विनोद कुशवाहा
जब से साहित्यिक पत्रिका ‘अनाहत’ के ” महिला लेखन अंक ” के प्रकाशन की घोषणा हुई है तभी से हिंदी साहित्य जगत में इसको लेकर चर्चाओं का दौर चल पड़ा । यहां – वहां विभिन्न प्रतिक्रियाएं व्यक्त की जाने लगीं। जबकि इसके पूर्व साहित्यिक पत्रिकाओं ‘ पुनश्च ‘ और “मानसरोवर” ने भी ‘महिला लेखन’ अंक निकाले हैं । खैर । स्त्री विमर्श तो हमेशा से होता रहा है । फिलहाल बात इटारसी में महिला लेखन की जिसका श्रेय पूरी तरह से सावित्री मौसी को दिया जाना चाहिए क्योंकि उन्हीं से बात शुरू होगी और उन्हीं पर बात खत्म किया जाना बेहतर होगा।
सावित्री मौसी कहा तो सावित्री शुक्ल “निशा”। स्व राजेन्द्र शुक्ल की धर्म पत्नी। तीन होनहार बेटों की माँ। स्व पंकज शुक्ल, असीम शुक्ल, डॉ अमिताभ शुक्ल। … लेकिन इतना परिचय काफी नहीं होगा। ये तो हो गई उनकी पारिवारिक पृष्ठ भूमि।
अब चलते हैं हम उनके साहित्यिक सफर पर। 60 के दशक में जब महिलाओं का घर से पैर निकालना तक मुश्किल होता था ऐसे कठिन समय में भी सावित्री मौसी ने हिंदुस्तान के तमाम कवि सम्मेलनों में शिरकत की । मगर कभी उनके सर से पल्ला नीचे नहीं सरका। न ही किसी कवि की मजाल थी कि वह उन पर बेहद कमेंट्स कर वाह वाही लूटता। हालांकि तब मंच की एक मर्यादा भी होती थी। अब तो कवयित्रियां सौंदर्य का पर्याय बन कर रह गई हैं। कविता कैसी भी हो। वैसे भी मंच पर लटके – झटकों के बिना काम नहीं चलता। संचालक सहित अन्य कवियों को कमेंट्स के लिए उकसाना उनकी मजबूरी बन गई है। बेशर्मी की कोई हद नहीं होती।
मौसी खुद भी किसी वाहवाही की मोहताज नहीं थीं। उनके गीत ही उनकी शख्सियत की पहचान थे। हर शहर हर गांव में उनके गीत गूंजते थे। वे हिंदी साहित्य संसार की सुपरिचित सशक्त हस्ताक्षर थीं। उन्होंने अपने को गीतों तक ही सीमित नहीं रखा बल्कि उनकी पहुंच गजलों तक थी। वे नई कविताओं की भी पैरोकार थीं। उनकी लेखनी का तरन्नुम कुछ ऐसा था कि सावित्री शुक्ल ‘ निशा ‘ को म प्र शासन ने भी सम्मानित किया। इसके अलावा भी मौसी को कई सम्मान और पुरस्कार मिले।
मौसी के कितने ही काव्य संग्रह प्रकाशित हुए। ” मानसरोवर साहित्य समिति ” के त-त्वाधान में भी उनके एक काव्य संकलन ‘ नदी से संवाद ‘ का विमोचन समारोह आयोजित किया गया था। गीतकार राम अधीर और मयंक श्रीवास्तव की गरिमामय उपस्थिति में सम्पन्न एक अन्य कार्यक्रम की स्मृतियां अविस्मरणीय हैं। उपरोक्त कविता संग्रह की चंद पंक्तियां कुछ इस तरह हैं-
पलक ओढ़े पल रहा विषाद मेरा
पिघलता है मोम सा अवसाद मेरा,
बादलों से बात करते रात बीती
चल रहा है नदी से संवाद मेरा।
सावित्री शुक्ल “निशा” यानि हमारी सावित्री मौसी इन दिनों गुजरात में अपने सेवा निवृत्त पुत्र असीम शुक्ल के पास हैं। मगर वे हमसे दूर भी नहीं हैं। मौसी हमारी यादों में हमेशा मौजूद रहेंगीं । नर्मदांचल परिवार उनके स्वस्थ एवं दीर्घायु जीवन की कामना करता है।
मौसी के इटारसी में रहते हुए या उनके इटारसी से जाने के बाद शहर में किसी ने उनकी परंपरा को आगे बढ़ाया है तो वे हैं स्वर्णलता नामदेव छेनिया। स्वर्णा गीत तो लिखती ही हैं गजलों में भी उनका दखल है। इतना ही नहीं पिछले दिनों प्रकाशित उनका काव्य संग्रह ‘ गुलमोहर ‘ नई कविताओं पर केन्द्रित है। सबसे बड़ी बात यह है कि वे मंचों की मोहताज नहीं हैं। स्वर्णलता छेनिया की यही विशेषता उन्हें उनकी समकालीन कवयित्रियों से अलग करती है।
विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)
नोट: नर्मदाचंल में प्रकाशित लेखों में लेखकों के अपने विचार होते हैं। नर्मदाचंल इस पर शत प्रतिशत सहमत हो, आवश्यक नहीं।