रविवार, सितम्बर 8, 2024

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अयोध्या आंदोलन : इटारसी के कार सेवकों ने भी दी थी आहुति

1990 में कारसेवा का यात्रा वृतांत

: मिलिन्द रोंघे, इटारसी

24 मई 1990 को हरिद्वारा में अयोध्या में राममंदिर के लिए कारसेवा की तिथि 30 अक्टूबर 1990 नियत की गयी थी। 25 सितम्बर 1990 को लालकृष्ण आडवाणीजी की रथयात्रा के बाद चालू हुई तो उधर अयोध्या में परिंदा भी पर नहीं मार सकता, की धमकी के कारण दिवाली के सर्द मौसम में भी गर्मी आ गयी। दिवाली के कुछ समय बाद 23 अक्टूबर को आडवाणीजी की गिरफ्तारी के बाद बाद तेजी से परिस्थितियॉं बदलने लगी। उस दौर में जो संघ में था वही विहिप में था और वही राजनीति में भी सक्रिय था। आकार प्रकार भी आज जैसा नहीं था, सभी परंपरागत कार्यकर्ता थे कम थे लेकिन समर्पित थे।
अयोध्या जाने के लिए सूची तो पहले ही बन गयी थी लेकिन यह भी बता दिया गया था कि 24 घंटे पहले सूचना दी जावेगी। अयोध्या में राममंदिर आंदोलन के लिए इटारसी सहित नर्मदापुरम् (पहले होशंगाबाद) जिले के प्रत्येक शहर से कारसेवक भेजा जाना नियत किया गया। कार्यकर्ताओं के समूह को वाहिनी का नाम दिया गया। हर वाहिनी में एक वाहिनी प्रमुख था जिसका कोड 07572 था, इसमें सात गटनायक नियत किये गये थे, जिससे वे वाहिनी प्रमुख एवं साथियों से बिछड़ने पर स्वयं निर्णय ले सके। जिले में इसके सूत्रधार संघ के जिला प्रचारक अनिलजी आयाचित थे, इटारसी की चावल लाइन में बब्बूभैया (बाबूलालजी अग्रवाल) की दुकान कार्यालय बन गया था।
इटारसी से राम मंदिर आंदोलन के लिए पहला जत्था 26 अक्टूबर 1990 को काशी एक्सप्रेस से जाना निर्धारित किया गया जिसके वाहिनी प्रमुख इटारसी विधायक डॅा.सीतासरन शर्मा, को बनाया गया। इसमें अशोक रावत, अनुराग सिंह ठाकुर, वीरेन्द्र शर्मा, सुनील, जयप्रकाश पटैल (करिया) गुलाब सिंह ठाकुर एवं मिलिन्द रोंघे को गटनायक बनाया गया। इस वाहिनी में कमल सिंह बड़गुजर, शिवकिशोर रावत, विनोद तिवारी (पप्पु), लक्ष्मीनारायण देवहरे, विनोद पांडे, वीरेन्द्र श्रीवास, महेश गिरि, चन्द्रशेखर सराठे, शिवराम इंगोले, जगदीश ठाकुर, यामलचंद आर्य, दयाल सिंह, विनय कुमार त्रिपाठी ,मंगल बाबा, शंकरसिंह भदौरिया, संदीप चन्द्रवंशी, गोकुलप्रसाद बाथरी, कन्हैयालाल रायकवार, विजय मेहरा, मदनलाल पटैल कुबेर सोनी, एवं राजेश बनेटिया थे। इस वाहिनी में सभी आयुवर्ग के थे अर्थात युवा, अधेड़ और बुजुर्गों का मिश्रण थे, अन्नुजी, वीरूजी, कमलजी, पप्पु देवहरे सहित अनेक अविवाहित थे तो दयाल सिंह अपने चार माह के बेटे को छोड़कर जा रहे थे, मिलिन्द माता-पिता की इकलौती संतान होने के भी चलने को तैयार थे, तो इंगोले चाचा, गुलाब सिंह ठाकुर, कुबेर सोनी, विनय त्रिपाठी अपनी शष्ठीपूर्ति पहले ही मना चुके थे। जाने वालों को कुछ परिचित यह समझाइश भी दे रहे थे, क्यों जा रहे हो गोली खाने। लेकिन सभी अपनी इस धर्मयात्रा के लिए मानसिक रूप से हर परिस्थिति के लिए तैयार थे। सभी को अपना ग्लास, पानी की बोतल, दो-तीन दिन का सुखा नाश्ता एवं ठंड के हिसाब से ओढ़ने बिछाने के कपड़े लेकर आना था ।
सभी कारसेवक अयोध्या जाने के लिए पागलपन की हद तक उत्साह से परिपूर्ण थे, कि अक्टूबर की ठंड में भी काशी एक्सप्रेस के आने के निर्धारित समय से एक घंटे पूर्व ही स्टेशन पर पहुँच गये थे। कारसेवक अपने पारिवारिक दायित्वों से परे अपने आराध्य श्रीराम के प्रति दायित्व के प्रति आसक्त थे, जबकि उन्हें डराने वाले भी कम नहीं थे। ‘जय श्री राम’ और ‘राम लला हम आवेंगें, मंदिर वहीं बनायेंगें’ के नारों से इटारसी स्टेशन गुंजायमान था, सैकड़ों लोग कारसेवकों का उत्साहवर्ध्दन हेतु उनको छोड़ने स्टेशन पर आये थे।
तत्कालीन केन्द्र सरकार और उत्तरप्रदेश सरकार की प्रबल मंशा थी की कारसेवक अयोध्या तो दुर की बात है अपने शहर से ही निकल न पावें, जिससे वे निर्धारित तिथि को अयोध्या न पहुंच सके और कार्यक्रम सफल न हो। विश्व हिन्दू परिषद को इसका पूर्वानुमान था इसलिए ही कारसेवकों के अयोध्या रवाना होने का कार्यक्रम पहले नियत किया गया था कि संभावित अड़चनों के बाद भी कारसेवक अयोध्या पहुँच सके। उस समय आवागमन का प्रमुख साधन रेलगाड़ीयॉं थी इसलिए सरकार/प्रशासन का सारा ध्यान रेलगाड़ीयों पर था।
केन्द्र सरकार की मंशा के विपरीत तत्कालीन मध्य प्रदेशसरकार का आंदोलन को पुरा समर्थन था। निर्धारित समय प्लेटफार्म नंबर एक से काशी एक्सप्रेस आने के एक घंटे बाद भी गाड़ी नहीं बढाई गयी, सभी को शक हुआ कि दाल में काला है। पुछताछ करने पर पता चला कि सरकार की तरफ से अनौपचारिक रूप से स्टेशन प्रबंधक को आदेश दिये गये कि गाड़ी आगे मत जाने दो। इस खबर के बाद ठंड के मौसम में भी स्टेशन परिसर के माहौल में गर्माहट आ गयी, नारेबाजी और तेज हो गयी। इसकी जानकारी मिलने पर विधायक डॅा. सीतासरन शर्मा ने स्टेशन प्रबंधक के कार्यालय से कलेक्टर से बात की यदि यहॉं से गाड़ी आगे नहीं बढ़ायी नहीं गयी तो जिले की कानुन व्यवस्था पर इसका खराब असर पड़ेगा, इसकी जिम्मेदारी किसकी होगी। कलेक्टर ने इस संबध में कानुन व्यवस्था का हवाला देते हुए रेलवे अधिकारियों को चेतावनी देते काशी एक्सप्रेस होशंगाबाद जिले से निकालने के निर्देश दिये।
इस प्रकार किसी तरह काशी एक्सप्रेस इटारसी से रवाना होकर 27 तारीख को सुबह छः बजे जबलपुर पहुंची। यहॉं से फिर कारसेवक चढ़े और गाड़ी फिर रोक दी गयी। जबलपुर में विधायक डॅा.शर्मा ने तत्कालीन म.प्र. सरकार में मंत्री ओंकारनाथ तिवारी को वस्तुस्थिति से अवगत कराया कि रेलप्रशासन जानबूझ कर ट्रेनें आगे नहीं बढ़ा रहा है आखिर उनके हस्तक्षेप उपरांत रवाना हुई और जबलपुर से सतना 178 किलो मीटर की दूरी 11 घंटे में तय कर सायंकाल छः बजे सतना पहुंचे। पिपरिया से सतना तक हर स्टेशन से ‘जय श्रीराम’ के उदघोश के साथ कारसेवक गाड़ी में सवार होते जा रहे थे। मध्यप्रदेश की सीमा तक तक यात्रा का समय ठीक से कट गया लेकिन उत्तर प्रदेश की सीमा में सबको सर्तक कर दिया गया था कि स्टशन पर निकलना नहीं, किसी ने कुछ भी दिया तो खाना नहीं।
काशी एक्सप्रेस के उत्तरप्रदेश राज्य की सीमा में पहुंचने पर गिरफ्तारी की संभावना बढ़ गयी थी, इस स्थिति के लिए वाहिनी प्रमुख डॅा.सीतासरन शर्मा ने हर डब्बे में जाकर सबको सर्तक कर दिया था और कहा कि इलाहाबाद पहुंचने पर नई रणनीति तैयार करेंगें। रात एक बजे इलाहाबाद पहुंचने पर डॅाक्टर साहब ने सबको सतर्क कर दिया कि उठो और तैयार हो जाओ कभी भी उतरना पड़ सकता है।

इलाहाबाद से गाड़ी चलने के कुछ समय पहले संदेश आया कि ट्रेन चलने के बाद कुछ देर बाद जैसे ही मंदिर के पास गाड़ी खड़ी होगी सभी को उतरना है। रात को दिखाई तो कुछ दिया नहीं, लेकिन दूर एक बल्ब की रोशनी दिखाई दी उस रोशनी में लगा कि वहॉं कोई मंदिर हो सकता है। इधर गाड़ी रूकी और सभी लोग रात मे कड़कड़ाती ठंड में रेलगाड़ी से उतरे पहले तो कुछ समझ नहीं आ रहा था, धीरे-2 ऑखें भी अभ्यस्त हुई क्योंकि अनजाना रास्ता, गढढे और जानवरों का डर भी लेकिन राम काज के लिए जा रहे थे इसलिए उत्साह कम होने का नाम नहीं ले रहा था आखिर चांदनी रात में धीरे-2 मंदिर तक पहुंचे । मंदिर से लगे गॉंव का नाम फाफामउ था। रात में ही वहॉं से पैदल चलते हुए लगभग 4 कि.मी. दूरी पर स्थित सिसौद नामक गॉंव में रात 3 बजे पहुंचे। वहॉं से विश्राम करने के बाद ट्रेन द्वारा भोपियामउ पहुंच कर उतर गये। गॉंव में पहुंच कर सब लोग नित्यक्रिया से निवृत होकर अगली यात्रा के लिए पैदल निकल पड़े। दिलीपुर, खजुरनी, पिपरी, मतुई ओछला होते हुए रात्री विश्राम पुरकुलाहल गॉंव में किया। रास्ते के सभी गॉंव वालों को मालुम था कि कारसेवक जा रहे है। उनसे पानी मॉंगों तो वे स्थानीय परंपरानुसार पानी के साथ गुड़ भी लाते और भोजन की प्रेम से पूछते। हम गॉंववालों से अगले गॉंव के संबध में पुछते तो वे कहते ‘तनक’ पास में ही है। हम लोग सोचते की इनका ‘तनक’ तो दो घंटे बाद ही आता।

29 अक्टूबर को सुबह फिर ‘जय श्री राम ’ के उदघोष और गीत गाते हुए पैदल मार्च प्रारंभ हुआ बरौली, आलमपुर, नारायणपुर होते हुए दोपहर 1 बजे अग्रेसर पहुंचे। जगह-2 विहिप एवं संघ के स्वंय सेवकों द्वारा स्थानीय नागरिकों के सहयोग से भोजन व्यवस्था की गयी थी। भोजन उपरांत वहॉं से रामगॅंज, किनौरा, होते हुए महसुआ पहुंचे और वहॉं से ट्रेक्टर ट्राली से कन्धईपुर आये। वहॉं से फिर पैदल नौबस्ता पहुंच कर वहॉं स्थानीय निवासीयों द्वारा तिवारीपुर (भरतीपुर) होते हुए ट्रेक्टर ट्राली से 11 कि.मी. दूर पन्नाटिकरी से होते हुए बहुनगॉंव पहुंचे।

सारा सफर गीत गाते, नारे लगाते, आपस में हंसी मजाक करते हुए कट रहा था, लगातार चलने के बाद भी हम कारसेवकों में थकावट का चिन्ह नजर नहीं आ रहा था, जबकि हमारी वाहिनी में युवा थे तो इंगोले चाचा और गुलाबसिंह चौहान जैसे बुजुर्ग भी थे। सभी कारसेवक रास्ते भर गीत गाते (1) ‘हमें तो हमारा हिन्दुस्तांन चाहिए ना धरा ना हमें आसमान चाहिए।’ (2) युग करने को निर्माण जवानी जागा करती है नित करने को बलिदान जवानी जागा करती है (3) ‘सभी करो कार सेवा, भक्त की आवाज है, रामजी का काज है ये रामजी का काज है’। कमल बडगुजर गीत गाते और सभी उन्हें दोहराते थे। ये गीत सिर्फ मन में उत्साह ही पैदा नहीं करते वरन थकावट भी दूर करते थे। गीत गाते पैदल चलते हुए पैदल यात्रा में सबसे आगे डॅाक्टर साहब और सबसे पीछे कभी अशोक रावत या कभी कमल बडगुजर चलते थे ताकि साथी कहीं बिछुड़ न जावें। गीत गाते पैदल चलते हम रात 12 बजे गोमती नदी के किनारे पहुचे।

संघ की व्यवस्था कुछ इस तरह थी कि कहीं कोई दिक्कत नहीं थी और दलगत भावना से परे स्थानीय नागरिकों का सहयोग अतुलनीय और स्तुत्य था। रात में ही नाव से गोमती नदी पार कर पैदल यात्रा पुनः प्रारंभ हुई। गोमती नदी पार करने के बाद सबको लगने लगा था कि हम निर्धारित तिथि को अयोध्या पहुंच ही जावेंगे। गोमती नदी पार करने के बाद बरूई गॉंव होते हुए रात डेढ़ बजे जासापारा पहुंचे कर वहॉं रात्रि विश्राम किया। काफी समय बाद विश्राम करने को मिला था इधर डाक्टर साहब ने सभी कारसेवकों को सोने से पहले ही कह दिया कि प्रशासन की सख्ती काफी हो गयी है, जगह-2 पुलिस लगी हुई है सुबह जल्द उठ कर फिर निकलना है, इसलिए सब जल्द ही सो गये।
30 अक्टूबर को सुबह फिर चाय नाश्ते के बाद जासापारा से पैदल निकले और उधरपुर, बिरेहना, दर्जीपुरा होते हुए दोपहर तक मलवा पहुचे । इस बीच हमारी यात्रा में होशंगाबाद के 3, बिलासपुर के 5, महाराष्ट् के 8 कारसेवक भी जुड़ गये थे जो अपनी-2 वाहिनी से बिछुड़ गये थे।

ग्राम मलवा से हम सभी ट्रेक्टर ट्राली से आगे निकले लेकिन सभी 42 कार सेवकों को गोसांईपुरा के थाना प्रभारी आनंद कुमार राय ने गिरफ्तार कर लिया। दोपहर 12.30 बजे जब हमें गिरफ्तार किया गया तब हम अयोध्या से मात्र 30 किलोमीटर दूर मटकुई गॉंव में थे। गिरफ्तार कर हमें ले जाया जा रहा था तो वाहिनी के कुछ लोगों ने भागने की कोशिश की कुछ भी हो जाये, गिरफ्तार नहीं होंगे अयोध्या चलेंगें। लेकिन डाक्टर साहब ने समझाया कि हमारे साथ इंगोले चाचा, गुलाबसिंह चौहान सहित अनेक बुजुर्ग भी है आप भाग सकते हो लेकिन बाकी थोड़ी भाग सकते है। कुछ देर की गरमागर्मी के बाद सब मान गये। गिरफ्तारी के बाद गोसांईपुरा ले जाया गया और वहॉं से बस में कादीपुर जिला सुल्तानपुर का इंटरमिडिएट स्कुल जिसे अस्थायी जेल बनाया गया था में अपरान्ह चार बजे ले जाया गया। इस जेल में कुल 225 कारसेवकों को रखा गया था जिनमें उज्जैन, बिलासपुर, सोलापुर (महाराष्ट्र), धनबाद, कोलकाता, मुगलसराय, मेहबुबनगर (आंध्रप्रदेश) मेडीकेरी (कर्नाटक) के भी थे । थाना प्रभारी ने डॅाक्टर साहब से कहा कि विधायक होने के नाते आपको रेस्टहाउस में रखेंगें, लेकिन उन्होंने स्पष्ट कहा कि जहॉं मेरे साथी रहेंगे वहीं मै भी रहूँगा। सोलापुर के कारसेवकों के पास कपड़े की समस्या हो गयी, उनके साथ महिलाओं का सामान ज्यादा होने के कारण उनके बेग पुरूषों ने उठा लिये और पुरूषों के महिलाओं ने। महिलाएं पीछे रह गई और पुरूष गिरफ्तार होने से उनके पास कपड़ों की दिक्कत हो गयी। प्रशासन द्वारा उनके लिए कपड़ों की व्यवस्था की गयी।
गिरफ्तारी से पूर्व हमें रास्ते भर जनता का सहयोग मिला, नागरिक लगभग सभी राजनैतिक दलों से संबध्द होने के बाद भी रामलला के लिए अयोध्या जा रहे सभी कारसेवकों को सहयोग कर रहे थे । इनमें ग्राम दिलीपुर के भगवतप्रसाद पांडे, ग्राम पिपरी के योगेश कुमार मिश्रा, ओछला के द्वारिका सिंह, कोंडोर के सुरेश कुमार मिश्रा, नारायणपुर के पृथ्वीलाल वर्मा, अग्रेसर के रामविशाल पांडे, महसुआ के रामसिंह, बुखारेपुर के धर्मराज सिंह नौबस्ता के प्रकाशचन्द्र शुक्ल, जगदीश प्रसाद त्रिपाठी, तिवारीपुर के श्यामसुन्दर त्रिपाठी, पन्नाटिकरी के रामनिवाज दुबे (प्रधान), बहुनगॉव के रामलौट ठेकेदार,बरेहता के महेश शंकर द्विवेदी, मलवा के बिन्देष्वरी प्रसाद, गौहानी के दीनदयाल मिश्र, पुरेमाधवसिंह के ब्रम्हदेव सिंह, सेमारी बाजार के सीतासरन त्रिपाठी, महाराजगंज के कामेश्वर मिश्रा कादीपुर के डॅा.नरेन्द्र प्रसाद गुप्ता, जगदीश प्रसाद गुप्ता, चंद्रिकाप्रसाद चौरसिया, अधिवक्ता दयाराम पाण्डेय, पत्रकार उमेशदत्त श्रीवास्तव, डॅा. एन.पी.गुप्ता, आदि अनेक लोगों ने हम कारसेवकों की व्यवस्था में बहुत मदद की।

कादीपुर जेल में हमारे साथ उज्जैन के डॅा.देवकरण शर्मा,राजेन्द्र शिन्दे, नरेन्द्र साखला, बड़ा बाजार कलकत्ता के हरिओम राय,यशवंत सिंह, मंगलवेढ़ा जिला सोलापुर (महाराष्ट्र) के दत्तत्रय रामचन्द्र ताम्हणकर, सुरेश दीनानाथ जोशी, नंदकुमार पांडुरंग चिटनिस, भारत विठठल ताम्बोलकर कटघोरा (बिलासपुर) के पवन कुमार अग्रवाल मेहबुबनगर (आंध्रप्रदेश) के पी.इन्द्रराज, कर्नाटक के अधिवक्ता के.पी.बालसुब्रम्हण्यम, मेडिकेरी के आर. रामप्रसाद एवं एम.ईष्वर भट, शिवमोगा के डॅा. वरंथा कुमार मुगलसराय के रामकिशोर पोतदार, मउ (उ.प्र.) के रमेशचंद पाण्डेय और नागालैंड के के.एम.कन्नन थे।

गिरफ्तारी के बाद डाक्टर साहब ने टेलिफोन पर इटारसी खबर कर दी कि इटारसी के कारसेवक सुरक्षित गिरफ्तार हो गये और कादीपुर जेल में है। उत्तरप्रदेश सरकार की कारसेवकों के प्रति सख्ती से यहॉं आशंकित हो गये थे। इस बीच जगदीश मालवीय ने इटारसी से इलाहाबाद पहुंच कर उच्च न्यायालय में इटारसी के कारसेवकों की रिहाई की अर्जी लगाई लेकिन इलाहाबाद उच्च न्यायालय की सीमा में न आने के कारण याचिका निरस्त कर दी फिर उसी अधिवक्ता की सहायता से लखनउ उच्च न्यायालय में याचिका दायर तो न्यायामूर्ति डी.के.त्रिवेदी और के.सी.भार्गव की पीठ ने 6 नवम्बर को कारसेवको को जेल में मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध कराने एवं सुरक्षा देने के आदेश दिये गये।

इधर कादीपुर जेल वस्तुतः खुली जेल थी वहॉं लगभग सभी दलों के वरिष्ठ नेता जिनमें पूर्व मुख्यमंत्री श्रीपति मिश्र के पुत्र सहित अनेक लोग मिलने आते थे एवं उनकी ओर से भोजन भी दिया जाता था । कारसेवकों में से अनेक लोग भोजन बनाने में भी सहयोग करते थे। इतने लोगों के भोजन में विलंब होना स्वाभाविक था, लेकिन दिक्कत थी भोजन मंत्र की। जेल में कर्नाटक और आंध्रप्रदेश के कार्यकर्ताओं द्वारा भोजन के पहले बोला जाने वाला जो मंत्र बोलते थे वो काफी लंबा इस बात पर अन्नुजी नाराज हो गये, इसके बाद छोटे भोजनमंत्र के बाद भोजन करना शुरू हुआ।

स्थानीय नागरिकों की तरफ से हर कमरे में एक लाई का बोरा रखवा दिया था। नहाने के लिए पानी का टेंकर आता था। सभी सुविधाओं के बाद भी सबको चिंता अयोध्या की थी। इधर 2 नवम्बर को अशोक सिंघलजी ने ‘करो या मरो’ का नारा दिया। कोठारी बन्धुओं के निधन से सभी आक्रोषित और उत्तेजित थे, जेल का माहौल भी तनावपूर्ण हो गया था। अन्नुजी, कमलजी और दयालसिंह सहित सभी लोगों का जोर था कि जेल की दीवाल तोड़कर भागा जाये। परन्तु बाद में डॅा. साहब ने निर्णय दिया कि जेल की खिड़की खोलकर चुपके से भाग निकलना चाहिए क्योंकि दीवार तोड़ने से स्कूल को नुकसान होगा हमें ऐसा उदाहरण नहीं प्रस्तुत करना चाहिए। लेकिन डाक्टर साहब सहित 40 लोग पकड़ा गये, आंध्रप्रदेश के दो कार्यकर्ता पानी के टेंकर में बैठकर भागने की कोशिश करते हुए पकड़ा गये, लेकिन जेल में बंद 72 लोग वहॉं से भाग गये, इसके बाद प्रशासन की सख्ती बढ़ गई।

4 नवंबर को सामूहिक नरसंहार के विरोध में सामूहिक उपवास एवं अखंड रामायण का पाठ रखा गया था। सरकार ने 6 नवंबर को डाक्टर साहब को रिहा किया गया उसी दिन जगदीश मालवीय उच्च न्यायालय का आदेश लेकर कादीपुर प्रशासन के पहुंच गये एवं 7 नवंबर को कादीपुर के सभी कारसेवकों को रिहा किया। सभी ने फिर अयोध्या जाकर रामलला के दर्शन किये, दिगम्बर अखाडे जाकर वहॉं महंत श्रीरामचन्द्र परमहंसजी से भेंट की हनुमान गढी और दूसरे मंदिर के दर्शन किए ओर इटारसी वापस आये।

संभवतः यह नियति ने ही तय किया कि हम इस अदभुत यात्रा में हम सहभागी हुए और श्रीरामजी की कृपा से उसका प्रतिफल लगभग तैंतीस वर्ष बाद अयोध्या में श्रीराम मंदिर में प्रभु श्रीरामजी की प्राण प्रतिष्ठा होने के साथ साकार होने जा रहा है। हमारी पीढी इस गौरवशाली क्षणों की साक्षी है।

जय श्री राम

Milind ji

मिलिन्द रोंघे, इटारसी
9425646588

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