माखन नगर: चाह नहीं मैं सुरबाला के…

Post by: Poonam Soni

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डॉ. प्रतिभा सिंह परमार राठौड़/ माँ नर्मदा के पावन तट पर बसा है जिला होशंगाबाद। राजमार्ग से मढ़ई और पचमढ़ी जाते समय होशंगाबाद से लगभग 22 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा कस्बा है बाबई (माखननगर)। बाबई जो न जाने कितनी यादों को अपने भीतर समेटे हुए है। बाबई जिसे अब लोग ‘माखननगर’ के नाम से जानते हैं। वही बाबई जिस क्षेत्र से “भारत छोड़ो आंदोलन” में लगभग 42 स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आजादी की लड़ाई में शामिल हुए। बाबई जिसने जन्म दिया‘ एक भारतीय आत्मा ’ शिखर पुरुष माखन लाल चतुर्वेदी को। वही माखन दादा जिन्होंने रच डाली एक ऐसी कालजयी रचना, ‘‘पुष्प की अभिलाषा ’’ जिसने हिन्दी साहित्य संसार में नये आयाम स्थापित किए। उनकी इस बहुचर्चित कविता ‘ पुष्प की अभिलाषा ’ को अपनी पाठ्यपुस्तक में पढ़ते हुए म. प्र. का हर बच्चा बड़ा हो रहा है। ‘‘पुष्प की अभिलाषा’’ जिसने संपूर्ण राष्ट्र को एक सूत्र में बांधने का पावन पुनीत कार्य सम्पन्न किया। बताया जाता है कि एक बार महात्मा गांधी माखन दादा सहित सबके मना करने के बाद भी स्वयं चलकर माखन लाल चतुर्वेदी से मिलने बाबई तक आए थे। उस समय तवा नदी पर पुल भी नहीं था । रास्ते तो खराब थे ही । माखनलाल चतुर्वेदी ने तो प्रदेश का मुख्यमंत्री तक बनने से इंकार कर दिया था। म. प्र. के एक प्रतिष्ठित पत्रकार आत्माराम यादव की रिर्पोट के अनुसार ” क्या आप इस सच को जानते हैं जब माखनलाल चतुर्वेदी प्रथम मध्यप्रदेश राज्य के मुख्यमंत्री बनने वाले थे लेकिन उन्होंने यह कहकर इंकार कर दिया कि मैं शिक्षक और साहित्यकार होने के नाते ‘ देवगुरू ’ के आसन पर भी हूं और तुम मुख्यमंत्री बनाकर मेरी पदावनती कर ‘ देवराज ’ बनाना चाहते हो।’’

उस समय हुआ यूं कि स्वाधीनता के बाद जब मध्यप्रदेश नया राज्य बना था तब ये प्रश्न उठ खड़ा हुआ कि किस नेता को इस राज्य के प्रथम मुख्यमंत्री पद की बागडोर सौंपी जाये ? किसी एक नाम पर सर्वसम्मति नहीं बनी। तब तीन नाम उभर कर सामने आये । पहला माखनलाल चतुर्वेदी का , दूसरा पं. रविशंकर शुक्ल का और तीसरा पं. द्वारका प्रसाद मिश्रा का। कागज के तीन टुकड़ों पर ये नाम अलग-अलग लिखे गये । हर टुकड़े की एक पुड़िया बनाई गई। तीनों को आपस में मिलाया गया। पुड़िया के उस ढेर में से केवल एक पुड़िया निकाली गई जिस पर पं. माखन लाल चतुर्वेदी का नाम अंकित था। इस प्रकार यह तय हुआ कि वह नवगठित मध्यप्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री होंगे। तत्कालीन दिग्गज नेता माखन दादा के पास दौड़े चले आए। सबने उन्हें इस बात की सूचना और बधाई भी दी कि अब आप को मुख्यमंत्री के पद का कार्य-भार सम्भालना है। पं. माखनलाल चतुर्वेदी ने सबको लगभग डांटते हुए कहा वही बात कही जिसका उल्लेख मैं ऊपर कर चुकी हूं। उनके द्वारा इस प्रस्ताव को अस्वीकृत करने के पश्चात माखन दादा की सहमति से ही पं. रविशंकर शुक्ल को नवगठित मध्य प्रदेश का पहला मुख्यमंत्री बनाया गया।

माखनलाल चतुर्वेदी के बाद हिंदी साहित्य जगत में ठा. बृजमोहन सिंह‘ सत्यकवि ’ का नाम उभर कर सामने आया। उर्दू अदब में “चंद्रभान खयाल” साहब ने बाबई का नाम रोशन किया। राजनैतिक क्षेत्र में शरद यादव ने भी विभिन्न पदों पर रहते हुए बाबई को गौरवान्वित किया।

माखन नगर बाबई में नगर पंचायत के सामने मंगलवारा में पुरानी नक्काशीदार शिल्पकला का अद्वितीय उदाहरण एक छतरी के रूप में स्थापित है जो आज भी उस समय की कला की कहानी कहता है।

बाबई में ही बावड़ी वाले बालाजी के नाम से एक मंदिर है जो होल्कर नरेश द्वारा इंदौर में स्थापित काँच महल के समान है । यहाँ अनेक प्रांतों से अनुयायी आकर पूजन-मन्नत करते हैं । पूर्व में यहां एक सीढ़ी वाला तालाब भी रहा है । वर्तमान में ‘ जल बचाओ ’ के नारे भर सुनाई देते हैं । इस पर अमल शायद ही कहीं देखने में आया हो किन्तु छोटा सा ये नगर वर्षों से अपने स्तर पर कम संशाधनों के बावजूद ‘‘ पानी बचाओ आंदोलन ’’ को सार्थक कर रहा है । इसलिए यहां कभी पानी की कमी नहीं होती । न ही इस कस्बे के निवासी कभी ‘ जल संकट ‘ का सामना करते हैं । फिर माँ नर्मदा की कृपा दृष्टि और तवा का आर्शीवाद भी तो हमारे साथ है ।

एक सौ पचास वर्ष से सम्पूर्ण जिले में अपना स्थान कायम रखते हुए प्रति वर्ष श्री रामलीला का मंचन भी बाबई में किया जा रहा है जो इतिहास और जीवन के विविध स्वरूपों को अभिव्यक्त करती है। इसके अतिरिक्त एक ऐसा कार्यक्रम भी बाबई में आयोजित किया जाता रहा जिसमें तुलसी दास जी का विमान निकाला जाता था। ” तुलसी जयंती ” भी बाबई में वर्षों से मनाई जाती रही है जिसका अनुकरण बाद में विदिशा और अन्य जिलों ने भी किया।

बाबई जहां पर ‘पर्यावरण’ की चिंता करते हुए आज से 100 साल पहले एक स्थानीय मालगुजार ने लगभग 250 आम के वृक्ष रोपित किए थे जो आज भी पंक्ति-बद्ध नतमस्तक खड़े हैं। ये वही बाबई है जहाँ से ” बाबई का जाम ” कहा जाने वाला ‘ अमरूद ‘ प्रदेश स्तर पर विक्रय होता है और जिसके कारण देश भर में बाबई की अपनी एक अलग पहचान बन गई है।

3300 एकड़ में फैला प्रदेश का प्रथम ” यांत्रिकी कृषि प्रक्षेत्र ” भी बाबई में ही है जहां के कटहल और आम का बगीचे पूरे देश में अपनी एक अलग पहचान रखते हैं। अचार , जूस आदि का निर्माण भी यहां होता है ।

बाबई क्षेत्र में एक से अधिक किस्मों की खेती होती है जिसमें धान, तिलहन, सब्जियाँ, गन्ना आदि उल्लेखनीय है। इससे किसान आर्थिक स्थिति रूप से को मजबूत हुए हैं । आज खाद्यान्न की समस्या को लेकर शासन चिंतित जरूर है मगर बाबई और उसके आसपास का क्षेत्र प्रचुर मात्रा में गेंहू का उत्पादन करता है जो कि पंजाब के समकक्ष अपने को स्थापित कर चुका है। गुणवत्ता और मात्रा में यहां के उत्तम किस्म के गेहूं ने बाबई का महत्व बढ़ाया है। ज्ञातव्य है कि इस क्षेत्र से गेहूं का निर्यात विदेशों तक किया जाता है। बाबई उन्नत कृषि की दिशा में निरंतर अग्रसर है। तवा बाँध की नहरों के कारण यह सिंचाई क्षेत्र भी घोषित हुआ है ।

मेरा ‘ माखन नगर’ , मेरा “बाबई” अपने आप में यादों का अनमोल खजाना समेटे हुए है। बाबई की सरजमीं को हजारों सलाम।

मेरी बस पहचान यही है
माखन नगरी की वासी हूँ ,
कविताओं का सम्मान यही है
माखन नगरी की वासी हूँ ।

शब्द ढूँढते ‘ सुख का सागर ’
शब्द ढूँढते ‘ मनुहारों का घर ’ ,
शब्द ढूँढते ‘ परिहास – मीठे ‘
शब्द ढूँढते मन में ‘ बसर ‘ ।

टीसों का ‘ वनवास ’ यही है ,
माखन नगरी की वासी हूँ ।

तीक्ष्ण-बाण नहीं लेते प्राण
है विचरित यहाँ बस मुस्कान ,
वस्तु विनिमय लाभ-शुभ है
दे दो , ले लो बस मुस्कान ।

यहां आदान-प्रदान यही है ,
माखन नगरी की वासी हूँ ।

राह में हो अगम जटिलता
बातों में फिर भी सरलता ,
शीतलता तपते चेहरों में
मुस्कान में भी है सौम्यता ।

जिजीविषा है , जीवन यही है ,
माखन नगरी की वासी हूँ ।

सावन सा मिलता है दुलार
चले पुरवाई भी ले के प्यार ,
कहां लगाना है घात न जाने
मन में है मिठास अपार।

रिश्तों का ‘ मधुमास ’ यही है ,
माखन नगरी की वासी हूँ।

 

डॉ. प्रतिभा सिंह परमार राठौड़

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