आधार कभी रहा ही नहीं है।
बीते वर्षों की बात करें तो दिवंगत भाजपा नेता सरताज सिंह सिख समुदाय से आते थे। वे लोकसभा क्षेत्र से करीब पांच बार सांसद रहे। अगर जातिगत दृष्टि से देखा जाए तो सिख समाज क्षेत्र में अल्प संख्या में उपस्थित है। बाबजूद इसके उनका पांच बार सांसद रहना जातिगत चुनाव का विरोधाभास है। इतना ही नहीं सन् 1993 में इटारसी विधानसभा से ब्राम्हण समाज से ही आने वाले भाजपा प्रत्याशी के रूप में डॉ सीतासरन शर्मा, कांग्रेस से विजय दुबे काकू भाई एवं कुर्मी समाज से आने वाले अशोक रावत निर्दलीय चुनाव लड़े थे। जिसमें जातिगत समीकरणों को भुलाकर क्षेत्र की जनता ने ब्राम्हण होते हुए काकू भाई और कुर्मी होते हुए अशोक रावत को हराया था और डॉ शर्मा 1139 वोट से विजयी हुए थे।
राजनीतिक तौर पर बंटा है समाज
हर समाज राजनैतिक तौर पर बंटा है। कोई दल या प्रत्याशी यह दावा नहीं कर सकता है कि वह किसी एक जाति के वोटों के आधार पर चुनाव जीत जाएगा। हर समाज के लोग अलग-अलग प्रत्याशियों के लिए काम कर रहे हैं और वे अपने प्रत्याशी के पक्ष में उस समाज के वोट डायवर्ट करने के प्रयास में हैं।
…तो 17 नवंबर यानी मतदान का दिन पास है और 15 नवंबर 2023 यानि मध्यप्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रचार का अंतिम दिन और पास है। इन दो दिनों में भाजपा और कांग्रेस सभी प्रत्याशी चुनाव जीतने अपनी पूरी ताक झोंक देंगे और तब तक मतदाताओं के मौन टूटने का वक्त आ चुका होगा।
रोहित नागे, इटारसी
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