---Advertisement---
Click to rate this post!
[Total: 0 Average: 0]

ज़ज्बा जीत का…भरोसा रखें अमावस की स्याह रात के बाद पूर्णिमा की चांदनी भी छिटकती है

By
On:
Follow Us

इटारसी। एक ऐसा शब्द जो मुसीबत में आपको संबल प्रदान करे, पूछा जाए तो वह होगा ये वक्त गुजर जाएगा। सही भी है, वक्त चलायमान है। हमेशा एक सा नहीं रहता है। वक्त बदलता है। हर रात के बाद सुबह होती है। अभी काली घनी अमावस सी रात है तो चांदनी भी छिटकेगी। इतनी उम्मीद और हौसला भी रखना होगा, तभी हम इस संकट के दौर से निकलकर एक नयी और ताजगीभरी सुबह में पहुंच सकेंगे। इसी सोच के साथ जिन्होंने विजेताओं सा जज्बा दिखाया है, उनमें एक नाम है, पत्रकार अरविंद शर्मा के परिवार का। अरविंद ने सोचा भी नहीं था कि वे ऐसा मंजर अपनी आंखों से देखेंगे जो उनके स्मृति पटल पर हमेशा के लिए अंकित हो जाएगा। शुरुआती दिन तनाव और भय में गुजरे। लेकिन, कहते हैं ना, कि डर के आगे जीत है। अरविंद ने भी हिम्मत नहीं हारी। उनकी मां का स्वास्थ्य बिगड़ा, कुछ दिन स्थानीय स्तर पर उपचार कराया। लेकिन, संक्रमण फैफड़ों में फैल गया था। भोपाल के चिरायु अस्पताल जाना पड़ा। यह ऐसा दौर था कि उनको जगह मिलने में बहुत परेशान नहीं होना पड़ा। बस दो दिन बाद ही जो मंजर देखा कि रूह भी कांप गयी। हर रोज अस्पताल परिसर में किसी न किसी की मौत के बाद चीख-पुकार ने उनको भीतर तक हिला दिया। वे टूटने लगे थे, लेकिन भीतर से आवाज आयी कि जीतें या हारें, बिना लड़े कोई परिणाम प्राप्त नहीं होने देंगे। लडऩे का फैसला किया और हौसला जुटाया। दस दिन अस्पताल में बीते, इस दौरान सावधानी बरतते हुए दो-तीन बार कोविड केयर में भर्ती मां को नारियल पानी भी दे आये। उनको अहसास नहीं होने दिया कि वे कोविड से ग्रसित हैं, फिर लोगों के कॉल भी पहुंचे, सबसे संबल दिया और दस दिन के बाद आखिरकार जज्बे के साथ लडऩे का परिणाम मिला और अपनी मां को स्वस्थ कराके घर लौटे।

सोच बदली
यह सौ फीसद नहीं मान सकते कि किसी संक्रमित के साथ रहने से आपको भी संक्रमण हो सकता है। मां संक्रमित थीं, बच्चे उनके पास रहे, वे स्वयं उनको स्थानीय अस्पताल में उपचार कराने ले जाते रहे, सीटी स्कैन के लिए ले गये, सेवा की। 70 वर्षीय पिता भी मां के साथ रहे, सब सुरक्षित हैं। अलबत्ता, सभी के साथ ऐसा हो, यह भी जरूरी नहीं। सावधान रहना बहुत आवश्यक है। हम नहीं चाहते कि हमने जो पीड़ा झेली है, किसी और को झेलना पड़े, अस्पताल के दिन पीड़ा देते हैं, यहां तक कि आप दिमागी मरीज हो जाएं। अत: इसे हल्के में न लें, लोग घरों में रहें और कोरोना की चेन तोडऩे में प्रशासन के सहयोगी बने।

 

For Feedback - info[@]narmadanchal.com
Join Our WhatsApp Channel
Advertisement

Leave a Comment

error: Content is protected !!
Narmadanchal News
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.