भागवत् कथा भक्ति से जोडऩा सिखाती है : शर्मा

भागवत् कथा भक्ति से जोडऩा सिखाती है : शर्मा

इटारसी। भगवान श्री कृष्ण (Lord Shri Krishna) की भक्ति कुछ छोडऩा नहीं बल्कि जोडऩा सिखाती है। भगवान की भक्ति के लिये कोई काम छोडऩा नहीं पड़ता बल्कि हर कार्य को परमात्मा से जोड़ दिया जाए यही भक्ति है। यह बात पं. रघुनन्दन शर्मा (Pandit Raghunandan Sharma) ने एलकेजी कालोनी (LKG Colony) के मंदिर में चल रही श्रीमद् भागवत कथा (Shrimad Bhagwat Katha) के दूसरे दिन कही।

उन्होंने कहा कि गोपिकाएं श्रीमद्भागवत की सबसे श्रेष्ठ भक्त मानी गई हैं, क्योंकि गोपिकाएं कोई भी कार्य करती हंै तो उनमें ध्यान श्रीकृष्ण का होता था, गोपियां पानी भरती हैं तो ध्यान श्रीकृष्ण का है,मक्खन निकालती है तो ध्यान श्रीकृष्ण का है, चाहे गाय दुह रही हो, झाड़ू लगा रही हो, बच्चों की देखरेख में लगी हो, लेकिन ध्यान श्री कृष्ण का ही होता था, तभी गोपियों को भगवान का धाम मिला। इसलिए गोपियों को भागवत भक्ति की आचार्य कहा गया है।

भागवत् भी यही सिखाती है कि आपको भगवान के लिये कुछ छोडऩा नहीं बस हर एक कार्य के साथ भगवान का चिंतन जोड़ दीजिये आपके जीवन का हर कार्य भक्तिमय हो जायेगा। उन्होंने परीक्षित के जन्म का वृत्तांत सुनाते हुए बताया किस प्रकार राजा परीक्षित (Raja Parikshit) के राज्य में कलयुग का आगमन हुआ और उन्होंने कलयुग को सीमित स्थान जुआ, शराब, मांसभक्षण, और व्यविचार ये चार स्थान कलयुग को दिए हैं और कलयुग ने एक स्थान स्वर्ण में मांगा मतलब जहां अवैद्य तरीके से धन प्राप्त होगा वहां कलयुग का निवास होगा और इसके पश्चात महाराज परीक्षित एक दिन अपने पूर्वजों के खजाने को देख उसमें से एक प्राण स्वर्ण मुकुट देखकर उसे अपने मस्तक पर धारण करते हैं और इसी रस्ते कलयुग उनपर सवार हो गया तो सोचा आज शिकार के लिए चलना चाहिए।

कभी नहीं जाते थे, शिकार के लिए। लेकिन आज कलयुग के प्रभाव में आकर वन में पहुंच गए। वहां बहुत से पशुओं का शिकार किया और जब प्यास से व्याकुल हो गए तो शमीक ऋषि (Shamik Rishi) के आश्रम में आये वहां ध्यान मग्न शमीक ऋषि को ढोंगी समझा कर उन गले में मारा हुआ सांप लपेट कर लौट आये। इधर जब शमीक ऋषि के बेटे श्रृंगी ने देखा तो राजा परीक्षित को श्राप दे दिया के आज के सातवे दिन तक्षक नाग के डंसने से परीक्षित की मृत्यु हो जाएगी। इधर जैसे ही मुकुट उतरा महाराज परीक्षित को ध्यान आया कि मेरे द्वारा एक संत का अपमान हुआ और प्रायश्चित करने लगे, तभी उन्हें पता चला के आज के सातवे दिन उनकी मृत्यु हो जाएगी, फिर बचे हुए जीवन को सार्थक करने के लिए मरिमान पुरूष के कर्तव्य को जाने हेतु निकल पड़े जहां महान संत सुकदेव (Saint Sukdev) जी से भेंट हुई और उनके मुख से श्रीमद्भागवत कथा का श्रवण कर मोक्ष को प्राप्त किया।

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AUTHORRohit

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