कृपया दुआ देने आएं, दुख देने नहीं

कृपया दुआ देने आएं, दुख देने नहीं

कृपया दुआ देने आएं, दुख देने नहीं शादी-विवाह या फिर जन्म के मौके पर किन्नर समुदाय की तरफ से बधाई मांगने का रिवाज है। इन दिनों इनकी टोली बधाई के एवज में खुशी से जो मिले उतने में संतुष्ट नहीं हो रहे हैं, बल्कि इनको मुंहमांगी रकम चाहिए, नहीं देने पर ये अभद्रता भी करने लगते हैं और बददुआ देने की बात करने लगते हैं। हमारा समाज इनकी बद दुआ से डरकर किसी भी तरह से जुगाड़ करके पैसा देता है। चाहे, आपको कजऱ् क्यों न करना पड़े, इनको मुंहमांगी राशि चाहिए। हाल ही में एक विवाह वाले घर में इन्होंने 11 हजार की राशि अड़कर ले ली। पैसे पास नहीं थे, संबंधित को 11 हजार रुपए का कर्ज लेना पड़ा।

आखिर किसी तरह से कर्ज लेकर विवाह करने वाले के पास क्या बचता है? जो इनको दुआओं के बदले दुख देकर चले जाते हैं? क्या, ऐसे में इनको उन परिवारों की बद दुआ नहीं लगती होगी? सवाल विचार करने योग्य है। इनकी इतनी ज्यादा मांग रहती है कि देने वाले की उतनी हैसियत नहीं होती और इसको लेकर कई बाहर बहस तथा मार-पिटाई की स्थिति भी बन जाती है। इसके लिए समाज को आगे आकर कोई निर्णय अवश्य लेना चाहिए। प्रशासन को इस समस्या का कोई समाधान अवश्य निकालना चाहिए। पंजाब में एक गांव ने इसकी बधाई राशि निश्चित कर दी है, इससे अधिक मांगने पर वे पुलिस बुला लेते हैं। यहां भी सामाजिक संगठनों को, जनप्रतिनिधियों और पुलिस तथा स्थानीय प्रशासन के अधिकारियों को आगे आना चाहिए ताकि गरीब परिवारों को इस तरह की लूट से बचाया जा सके।

दरअसल, कई मर्तबा नौबत लड़ाई-झगड़े तक पहुंच जाती है, ऐसे में पुलिस और प्रशासन को हस्तक्षेप करना ही पड़ेगा, अत: पहले से ही ऐसे प्रयास किये जाने चाहिए कि यह नौबत न आए। सामाजिक संगठनों के साथ प्रशासन को किन्नर समुदाय को भी शामिल करके तय करना चाहिए कि बधाई की अधिकतम राशि कितनी हो। वैसे ट्रेन में तो किन्नरों के मांगने पर प्रतिबंध लगा ही है, यदि इनकी जबरदस्ती नहीं रुकी तो समाज भी कहीं इस तरह के प्रतिबंधों की मांग करने लगा तो किन्नर समुदाय के लिए यह ठीक नहीं होगा। अत: इस समुदाय को भी मानवीय रुख अपनाना चाहिए, यदि कोई इस स्थिति में नहीं है कि वे इतनी बड़ी रकम दे सके तो उसे रियायत देनी भी चाहिए।

पहले किन्नर समुदाय आपकी बलाएं लेकर दुआएं देने के बदले जो भी नेग खुशी से मिल जाए ले लेते थे, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने अड़ीबाजी और जबरन वसूली शुरू कर दी तो लोग उनसे दूरी बनाने लगे। भोपाल में तो स्वयं किन्नरों ने लोगों के बीच बिगड़ती छवि को सुधारने पहल करते हुए ‘बधाई’ या नेग की रकम अधिकतम 1100 रुपए करने का निर्णय लिया। इसके लिए उन्होंने पुलिस और प्रशासन से इसे लागू कराने की मांग भी की। नेग तय कराने की पहल किन्नर तब्बू ने की। उनका कहना था हम लोगों की छवि खराब हो रही है। कुछ समय से लोग उन्हें घर में घुसने तक नहीं देते। रुपए तो मिल जाते हैं, लेकिन सम्मान पीछे छूट गया। यही कारण है उन्होंने अपने गुरू से बात कर ‘बधाई’ की रकम अधिकतम 1100 रुपए करने का निर्णय लिया। इसमें संपन्न लोगों के घर से यह राशि 2100 रुपए होगी।

भोपाल में ही एक मामला ऐसा आया था कि एक अधिकारी के यहां बधाई मांगने पहुंची किन्नरों की टोली की अधिकारी की पत्नी से बहस हो गयी और टोली ने उन्हें गालियां दीं और अश्लील हरकतें कीं। इससे परेशान होकर अधिकारी की पत्नी ने रुपए तो दे दिए थे, लेकिन बाद में अधिकारी ने मंगलवारा थाने में अड़ीबाजी की शिकायत भी दर्ज करा दी थी।

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AUTHORRohit

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