होलिका दहन 6 मार्च की देर रात में करना ही है शास्त्र सम्मत

होलिका दहन 6 मार्च की देर रात में करना ही है शास्त्र सम्मत

इटारसी। इस बार होलिका दहन 6 मार्च की रात को करें या 7 मार्च की रात को, इसको लेकर विद्वानों व धर्म प्रेमियों में काफी भ्रांतियां व मतभेद व्याप्त हैं। धर्मसंघ इटारसी की एक बैठक इस संबंध में श्री राम जानकी मंदिर Shri Ram Janki Mandir) में हुई। जिसमें 6 मार्च की रात को ही होलिका दहन करने का शास्त्र सम्मत निर्णय लिया गया।

क्योंकि 7 मार्च को प्रतिपदा की रात में होलिका दहन नहीं करने का आदेश धर्म ग्रंथ निर्णय सिंधु और अन्य ग्रंथों में दिया गया है। क्योंकि प्रतिपदा की रात में होलिका दहन से जन धन की हानि होती है।

वरिष्ठ आचार्य व कर्म कांड के लब्ध प्रतिष्ठित विद्वान पंडित प्रभात शर्मा व कई शास्त्रों के साथ ही ज्योतिष शास्त्र के यशस्वी विद्वान पंडित अशोक शर्मा ने प्रमुख रूप से अपनी बात रखी। पंडित प्रभात शर्मा ने मार्तंड पंचांग के हवाले से बताया कि शास्त्रों , धर्म ग्रंथों के अनुसार भद्रा रहित प्रदोष काल व्यापिनी फाल्गुन पूर्णिमा में ही ‘होलिका दहन’ किया जाता है।

पंडित अशोक शर्मा ने बताया कि यदि प्रतिपदा ह्रासगामिनी (पूर्णिमा से कम मान वाली) हो तब पहले दिन भद्रा के पुच्छ में अथवा भद्रा के मुख को छोड़कर भद्रा में ही होलिकादहन किया जाता है। वहीं पंडित प्रभात शर्मा ने काल गणना कर कहा कि इस बार प्रतिपदा 7 मार्च को सायं 6.10 बजे से दूसरे दिन 8 मार्च को रात्रि 7.38 तक अर्थात 25 घंटे 28 मिनट की है।

जबकि पूर्णिमा 6 मार्च को सायं 4.17 बजे से 7 मार्च को सायं 6.10 तक है। अर्थात 25 घंटे 53 मिनिट तक है। इस तरह पूर्णिमा वृद्धि गामनी व प्रतिपदा ह्रास गामनी है। इस कारण स्पष्ट है कि होलिका दहन 6 मार्च की रात को करना ही शास्त्र सम्मत होगा।

फिर शास्त्र यह भी कहते हैं कि यदि दूसरे दिन,जो इस बार 7 मार्च की तिथि होगी, पूर्णिमा प्रदोष को स्पर्श ही न करे और पहले दिन अर्थात 6 मार्च को यदि निशीथ से पहले ही भद्रा समाप्त हो जाए तो वहां भद्रा समाप्ति पर पहले दिन अर्थात 6 मार्च को ही होलिका दहन किया जाए।

यदि यहां भद्रा निशीथ के बाद समाप्त हो रही हो तो भद्रामुख को छोड़कर, भद्रा पुच्छ में ‘होलिकादीपन’ होना चाहिए। यदि प्रदोष में भद्रामुख हो तो भद्रा के बाद अथवा प्रदोष के बाद होलिका दहन किया जाए। दोनों दिन यदि पूर्णिमा प्रदोष को स्पर्श न करे तो पहले ही दिन भद्रापुच्छ में होली जलाई जाए।

यदि वहां भद्रापुच्छ भी न मिले तो भद्रा में ही प्रदोष के अनन्तर होलिकादीपन करे। ज्योतिषाचार्य पंडित अशोक शर्मा ने बताया कि भारतीय मानक समय जिसे ist कहते हैं, मिर्जापुर के अनुसार माना जाता है। मिर्जापुर के पूर्व दिशा के भूभाग में व पश्चिम दिशा के भूभाग में करीब 19 मिनट का अंतर है। अतः सूर्यास्त का समय बदल जाता है तो प्रदोष काल भी बदल जायेगा।

प्रदोष काल की परिभाषा के लिए शास्त्रों में कहा गया है कि प्रदोषे रजनी मुखम। अर्थात रात्रि का प्रारंभ ही प्रदोष काल होता है। वैसे भद्रा के पुच्छ काल में 6 मार्च की रात 12.41 बजे से रात 1.59 तक भी होलिका दहन किया जा सकता है। क्योंकि यदि पूर्णिमा 7 मार्च को प्रदोष काल को स्पर्श नहीं कर रही है तो शास्त्रों के अनुसार पहले दिन ही होलिका दहन होना चाहिए।

विभिन्न स्थितियाँ’ होलिकादहन’ के लिए शास्त्रों में प्रतिपादित है। इस वर्ष (सं. 2079 वि. में) पूर्णिमा 6 मार्च, 2023 ई. को 16 घं. 17 मि. अर्थात सायं 4 बजकर 17 मिनट के बाद प्रारम्भ होकर 7 मार्च, 2023 ई. को 18 घं. 10 मि. अर्थात 6 बजकर 10 मिनिट तक रहेगी। जबकि सूर्यास्त का समय सायं 6.22 मिनट पर है।

स्पष्ट है 6 मार्च, 2023 ई. को यह पूर्णिमा पूर्ण रूप से प्रदोष व्यापिनी है। हालांकि 7 मार्च, 2023 ई. को भी पूर्णिमा भारत के कुछ भागों में प्रदोष व्यापिनी रहेगी। अतः उन थोड़े से भूभाग को छोड़कर देश के अधिकांश भूभाग पर, जिसमें मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र आदि शामिल हैं, 6 मार्च की रात या 7 मार्च को सूर्योदय के पूर्व रात 5.13 बजे के बाद होलिका दहन करना शास्त्र सम्मत होगा।

जबकि पहले दिन भद्रा यहां निशीथ के काफी बाद तक है। ऐसी स्थिति में पहले ही दिन भद्रामुख को छोड़कर भद्रापुच्छ में अथवा भद्रापुच्छ भी समय से न मिले तो भद्रा में ही ‘होलिकादहन’ किया जाएगा। 6 मार्च, 2023 ई. को भद्रामुख अर्ध रात्रि के बाद 25 घं. 59 मि. से अर्थात रात 1 बजकर 59 मिनिट से 26 घं. 41 मि. अर्थात 2 बजकर 41 मिनिट तक रहेगा।

इस दिन भद्रापुच्छ भी काफी देरी से अर्धरात्रि बाद ही 24 घं. 41 मि. अर्थात 12 बज कर 41 मिनिट से 25 घं. 59 मि. अर्थात 1 बजकर 59 मिनिट तक प्राप्त हो रहा है। अतः ऐसी स्थिति में भद्रा पुच्छ काल में भी होलिका दहन 6 मार्च, 2023 ई. को रात 12.41 बजे से रात 1.59 मिनिट के मध्य भद्रा पुच्छ काल में भी किया जा सकता है।

इसी का शास्त्रकार पुरजोर समर्थन करते हैं और यह तर्कसंगत भी है। क्योंकि भारत के कुछ पूर्वी प्रदेशों में दूसरे दिन यानी 7 मार्च, 2023 ई. को भी पूर्णिमा प्रदोष को स्पर्श कर रही है और वहां भद्रा का पूर्णतः अभाव भी है। अतः उन पूर्वी प्रदेशों में, जहां सूर्यास्त 18 घं. 10 मि. से पहले होगा, वहां (उन प्रदेशों में) यह ‘होलिका दहन’ 7 मार्च, 2023 ई. को भी प्रदोष में हो सकता है।

दरअसल इसी कारण से यह मतभेद भी पैदा हुए हैं। क्योंकि कुछ पंचांगों में पूर्वी प्रदेशों के स्थानीय समय अनुसार सूर्यास्त का समय 7 मार्च को सायं 6.10 बजे से करीब 19 मिनट पूर्व का बताया गया है। इसी आधार पर कुछ विद्वान 7 मार्च को होलिका दहन की बात कह रहे हैं।

कुल मिलाकर बात सिर्फ़ इतनी ही है कि भारतीय मानक समय व पूर्वी प्रदेशों के कुछ क्षेत्रों में स्थानीय मानक समय में अंतर होने से यह दुविधा पूर्ण स्थिति बनी है जिसको गंभीरता से समझना जरूरी है। अतः धर्म रक्षार्थ,शास्त्रों के अनुसार 6 मार्च को ही होलिका दहन करना सबके लिए जनहित में होगा। 

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