![नाम की तरह तुम शांत हो गये, हमारे दिलों में दुखों का ज्वालामुखी विस्फोट करके नाम की तरह तुम शांत हो गये, हमारे दिलों में दुखों का ज्वालामुखी विस्फोट करके](https://narmadanchal.com/wp-content/uploads/2022/09/Prashant.jpg)
नाम की तरह तुम शांत हो गये, हमारे दिलों में दुखों का ज्वालामुखी विस्फोट करके
* रोहित नागे :
प्रशांत। यथा नाम, तथा गुण। पत्रकारिता का चमकता सितारा, शांत, हो गया। प्रशांत ने जब भोपाल में जब पत्रकारिता की, तब भी अपनी माटी में घुल मिलकर काम करने की तीव्र इच्छा को देखते हुए हम उसे इटारसी लेकर आये। बहुत कम लोगों को पता होगा, प्रशांत ने नर्मदांचल में पहली कर्मभूमि इटारसी को बनाया। बेहद कम समय के लिए ही सही। महज 8 दिन।दरअसल, प्रशांत दुबे की इच्छा थी, जिला मुख्यालय पर काम करने की। मेरी पहली मुलाकात भोपाल में उन दिनों तेजी से उभरते एक अखबार के दफ्तर में हुई जहां हम तीन दिवसीय अधिवेशन में शामिल हुए थे। वहीं रात को जब हम लोग हॉल में सोते थे, तो अपने-अपने बारे में एक दूसरे को बताते थे। पूरे हाल में करीब सौ रिपोर्टर थे। प्रशांत ने जब बताया कि वे होशंगाबाद (उन दिनों जिले का यही नाम था) के रहने वाले हैं तो अच्छा लगा कि अपने जिले का एक बंदा मिला। बैतूल और होशंगाबाद वाले मिलकर घंटे बतियाते थे। मैंने ही कहा, प्रशांत कभी इच्छा नहीं हुई कि अपने जिले में काम करें। हालांकि राजधानी में पत्रकारिता करना ज्यादातर लोगों की इच्छा होती है। प्रशांत का जवाब था, भैया संपादक जी अनुमति दे देंगे तो कोई दिक्कत नहीं है।
मैंने तत्काल शीले भाईसाहब (श्री अरविंद शीले, उन दिनों हमारे संपादक थे) से बात की। उन्होंने कहा, वैसे भी इटारसी में तुम्हें दो रिपोर्टर की जरूरत होगी, ही। प्रशांत जा सकते हैं। तीसरे दिन एक जीप में कम्प्यूटर सिस्टम लेकर हम रात को भोपाल से रवाना हो गये। देर रात इटारसी पहुंचे, प्रशांत को रात गोठी धर्मशाला में रुकवाया। केवल एक सप्ताह प्रशांत ने इटारसी में काम किया। मन तो जिला मुख्यालय पर काम करने का था। सातवे दिन कहा, भैया आज रविवार है। आफिस बंद रहे, बाजार में सन्नाटा रहा। कोई खबर के लिए बाहर नहीं जा सका। मैंने कहा कोई बात नहीं, नयायार्ड में एक चोरी की घटना हुई है, वहां जाकर देख आओ। प्रशांत ने खबर लाकर मुझे दी और कहा, भैया यदि मैं होशंगाबाद में काम करुं तो आप सर से बात कर सकते हैं, वहां काम करने का मन है। मैंने भोपाल बात की और सोमवार से प्रशांत दुबे होशंगाबाद आफिस चले गये। वे तब से ही वहीं अपनी सेवाएं दे रहे थे, बहुत बड़ा नाम अपनी काबिलियत के दम पर स्थापित कर लिया। लोगों के दिलों में राज किया, पत्रकारिता में काफी कुछ हासिल करने के बावजूद, अपने नाम के अनुरूप शांत और स्थित रहे। पहली कर्मस्थली इटारसी थी, दुनिया से रुख्सत होने से पहले वे वापस यहां आये, जाने से आधा घंटे पहले मुझसे मिले। यहां कर्म करने का अंतिम दिन रविवार था। आज पंचतत्व में विलीन होने का दिन रविवार है। आज भी प्रशांत एकदम शांत, अत्यधिक शांत थे। और उनको अंतिम विदाई देने वालों के मन के भीतर दुखों के ज्वालामुखी का विस्फोट हो रहा था। कभी-कभी, यह वाक्य बड़ा बेमानी सा लगता है ‘ईश्वर जो करता है, अच्छे के लिए करता है। ये अच्छा नहीं हुआ। प्रशांत तुम बहुत याद आओगे, पहली और आखिरी मुलाकात करते गये। जब इटारसी आकर मुझसे मिले, कहा भैया कुछ असहज सा लग रहा है, एसीडिटी के कारण अजीब सा लग रहा है, आसपास कोई मेडिकल स्टोर है, क्या? मैं दवा लेकर आता हूं, कहकर गये तो लौटकर क्यों नहीं आये।
दिमाग कहता है, अब तुम नहीं आ सकते, पर दिल को कैसे समझाएं, जो यही कह रहा है, लौट आओ प्रशांत।
रोहित नागे, इटारसी
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