- स्वराज्य और स्वाभिमान की पुनर्स्थापना का दिन
अभिषेक तिवारी

शिवराज छत्रपति के पीछे, भारत की तरुणाई जागी।
इस अरुणध्वजा के नीचे आ वीरों की अरुणाई जागी।
जागा था हिन्दू तज आलस, पावन हिन्दू साम्राज्य दिवस..!
ज्येष्ठ शुक्ल त्रयोदशी, संवत् 1731 (06 जून 1674) को राज्याभिषेक पश्चात शिवाजी महाराज पूर्णरूप से छत्रपति अर्थात् एक प्रखर हिन्दू सम्राट के रूप में स्थापित हुये। छत्रपति शिवाजी महाराज के राज्यारोहण ने न केवल देश से मुगलों के वर्चस्व को अंतत: समाप्त किया, बल्कि पराजित हिन्दू मन में आत्मगौरव और स्वाभिमान को पुनस्र्थापित करते हुये भारत को स्वराज का स्वप्न देखने का एक आधार दिया।
आज का दिन इतिहास के पन्नों में दर्ज कोई तिथि मात्र नहीं है, यह आत्मगौरव, धर्मनिष्ठा और राष्ट्रचेतना का वह पर्व है, जिसे भारतीय मन आज भी श्रद्धा और गर्व से मनाता है। आज ही वह दिन था जब रायगढ़ दुर्ग पर वीर शिवाजी का विधिवत राज्याभिषेक हुआ। वे केवल एक राजा नहीं बने, वे बने छत्रपति-वह छाया जो प्रजा के सिर पर धर्म, न्याय और सुरक्षा का छत्र लेकर खड़ी हो।
यह केवल तिलक, मुकुट और राजसी आडंबर का आयोजन नहीं था। यह घोषणा थी उस स्वराज्य की, जिसकी कल्पना छत्रपति शिवाजी महाराज ने किशोरावस्था में की थी और जिसकी नींव उन्होंने युद्धभूमि में रक्त और तपस्या से रखी थी। यह राज्याभिषेक उस समय हुआ जब भारतवर्ष विधर्मी सत्ता के अधीन था, और हिंदू समाज राजनीतिक, सामाजिक व सांस्कृतिक दृष्टि से पराजित भाव में जी रहा था। ऐसे में उनका सिंहासन पर आरूढ़ होना युग परिवर्तन का उद्घोष था।
छत्रपति शिवाजी महाराज का यह अभिषेक केवल उनका निजी यश न होकर पूरे हिंदू समाज के स्वाभिमान की पुनप्र्रतिष्ठा थी। भारत के कोने-कोने में बसे वे लोग, जिनके मन में पराजय की पीड़ा थी, जिन्होंने अपनी संस्कृति को मिटते देखा था, उन्हें सैंकड़ों वर्षों में पहली बार यह अनुभव हुआ कि हम केवल पीडि़त, दमित, पराजित होने के लिये नहीं हैं, हम संगठित हों तो विराट दुर्दम्य शत्रु को भी हरा कर स्वधर्म और स्वराज्य को स्थापित कर सकते हैं।
छत्रपति शिवाजी महाराज ने केवल युद्ध ही नहीं जीते, उन्होंने धर्म रक्षा और न्याय नीति की नींव पर आदर्श राज्य की स्थापना की। यह राज्याभिषेक केवल एक ऐतिहासिक घटना न होकर सांस्कृतिक क्रांति थी। यह उस स्वराज्य की स्थापना थी जहां किसान, व्यापारी, सुरक्षित हो, स्त्रियों का सम्मान हो, समता, समानता और समरसता हो, जहाँ प्रत्येक नागरिक धर्मपूर्वक जीवन यापन कर सके। उन्होंने अपने राज्याभिषेक के माध्यम से यह स्पष्ट संदेश दे दिया कि अब भारत भूमि पर औरंगजेब जैसे अत्याचारियों का शासन सहन नहीं किया जायेगा। उनका शासन धर्मनिरपेक्ष नहीं ‘धर्मनिष्ठ’ था – परंतु उदार भी। उनके स्वराज्य ने राष्ट्र की आत्मा को सनातन मूल्यों से जोड़े रखा।
आज जब हम उनके राज्यारोहण की 351 वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, तब यह केवल स्मरण नहीं, एक आह्वान है- क्या हम उस स्वराज्य की उस भावना को आज भी जीवित रखते हैं? क्या हम भी अपने जीवन में धर्म, नीति, और राष्ट्रसेवा को स्थान देते हैं? क्या हम इस मिट्टी, इस संस्कृति और इस परंपरा की रक्षा को अपना दायित्व मानते हैं?
आइये, इस हिंदू साम्राज्य दिनोत्सव पर हम छत्रपति शिवाजी महाराज से प्रेरणा लेकर अपने जीवन में साहस, न्याय और धर्म के मूल्यों को अपनायेँ। जैसे उन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी हार नहीं मानी, वैसे ही हम भी सत्य और कर्तव्य के मार्ग पर अडिग रहें। उनके आदर्श हमें यह सिखाते हैं कि संकल्प, नेतृत्व और निष्ठा से किसी भी परिस्थिति को बदला जा सकता है।
जय भवानी। जय शिवाजी।
जय हिंदवी स्वराज्य।
भारत माता की जय।