*रोहित नागे :
कल से चैत्र शक्ल प्रारंभ हो रहा है और पड़वा तिथि है। इस दिन से नवसंवत्सर, यानी विक्रम संवत् का नया वर्ष प्रारंभ होता है। इसे प्रतिपदा, उगादि (युगादि) भी कहा जाता है। हिन्दू धर्मावलंबी इसे नववर्ष के तौर पर मनाते हैं। महाराष्ट्र से जुड़े परिवार गुड़ी पड़वा मनाते हैं। गुड़ी का अर्थ विजय पताका होता है। यह तो रही अध्यात्म से जुड़ी बातें, लेकिन यह दिन गणितीय और खगोल विज्ञान की संगणना के मान से भी महत्वपूर्ण है।
चैत्रमास की शुक्ल प्रतिपदा को ही सृष्टि की उत्पति होना माना जाता है। माना जाता है कि इस दिन भगवान ब्रह्मा जी ने सृष्टि का सर्जन किया था। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम का राज्याभिषेक इसी दिन माना जाता है तो चैत्र नवरात्रि भी इसी दिन से प्रारंभ होकर मां दुर्गा की उपासना और व्रत प्रारंभ होते हैं। उज्जैनी सम्राट विक्रमादित्य ने इसी दिन विक्रमी संवत प्रारंभ किया था। शालिवाहन शक संवत् (भारत सरकार का राष्ट्रीय पंचांग) का प्रारंभ भी इसी दिन माना जाता है।
भारतीय सभ्यता में हर नये अवसर की खुशियां मनाने के संस्कार हैं। यही नूतन वर्ष में भी होता है। इस दिन न सिर्फ मनुष्य बल्कि प्रकृति भी प्रसन्नचित दिखाई पड़ती है। वातावरण आनंद और उल्लास से परिपूर्ण होता है। प्रकृति भी मुस्कुराती है।
सुबह पौ फटने से दिन की शुरुआत मानी जाती है और लोग मंदिरों में पूजन-भजन करके इस नये साल का स्वागत करते हैं, न कि मदहोश होकर रात के अंधेरे में। नूतन वर्ष का प्रारंभ आनंद-उल्लासमय हो इस हेतु प्रकृति भी सुंदर भूमिका बनाती है। इसी दिन से नया संवत्सर शुरू होता है।
चैत्र ही एक ऐसा महीना है, जिसमें प्रकृति वृक्षों तथा लताओं को पल्लवित व पुष्पित करती है। शुक्ल प्रतिपदा का दिन चंद्रमा की कला का प्रथम दिवस माना जाता है । ‘उगादि’ के दिन ही पंचांग तैयार होता है। महान गणितज्ञ भास्कराचार्य ने इसी दिन से सूर्योदय से सूर्यास्त तक दिन, महीना और वर्ष की गणना करते हुए ‘पंचांग ‘ की रचना की थी।
वर्ष के साढ़े तीन मुहूर्तों में गुड़ीपड़वा की गिनती होती है। इसी दिन भगवान श्री राम ने बालि के अत्याचारी शासन से प्रजा को मुक्ति दिलाई थी। भारतीय नववर्ष का प्रारंभ चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से ही माना जाता है और इसी दिन से ग्रहों, वारों, मासों और संवत्सरों का प्रारंभ गणितीय और खगोल शास्त्रीय संगणना के अनुसार माना जाता है।
आज भी जनमानस से जुड़ी हुई यही शास्त्र सम्मत काल गणना व्यवहारिकता की कसौटी पर खरी उतरी है। इसे राष्ट्रीय गौरवशाली परंपरा का प्रतीक माना जाता है। विक्रमी संवत किसी की संकुचित विचारधारा या पंथाश्रित नहीं है। हम इसको पंथ निरपेक्ष रूप में देखते हैं। यह संवत्सर किसी देवी, देवता या महान पुरुष के जन्म पर आधारित नहीं, ईस्वी या हिजरी सन् की तरह किसी जाति अथवा संप्रदाय विशेष का नहीं है।
भारत की समृद्धशाली परंपरा में होली के दूसरे दिन धुलेड़ी से ही वसंतोत्सव के साथ चैत्र मास की शुरुआत हो जाती है। इसका कृष्ण पक्ष हिन्दू नवसंवत्सर समापन का और शुक्ल पक्ष प्रारंभ माना जाता है। नववर्ष के स्वागत में प्रकृति में भी वासंती बहार की बेला प्रारंभ हो जाती है। मनमोहक सौंदर्य लिये प्रकृति नयी दुल्हन की तरह संवर जाती है। खेतों में सरसों के पीले फूल, गेहूं की बालियां मंद-मंद मुस्कान लिये झूमती हैं, निर्जर सघन जंगलों में पलाश और सेमल के फूलों का अनुपम सौंदर्य देखते ही बनता है। आम के वृक्षों पर मंजरी लदना शुरु होती हैं, वृक्षों में नयी-नयी कोपलें दिखने लगी हैं, कोयल की कुहू-कुहू आकर्षित करने लगती हैं, मन मयूर सा नाचने को करता है और ऐसा लगता है, जैसे प्रकृति का उत्सव चल रहा है और वह पूरी तरह से इस रंग में रंगकर नवसंवत्सर का स्वागत कर रही है।
भारतीय गौरवशाली परंपरा विशुद्ध अर्थों में प्रकृति के शास्त्रीय सिद्धातों पर आधारित है और भारतीय कालगणना का आधार पूर्णतया पंथ निरपेक्ष है। प्रतिपदा का यह शुभ दिन भारत राष्ट्र की गौरवशाली परंपरा का प्रतीक है। ब्रह्म पुराण के अनुसार चैत्रमास के प्रथम दिन ही ब्रह्मा ने सृष्टि संरचना प्रारंभ की। यह भारतीयों की मान्यता है, इसीलिए हम चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से नववर्षारंभ मानते हैं। हमारे देश में प्रकृति, शिक्षा तथा राजकीय कोष आदि के चालन-संचालन में मार्च, अप्रैल के रूप में चैत्र शुक्ल प्रतिपदा को ही देखते हैं।
यह समय दो ऋतुओं का संधिकाल है। ऐसा लगता है कि प्रकृति नवपल्लव धारण कर नव संरचना के लिए ऊर्जस्वित होती है। मानव, पशु-पक्षी यहां तक कि जड़-चेतन प्रकृति भी प्रमाद और आलस्य को त्याग सचेतन हो जाती है। आज भी यह दिन हमारे सामाजिक और धर्मिक कार्यों के अनुष्ठान की धुरी के रूप में तिथि बनाकर मान्यता प्राप्त कर चुका है। यह राष्ट्रीय स्वाभिमान और सांस्कृतिक धरोहर को बचाने वाला पुण्य दिवस है। हम प्रतिपदा से प्रारंभ कर नौ दिन में शक्ति संचय करते हैं।
कैसे करें इस दिन का स्वागत
नवसंवत्सर को मानने वाले इस दिन मस्तक पर तिलक, भगवान सूर्यनारायण को अघ्र्य, शंखध्वनि, धार्मिक स्थलों पर, घर, गांव, स्कूल, कालेज आदि सभी मुख्य प्रवेश द्वारों पर बंदनवार या तोरण (अशोक, आम, पीपल, नीम आदि का) बांध के भगवा ध्वजा फहराकर सामूहिक भजन-संकीर्तन व प्रभातफेरी का आयोजन करके भारतीय नववर्ष का स्वागत करें।