– शब्द खो रहे हैं मूल अर्थ : डॉ व्यास
सोहागपुर। आज के समय में शब्द अपने मूल अर्थ होते जा रहे हैं। पहले संप्रदाय का अर्थ एक विशेष गुण वाला समूह होता था। आजकल सांप्रदायिक शब्द कुछ और अर्थ दे रहा है । उक्त बात डॉक्टर संतोष व्यास ने गुरुवार को स्वर्गीय अतुल दुबे अलंकार स्मृति प्रसंग के मुख्य अतिथि के रूप में कहीं ।इस अवसर पर अध्यक्षता आध्यात्मिक संत पंडित मनमोहन मुद्गल ने की। मंच पर साहित्य परिषद अध्यक्ष पंडित राजेंद्र सहरिया समीक्षक नारायण श्रीवास्तव समाज सेवी कन्नूलाल अग्रवाल एवं शायर खलील करेलवी मौजूद थे। कार्यक्रम का प्रारंभ मां सरस्वती की पूजन एवं स्वर्गीय अतुल दुबे अलंकार के चित्र पर माल्यार्पण से हुआ। मंच पर मौजूद अतिथियों का स्वागत युवा कवि श्वेतल दुबे ने किया। साहित्यकार अतुल दुबे अलंकार की स्मृति में काव्य गोष्ठी का आयोजन किया गया। काव्य गोष्ठी में नन्ही कवियत्री आशावरी ठाकरे, सृष्टि दुबे के साथ ही कविगण शैलेंद्र शर्मा, संजय दीक्षित ,गजेंद्र ठाकुर, प्रबुद्ध दुबे, अभिषेक चौहान ,जीवन दुबे ,राजेश शुक्ला, अमित बिल्लोरे ,कवि संतोष व्यास होशंगाबाद ,नारायण श्रीवास्तव करेली, शायर खलील करेलवी एवं साहित्य परिषद अध्यक्ष गीतकार राजेंद्र सहारिया, एस आर गोहिया ने कविता पाठ किया। कवि गोष्ठी का संचालन अमित बिल्लोरे ने किया। कवि गोष्ठी में शायर खलील करेलवी ने कोरोना परिस्थिति पर बेहतरीन नज्म पढ़ी। इस कार्यक्रम में श्रोताओं के रूप में उपस्थित व्यवस्थापक कृष्णा पालीवाल, आकाश रघुवंशी, प्रशांत जायसवाल, डॉक्टर संजीव शुक्ला, समाजसेविका सुमित्रा देवी , संजय दुबे, चंद्रमोहन दुबे, अनिल गैहरैया ,प्रदीप दुबे ,अभिनव पालीवाल शरद चौरसिया आदि ने कवि गोष्ठी का आनंद लिया।
कवि मंच से पढ़ी गई ये कविताएँ :
समय चुनोती देने आया पढ़ बेटी
अपनी किस्मत अपने हाथों गढ़ बेटी।
कवि संतोष व्यास होशंगाबाद
जुग जुग गावें पीढियां कहानी बनाए रखियो ,मेहरवानी बनाए रखियो।
गीतकार राजेन्द्र सहारिया
गौरैया तुम आती नहीं हो ,
मैं गाँव कस्बे की कहां तक कहूं
बेशक हमारे घर पिंजरे हो गए है।
साहित्यकार नारायण श्रीवास्तव करेली
मैं पत्थर हूं, मेरा कैसा मुकद्दर है
कोई खून बहाता है कोई पूजता है।
शायर जलज शर्मा
जिंदगी तुझसे मैं झगडुं चल,
ज्यादा झुकूं थोड़ा अकड़ू चल।
गीतकार अमित बिल्लोरे
उसने मुझसे जितना दुर्व्यवहार किया
मैंने उससे उतना ज्यादा प्यार किया।
आखिर उसके होठों ने हां कर दी है
प्यार को मैने प्यार से ही तैयार किया।
कवि राजेश शुक्ला