– रोहित नागे :
डॉ. अंबेडकर : वो बोले संगठित रहो, हमने संगठन बना लिये। संगठन भी एक होने का एक जरिया है, लेकिन हमारे स्वार्थों ने संगठन को विभाजित होने का तरीका बना दिया। दलितों पर डॉ. भीमराव अंबेडकर पर एकाधिकार नहीं है, लेकिन वर्तमान में हालात यही बता रहे हैं कि डॉ. अंबेडकर सिर्फ दलितों के नेता हैं। जिस महा व्यक्तित्व का दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र का संविधान निर्माण में बड़ा योगदान रहा हो, वे किसी एक वर्ग विशेष के होकर कैसे रह सकते हैं?
दरअसल, इस देश में दलित और सवर्ण दोनों वर्गों में अतिवादियों ने इस लकीर को खींचा है। अंबेडकर दलित वर्ग से आते थे। अपने इस वर्ग को भी उन्होंने ऊपर उठाने के लिए संविधान में विशेष प्रावधान किये। उन्होंने सभी को समान रूप से देखा, क्योंकि दलित वर्ग को उस दौर में निम्रतर माना जाता था। वे शिक्षित होने पर जोर देते थे। उनके प्रयासों का परिणाम हुआ कि आज दलित और सवर्णों के मध्य जो गहरी और चौड़ी खाई थी, अतिवादियों के विचार और हरकतों को छोड़ दें तो बहुत हद तक कम हो गई है।
उन्होंने अपने अधिकारों के लिए दलित वर्ग को संगठित रहने की शिक्षा दी, जो उस समय बंटे हुए थे। उनका मानना था कि संगठित रहने और शिक्षा से ही मनुष्य का विकास और संगठन से ही मनुष्य की जीत होती है। अंबेडकर का व्यक्तित्व देखें तो वे केवल एक नेता नहीं थे, बल्कि विचार थे। वे करोड़ों ऐसे लोगों के लिए उम्मीद की किरण थे, जो उस वक्त हासिए पर धकेले गये थे। डॉ. अंबेडकर ने ऐसे लोगों के लिए संघर्ष किया और उन्हें एक बेहतर जिंदगी जीने के लिए माहौल दिया। ऐसे लोगों के लिए उनका नारा था, ‘शिक्षित बनो संगठित रहो और संघर्ष करो।’ उनका मानना था कि शिक्षा से आत्मनिर्भरता आती है, संगठन से ताकत मिलती और अन्याय के खिलाफ संघर्षशील होना चाहिए। स्वतंत्रता, समानता और भाईचारा उनके मंत्र रहे हैं। वे ऐसे धर्म के पक्षधर थे, जो सबको बराबर माने, भेदभाव न करे और मानवता को बढ़ावा दे। उन्होंने जिस संविधान की रचना में अपना महत्वपूर्ण योगदान दिया है, वह केवल दस्तावेज नहीं है, बल्कि जीवनदृष्टि है, आम नागरिक के जीवन को बेहतर बनाने वाला मार्गदर्शक है।
उनके संगठित रहो, के नारे की आज भी जरूरत है, लेकिन संगठित होने का अर्थ है, एकजुट होकर किसी मकसद के लिए प्रयास करना और लक्ष्य हासिल होने तक अथक कोशिश करना। आज मनुष्य संगठित हो रहा है, लेकिन वर्गवाद, जातिवाद के नाम पर संगठित हो रहे हैं, सैंकड़ों संगठन बना लिए और जातियों में भी कई संगठन हो गये। यानी ये संगठित होने के स्थान पर विखंडित हो रहे हैं, जिससे एकजुटता की जगह आपसी संघर्ष होना प्रारंभ हो गया है। विभिन्न जातियों में लोग संगठित हो रहे, लेकिन एक ही जाति के सैंकड़ों संगठन हो गये, और ये आपस में ही प्रतिद्वंद्वी होते जा रहे हैं। ऐसे में हम बाबा साहेब के मूल सिद्धांतों से भटक रहे हैं, यह कहने में कोई संकोच नहीं। जरूरत है, वास्तविक एकजुटता की, न कि दिखावे की।

Call – 9424482883