नर्मदापुरम। संस्कृत संभाषण शिविर में तीसरे दिन स्वस्तिवाचन-गणेश वंदना के बाद रटनाभ्यास (रिवीजन) करवाया इस दौरान 6 विभक्तिया संस्कृत प्रशिक्षक कांची परसाई ने मणिद्वीप में बताई और संबंध (रिश्ते) उदाहरण देकर बताए। इसके अलावा घड़ी के चित्र बनाकर संस्कृत में समय देखना और बोलना बताया व 1 से लेकर 50 तक गिनती को संस्कृत लिखना और बोलना सिखाया। इस दौरान स्त्रीलिंग, पुर्लिंग और नपुसकलिंग में शब्दों को पहचाना भी बतलाई। वहीं नए आये विद्यार्थियों को संस्कृत में अपना नाम बोलना और दूसरे का नाम पूछना बताया। संस्कृत में उदाहरण देकर अन्य व्यक्ति को धन्यवाद और स्वागत करना भी सिखाया।
भारत को इतना पवित्र क्यों माना है
आचार्य सोमेश परसाई ने बताया कि पूरे विश्व में भारत को इतना पवित्र इसलिए माना क्योंकि संस्कृत, संस्कृति और संस्कार बचे हुए हैं? यहीं गंगा, यहीं नर्मदा, यहीं भगवान कृष्ण ने जन्म लिया, यहीं भगवान राम ने जन्म लिया है। भारत माता ने नाना प्रकार के वीर सपूतों को जन्म दिया है। यह धरती धर्म से परिपूर्ण है इसको डिगा और हिला कोई नहीं सकता है। क्योंकि इसकी जड़ों में भगवान स्वयं बसते हैं।
हमारी योनी पशु योनी
आचार्य श्री परसाई ने बताया की हम सब 84 लाख योनियों के चक्कर काटकर पशु योनी में है। उन्होंने बताया कि पशु योनि का अर्थ होता है? उदाहरण देकर बताया कि खाना-पीना, उठना, बैठना और सोना यह पशु योनी है। इस मुख्य कारण है कि हम योनी के विकार भूल नहीं पा रहे हंै क्योंकि हम दिनभर सोते हैं। तुलसीकृत रामायण में तुलसीदास ने लिखा है कि प्रात: काल उठकर रघुनाथा, माता-पिता गुरु नावई ही माथा।।