- पंकज पटेरिया

इन दिनों प्रदेश सरकार की बैठक पचमढ़ी में हुई। मुख्यमंत्री डॉ मोहन यादव ने करोड़ों रुपए की विकास प्रगति की योजनाएं पचमढ़ी को भेंट की। पहले दिन ही पूरी कैबिनेट ने परोसे आमों का जायका लिया। इसी के चलते इन पंक्तियों के लेखक को एक दिलचस्प किस्सा आमों से जुड़ा याद आ गया। वह यह कि जब एक ईमानदार अधिकारी को सरकारी बाग के आम खरीदने के बाद बिल का भुगतान करने पर निलंबन का सामना करना पड़ा था, और मामला हाई प्रोफाइल होने के कारण निलंबन की अवधि सालों साल चली थी, और वह अधिकारी भारी आर्थिक संकट से घिर गए थे।
दरअसल यह वाकया पुराना है,लेकिन सोलह आने सच है। उन दिनों यह पत्रकार राजधानी के एक प्रमुख अखबार का नर्मदापुरम जिला संवाददाता था। तब कांग्रेस के एक बड़े नेता प्रदेश के मुख्यमंत्री थे। जो अब स्वर्गीय हो गये। वे भी गर्मी के तपते दिनों में पचमढ़ी रहना पसंद करते थे। उस साल भी मुख्यमंत्री प्रवास पर थे। एक शाम उनकी पत्नी शासकीय उद्यान घूमने गई। पचमढ़ी के लजीज आमों की शोहरत शुरू से दूर-दूर तक रही है। नतीजतन वे भी आमों का स्वाद लेने से खुद को नहीं रोक सकीं। उन्होंने उद्यान में ही रसीले आमों का लुत्फ उठाया और पैककर भेजने का आदेश भी दिया।
उस समय उद्यान मैनेजर एक नर्मदापुरम निवासी अधिकारी थे। बरसों पहले वे भी दिवंगत हो गए। नर्मदापुरम की भैयालाल गली में रहते थे। मेरे परिचित भी थे। मैडम के हुकम की ना फरमानी एक कृषि अधिकारी कैसे कर सकता था। लिहाजा उन्होंने आनन फानन चार पांच किलो आम पैक करवाए और बिल के साथ मैडम की खिदमत में पेश कर दिए। आम पाकर मैडम का मन मयूर नाच उठा, लेकिन बिल देख कर वे गुस्से से तिलमिला उठीं। फलस्वरूप बाग मैनेजर का बिल भेजने की जुर्रत करने पर निलंबन का ईनाम मिला।
बस फिर क्या था, उक्त अधिकारी बरसों तक सस्पेंशन भोगते रहे। बड़ी मुश्किल से उनके दिन गुजरते थे। मुद्दत बाद उनके दिन फिरे वे बहाल हुए, जिंदगी पटरी पर लौटी।
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
संपादक शब्द ध्वज।