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चुनाव संदर्भ : आपका क्या होगा जनाबेअली…

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– राजधानी से पंकज पटेरिया :
चुनाव की रोज रोज बढ़ती सरकर्मियो  के चलतेसदी के महानायक अभिताभ बच्चन का मशहूर यह गीत तंज करते खूब उछाल रहे कुछ फुरसतिया भैया जी लोग।

उनका फोकस है वे कुछ माननीय है जिनने पार्षदी लिए अपने इन समर्थक लोगों के नाम ईमानदारी से  रिकमेंड किए थे। लेकिन सितारों ने साथ नहीं दिया। उन पार्षद टिकिट आकांक्षी के पत्ते कट गए। जाहिर है इससे उनकी नाराजी माननीयों पर छलकने लगी।भैया लोगो को गहरा आघात लगा। वे माननीयों को उलाहना देने लगे क्या क्या न सहे हमने सितम आपके खातिर? या रहते थे कभी जिनके दिल मे कभी जान से भी प्यारो की तरह, बैठे हैं उन्हीं के कूचे में हम आज गुनहगारों की तरह।
इधर माननियो की मुसीबत यह है कि वे कैसे भक्तजनों को कन्वेंस करें कि हमने तो कोई कोर कसर बाकी नहीं रखी। ऊपर से ही कंसीडरेशन नहीं हुआ, इसमें हमारा क्या गुनाह? टिकट से वंचित हुए लोग कन्वेंस नहीं हो पा रहे हैं। राजधानी के एक वार्ड में नहीं तकरीबन आधा दर्जन वार्ड में यही मंजर आमतौर पर नुमाया है। इन हवाओं में इन फिजाओं में मौजूदा विधायक हैं। कहीं पूर्व विधायक हैं कहीं कोई और संगठन से जुड़े प्रभारी मान्यवर है। सभी को अपने समर्थकों का असंतोष झेलना पड़ रहा है। यह सत्य है कि वे दोषी नहीं है। अपने स्तर से जितना भी बन सकता था उतनी सिफारिश वजनदारी से कर उन्होंने इन के नाम पार्षद की टिकट के लिए भिजवाए थे। लेकिन ऊपर सुनवाई नहीं हुई कि तो क्या करें। इधर टिकट वंचित भाई लोगों ने जाने क्या क्या अरमान सजाए थे, वे झटके में खत्म हो गए इससे जाहिर है उनकी खींज और हताशा। मुश्किल और चिंताजनक बात यह है कि 1 वर्ष बाद यही माननीय विधायक की टिकट के लिए समीकरण की बिछात किसके बूते सजाएगे।
उधर कलेजे में कांटा लगा है तो इधर माननीय को भी फिक्र की फांस चुभी है।इधर चुनाव मैं वार्ड से जो भी पार्षद चुनाव में खड़ा है। उसे जिताना है प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इधर असंतुष्टओं की एक फौज भी खड़ी हो गई 1 साल बाद विधानसभा चुनाव आ जाएंगे तब क्या होगा ? इधर ईर्षाग्रस्त लोग वही अमिताभ बच्चन का गाना ऊंचे स्वर में गाने लगे हैं अपनी तो जैसे तैसे याकि ऐसे वैसे कट जाएगी। आपका क्या होगा जनाबेअली… खैर साहब हम तो यही ऊपर वाले से गुजारिश करेंगे कि यह नाराजी यह  गुस्सा बरसात की एक झड़ी की तरह बरस जाए और फिर आपसी भाईचारा सद्भाव सहयोग का आसमान साफ-साफ चमक उठे। यूं यह वाजिव है अब खामोश निगाहों से भी चोट लग जाती है जब कोई अनदेखा कर चल देता है।
नर्मदे हर।

PATERIYA JI

पंकज पटेरिया

वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार

ज्योतिष सलाहकार
भोपाल
904 750 5691

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