---Advertisement---
City Center
Click to rate this post!
[Total: 0 Average: 0]

झरोखा: जिंदगी भोर है, सूरज की तरह निकलिए

By
On:
Follow Us

पंकज पटेरिया। बात उन दिनों की जब देश के प्रधानमंत्री श्री एच डी देवगौड़ा थे। एमपी के वरिष्ठ पत्रकार पद्मश्री विजय दत्त श्रीधर जी ने आंचलिक पत्रकार का राष्ट्रीय अधिवेशन पचमढ़ी में आयोजित किया था। देश तात्कालिक सूचना जनसंपर्क मंत्री के उपेंद्र सहित देश दुनिया के नामी गिरामी पत्रकार इस कार्यक्रम मे शामिल हुए थे। मैं दैनिक भास्कर संवाददाता था, लिहाजा अपने साथी पत्रकार ठाकुर जवाहर सिंह पवार, कल्याण जैन एक दो साथी और सहित हमकवरेज के लिए पीआरओ श्री पुष्पेश शास्त्री के साथ पचमढ़ी गए थे। अंग्रेजी दौर के बंगलओ को रेस्ट हाउस बनाया गया था। उन्ही में किसी एक खूबसूरत मगर सुने मे देवदारू अशोक आदि दरखतो से घिरे बंगले में हमारे ठहरने की व्यवस्था किसी तरह हो पाई थी। पहुचने पर खानसामे ने बताया सर चाय ले, शाम के खाने के लिए सब्जी बाजार लाना होगी, यहा बिजली बहुत जाती है, मोमबत्ती भी ले आऊंगा। अंधेरा होने के पहले लोट आऊंगा। आप बाहर न निकले दरबाजा भी बंद रखे। जंगल का रास्ता है। जंगली जानवर आ जाते है। उसके जाते ही पत्रकार मोज मस्ती में गप शप में लग गए। याद ही नही रहा किसी को शाम हो गई। घना अंधेरा बसर गया। कोर्टयार्ड से हम सब जैसे तैसे रेस्ट हाउस में अंदर आए, घुप अंधेरा था, रात के 9 बजे गए थे, न लाइट थी, न खानसा आया था। तेज बारिश अजीव डरावना माहोल हो गया था। तभी पवार साहब को सिगरेट पीते देख मै ने माचिस मांग ली। हिम्मत जुटा तीली सुलगा रेस्ट हाउस के बड़े बड़े आले टटोलने लगा, एक तीली बुझती दूसरी जलाता आगे चलता, कल्याणजी नाराज होने लगे। पूरी माचिस फूंक डालो कुछ नही मिलेगा। पर मै नही रुका, आखिर एक आले में बिल्कुल जल कर जमीन से चिपक गई, आधे इंच की मोम बत्ती दिख गई। आन न फानन उसे जलाया, तो आधे इंच की लो ने बंगले में पसरे फुफकारते अंधेरे की छाती चीर दी थी। सभी खुशी से भर गए थे, उनका डर भी भाग गया था। मेरी मुहिम जारी रही इधर उधर टटोलते हुए किचन तक पहुंच एक पुरानी लकड़ी की अलमारी दिखी, खोल कर देखा, कुछ आलू प्याज भर पड़े थे। मन हुआ। एक हाथ ऊपर भी फिरा लू शायद डूबते को तिनका मिला जाय। हुआ भी बही हाथ में जो आया बह एक मोटी मोमबत्ती ही थी। मै खुशी से दौड़ता हाल के आले में बस अंतिम सांस ले रही छोटी सी मोमबत्ती के पास पंहुचा और बड़ी मोम बत्ती उससे जलाली। सब साथियों ने तालिया बजाई। खान सामा आ गया। लाइट नही आई। उसे सारी दास्तान सुनाई बोला सर इधर ऐसा आए दिन होता है।,चार चार दिन लाइट गुल रहती। पहाड़ी इलाका पता नही लगता कहा फाल्ट हुआ। इसी लिए मै बाजार भागा था।रात में साहब लोगो को परेशानी नही हो। खेर भोजन कर सो गए। सुबह उठ कर समारोह स्थल पहुंच कर कार्यक्रम कवर किया। शाम होशंगाबाद लोट आए। आज के महामारी के बेहद दुख दाई माहोल में यह घटना बहुत प्रेरणा देती, हिम्मत देती। कैसी भी प्रतिकूल हो वक्त होंसला रखे, ईश्वर पर भरोसा, जारी रखे कोशिश कामयाबी कदम चूमती है। हम अपनी कोशिश जारी रखे। कवियत्री विमल गांधी जी
की यह कविता बहुत मोजू लगती है इस माहोल में…
हो के मायूस न शाम से ढलिए
जिंदगी एक भोर है,
सूरज की तरह निकलिए।

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया, वरिष्ठ पत्रकार कवि
संपादक शब्द ध्वज
9893903003, 9407505691

For Feedback - info[@]narmadanchal.com
Join Our WhatsApp Channel
Advertisement

Leave a Comment

error: Content is protected !!
Narmadanchal News
Privacy Overview

This website uses cookies so that we can provide you with the best user experience possible. Cookie information is stored in your browser and performs functions such as recognising you when you return to our website and helping our team to understand which sections of the website you find most interesting and useful.