रोहित नागे, इटारसी
आखिरकार, जिसकी कल्पना की जा रही थी, वह साकार हो गयी। विधानसभा चुनावों में आईना देखने की जगह कांग्रेस ने ईवीएम को बदनाम कर दिया। कांग्रेस का यहां तक कहना है कि एक्जिट पोल के परिणाम जिसने बनाये उसे मालूम था कि रिजल्ट क्या आने वाला है। मगर लगता है, यहां चूक हो गयी। एक्जिट पोल ने तो नेक-टू-नेक फाइट बतायी थी, यहां तो तीनों राज्यों में भाजपा की एकतरफा जीत हुई।
चुनावों के दौरान एकदूसरे के कपड़े फाडऩे वाले नेता अब अपनी नाकामयाबी का ठीकरा ईवीएम पर फोडऩे उतारू हैं, पहले आईने में अपना चेहरा तो देखें कि कांग्रेस ने चुनाव लड़ा कैसे? केवल ईवीएम को ही दोष देना है तो फिर तेलंगाना और मिजोरम में भी भाजपा को अच्छी खासी सीटें लाना था। बंगाल में ममता बनर्जी की सरकार नहीं बन सकती थी। महाराष्ट्र में भाजपा सरकार से दूर क्यों रह गयी? दिल्ली में आम आदमी पार्टी इतने वर्षों से क्यों राज कर रही है? केवल तीन राज्यों में ही ईवीएम गड़बड़ हो जाती है। कांग्रेस ने पूरा छिंदवाड़ा जिला जीता है, शायद वहां ईवीएम ठीक भेजी गई थीं। भाजपा के दो सांसद और 12 मंत्री चुनाव हार गये, क्या वहां ईवीएम कांग्रेस के मुताबिक सेट करके भेजी गयी होगी? समीक्षा में भी कई प्रमुख नेताओं का नहीं पहुंचना, भी कांग्रेस को दिखाई नहीं दे रहा है।
वैसे कांग्रेस की हार के लिए जिम्मेदार कारण ढूंढने में अंधे व्यक्ति को भी कोई गफलत नहीं होगी। कांग्रेस नेता एक दूसरे के कपड़े फाडऩे की राजनीति कर रहे थे और प्रदेश की जनता ने कांग्रेस की ही कपड़े फाड़ दिए। परिणामों ने साफ कर दिया कि कमलनाथ का सीएम चेहरा हारा है। कांग्रेसी इतने आत्ममुग्ध होकर काम कर रहे थे कि नकुलनाथ ने तो चुनावी अभियान में 7 दिसंबर को उनके पिता कमलनाथ के मुख्यमंत्री की शपथ समारोह के लिए निमंत्रण तक दे दिये थे।
कांग्रेस नेताओं को इतनी गलतफहमी कैसे हो गयी। कांग्रेस की हार ने यह भी साबित कर दिया है कि 2018 में कांग्रेस को जो भी बहुमत मिला था उसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया का योगदान था। कांग्रेस के जो नेता सिंधिया को गद्दार साबित करना चाहते थे प्रदेश के लोगों ने उन्हीं नेताओं को दोबारा अस्वीकार कर दिया है। बीजेपी की 18 साल की सरकार के बाद भी कांग्रेस की पराजय नेताओं की ही हार है।
अब जिले की बात…
जिले की चारों सीट भाजपा ने अपने पास बरकरार रखी हैं। सबसे अधिक वोटों से पिपरिया में प्रत्याशी जीता है। यहां कांग्रेस के वीरेन्द्र बेलवंशी पहले भाजपा में ही थे। कुछ साल पहले कांग्रेस में गये और उनको टिकट मिल गयी। आखिरकार परिणाम 2018 वाला ही रहा। अलबत्ता सोहागपुर में यदि माखननगर ने साथ नहीं दिया होता तो यहां परिणाम भाजपा के खिलाफ जा सकता था। बमुश्किल दो हजार से भी कम वोटों से यहां भाजपा को जीत मिली है। कांग्रेस के जैसे सोचें तो जवाब होना चाहिए कि यहां सही ईवीएम भेजी थी जिसने कांग्रेस प्रत्याशी को भर-भरकर वोट दिये, भले ही थोड़े कम पड़ गये। नर्मदापुरम भाजपा के लिए 1990 से अजेय है। इस बार बदलाव की बयार बहाने की कोशिश की गई, लेकिन हवा चली आंधी नहीं आयी। आखिरकार कतिपय भाजपायी जिस परिणाम की आशा कर रहे थे, उनके सपने पापड़ की तरह टूटे और कर्मठ भाजपायी जीत गये। इस जीत में वैसे देखा जाए तो बहुत सारे फैक्टर थे। राज्य सरकार की योजना को यदि पहले स्थान पर रखें तो दूसरे स्थान पर मोदी का चेहरा और तीसरे और अहम रोल को देखें तो विधायक डॉ. शर्मा का अपना व्यक्तितत्व। हर रोज जनता दरबार में सबकी समस्याएं सुनना, प्रेम से बिठाना, धैर्य से बात सुनना और ज्यादातर समस्याओं का ऑन द स्पॉट निराकरण करने की उनकी शैली भी चुनाव जीती है। वे कई वर्षों से अपने क्षेत्र की जनता से उतनी ही आत्मीयता से मिलते हैं, जितनी आत्मीयता से चुनावों के वक्त वोट मांगते हैं। उनके व्यवहार में कोई कमी नहीं दिखती। जो वोटर नहीं हैं, उनसे भी उनका समान व्यवहार होता है।
कांग्रेस में इस्तीफे का दौर
विधानसभा चुनाव में हार के बाद इस्तीफों का दौर प्रारंभ हो गया। सबसे पहले सिवनी मालवा विधानसभा निवासी और जिला किसान कांग्रेस के अध्यक्ष विजय चौधरी बाबू ने सोशल मीडिया पर इस्तीफा की घोषणा की। इसके बाद नर्मदापुरम से नगर अध्यक्ष धर्मेन्द्र तिवारी ने। उपाध्यक्ष अर्जुन भोला और अन्य लोग भी इस्तीफा दे रहे हैं तो सोशल मीडिया पर नवनियुक्त जिलाध्यक्ष शिवाकांत पांडेय गुड्डन भैया के इस्तीफे की उम्मीद की जाने लगी। चर्चा होने लगी कि प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष पद से कमलनाथ इस्तीफा दे देंगे तो किसी को इस्तीफा देने की आवश्यकता नहीं होगी, सभी कार्यकारिणी स्वत: ही भंग हो जाएंगी। बहरहाल, कांग्रेस में क्या उथल पुथल होती है, आने वाला वक्त बताएगा।
मंत्री पद के लिए चर्चा
इस बार मध्यप्रदेश सरकार के एक दर्जन मंत्री चुनाव हार गये हैं तो उससे कहीं अधिक पुराने और दिग्गज नेता जीतकर भी विधानसभा पहुंच रहे हैं। ऐसे में मंत्री पद की चर्चा होना स्वभाविक है। नर्मदापुरम से जीत का छक्का लगाने वाले डॉ.सीतासरन शर्मा के मंत्री बनने की चर्चाएँ चलने लगी हैं और उनके समर्थकों को तो उनको निश्चित तौर पर मंत्री पद मिलने का भरोसा है। हालांकि यह भी चर्चा है कि विजयपाल भी दावेदार हैं, तो संभाग से बैतूल विधायक हेमंत खंडेलवाल भी इसी लाइन में हैं। कुछ भाजपायी यह भी कह रहे हैं कि साहब को पुन: विधानसभा अध्यक्ष का पद ऑफर किया जा सकता है। हालांकि अभी यह सब चर्चाओं का हिस्सा है। लेकिन, इतना तो तय है कि इस बार अवश्य जिले को मप्र की सरकार में सम्मान मिलने वाला है।
रोहित नागे, इटारसी
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