विपिन पवार/ हमें स्वप्न क्यों आते हैं ? कब आते हैं ? क्या सभी को स्वप्न आते हैं ? क्या सपने सच होते हैं? क्या स्वप्न निकट भविष्य में घटित होने वाली घटनाओं/दुर्घटनाओं का पूर्व संकेत देते हैं ? क्या स्वप्न हमें पूर्व जन्म की सैर कराते हैं ? क्या स्वप्न का संबंध भूत-प्रेतों से हैं ? क्या है स्वप्नों का मनोविज्ञान ? ये वे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर सदियों से दुनिया तलाश रही हैं। इन्हीं प्रश्नों के उत्तर तलाशती राज ऋषि शर्मा की पुस्तक ‘’सपनों की दुनिया’’ की सैर करते समय याद आया कि बचपन में दादी-नानी दु:स्वप्न देखने पर जब हम चीख कर जाग जाते थे तो हमें सीने से चिपटा लेती थी…..फिर पानी पिलाती थी और…..मुंह ढंक कर मत सोया करो…..करवट लेकर सोया करो…..पीठ या पेट के बल मत सोया करो…..दोनों हाथों को सीने पर रखकर मत सोया करो…..सोने से पूर्व लघुशंका के पश्चात हाथ-पांव अच्छी तरह से धोकर ही बिस्तर पर चढ़ा करो…..सोने से पूर्व ईश स्मरण अवश्य करो…..आदि आदि । लेकिन अच्छे-बुरे स्वप्न तब भी आते ही रहे। बाद में जब इलाचन्द्र जोशी, जैनेन्द्र, अज्ञेय, देवराज उपाध्याय सर्वेश्वर दयाल सक्सेना, राजेंद्र यादव, कार्ल गुस्टाफ युंग, सिगमंड फ्रायड, विलियम जेम्स, प्रावर झाबवाला, डेल कार्नेगी, मैल्कम ग्लैडवेल, फिलिप टैटलॉक, नार्मन डिक्सन आदि को पढ़ा तो स्वप्नों का मनोविज्ञान कुछ पल्ले पड़ा।
राज ऋषि की पुस्तक ‘’सपनों की दुनिया’’ बीस खंडों में विभाजित है। प्रारंभ में कतिपय स्वप्नों का वर्णन करने के पश्चात लेखक वैज्ञानिक दृष्टिकोण को प्राथमिकता देना पसंद करते हैं और बताते हैं कि वैज्ञानिकों ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया है कि स्वप्न प्रत्येक व्यक्ति को आते हैं । कुछ याद रख पाते हैं तो कुछ जागते ही भूल जाते हैं। अपवादस्वरूप केवल एक सत्तर वर्षीय स्पेनिश व्यक्ति का उल्लेख किया गया है, जिसने कभी कोई स्वप्न नहीं देखा क्योंकि वह व्यक्ति अपने जीवन में कभी सोया ही नहीं, क्योंकि शांत, सरल एवं निश्चिंत जीवन व्यतीत करने के कारण उसे कभी नींद की आवश्यकता ही महसूस नहीं हुई। हालांकि इस तथ्य से सहमत नहीं हुआ जा सकता, यह कोई शारीरिक या मानसिक विकृति का मामला ही हो सकता है।
स्वप्नों के बारे में एक महत्वपूर्ण रहस्योदघाटन करते हुए लेखक बताते हैं कि वैज्ञानिकों के अनुसार नींद की पांच अवस्थाएं होती हैं। पहली अवस्था में नींद हल्की होती है। दूसरी अवस्था में कुछ गहरी, तीसरी और चौथी अवस्था में जब नींद कुछ और गहरी हो जाती है, तब ‘’डेल्टा’’ नामक तरंगें उठनी लगती है और यही तरंगें सपनों का आधार होती है। इ.इ.जी (इलेक्ट्रोएनसेफोलोग्राम) से इन तरंगों का विश्लेषण किया जा सकता है। यह तथ्य महत्वपूर्ण है।
हिंदू पद्धति के अनुसार सात श्रेणियों में स्वप्नों को विभाजित करने के बाद लेखक कहते है कि स्वप्न कहीं भी किसी भी वातावरण, समय, परिस्थिति एवं अवस्था में दृष्टिगोचर हो सकते हैं। इनके लिए किसी भी अवस्था विशेष का अनुकूल होना आवश्यक नहीं। लेखक के अनुसार स्वप्न यथार्थ से जुड़े हुए होते हैं। यह कथन बिलकुल सत्य प्रतीत होता है। सिगमंड फ्रायड ने भी एक घटना का उल्लेख किया है कि जब उनकी छोटी बेटी सपने में स्ट्राबेरी एवं आमलेट बुदबुदा रही थी तो उन्हें याद आया कि वे आज स्ट्रॉबेरी लाना भूल गए और अंडे तो पिछले हफ्ते ही खत्म हो चुके हैं। दोनों चीजे बेटी को पसंद थी…नहीं मिली….तो सपने में खा रही थी।
पुस्तक का खंड -7 विद्यार्थियों के लिए विशेष प्रेरणादायी है, जिसमें बताया गया है कि यदि हम आज का कार्य आज ही पूरा कर लेंगे, कल पर नहीं टालेंगे, तो शायद हमें भयावह स्वप्नों का सामना नहीं करना पड़ेगा। खंड 8 में हजरत यूसुफ अल सलाम के बारे में बताया गया है, जो स्वप्नों का अर्थ बताते थे। संपूर्ण कथा शब्दश: ठीक बाइबिल में वर्णित दानिएल की कथा ही है, केवल दानिएल के स्थान पर हजरत यूसुफ का नाम है, इससे यह प्रमाणित होता है कि यह कथा सत्य है। लेखक ने स्वप्नों के बारे में कुछ रोचक प्रयोगों का उल्लेख किया है, जैसे यदि हम सोते हुए व्यक्ति को कोई गरम वस्तु हलके से छुआ दें तो वह स्वप्न में अपने आपको जलता हुआ पाएगा या अपने आपको बर्निंग ट्रेन में फंसा हुआ पाएगा। समस्त प्रयोग ऐसे हैं कि पाठक उन्हें बार-बार करना चाहेंगे।
हम प्राय: सपनों के सच होने पर इसे संयोग मान लेते है, लेकिन लेखक का दावा है कि “सत्य होने वाले स्वप्नों में संयोग हो ही नहीं सकता।” अपनी बात को सिद्ध करने के लिए लेखक ने दो पूर्व अमरीकी राष्ट्रपतियों अब्राहम लिंकन एवं जॉन कैनेडी के उदाहरण दिए हैं, जिन्हें सपने में अपनी मौत दिखाई दी थी और उनकी मौत भी उसी तरह हुई, जैसे उन्होंने स्वप्न में देखा था। इसलिए लेखक निष्कर्षत: कहते हैं कि ‘’स्वप्न तथ्य प्रेषित करते समय किसी भी प्रकार की कोई भूल नहीं करते।‘’ मैं लेखक के इस कथन से पूर्णत: सहमत हूं। क्योंकि मेरा भी अनुभव कुछ इस प्रकार का रहा है । मेरी एक सहकर्मी के पति ह्दयाघात के कारण नागपुर में अस्पताल में भर्ती थे। मेरी पोस्टिंग उन दिनों पुणे में थी। एक दिन अचानक सुबह साढ़े चार बजे मैं चौंककर नींद से जाग गया, बिस्तर पर उठ बैठा, आंखे मलते-मलते सामने देखा कि सहकर्मी के पति मेरे समक्ष साक्षात खड़े है और पूछ रहे हैं कि ‘’विपिन! तुम कैसे हो ?’’ और मैं कह रहा हूं कि ‘’ठीक हूं ।‘’ बस कुछ समझ नहीं पाया । वे पल भर में अंतर्ध्यान हो गए। घड़ी देखी….चार बजकर पचास मिनट हो रहे थे। सोचा इतनी सुबह क्या शिनाख्त की जाए। साढ़े छ: बजे फोन लाया, तो पता चला कि सहकर्मी के पति का साड़े चार बजे देहांत हो चुका है।
स्वप्न दिखाई देने का एक कारण लेखक मानसिक उलझाव भी बताते है, वी यह तथ्य आश्चर्यजनक है कि हम अपनी इच्छानुसार भी स्वप्न देख सकते हैं, इसके लिए लेख्क ने जिस तकनीक या प्रयोग का उल्लेख किया है, उसके लिए यह पुस्तक पढ़ना अनिवार्य हो जाता है। लेखक ने हिंदू पद्धति के अनुसार अपने स्वप्नों के माध्यम से अपनी समस्याओं एवं प्रश्नों को हल करने हेतु भारी-भरकम विधि-विधान का उल्लेख किया है एवं कहा है कि स्वप्नेश्वरी देवी का ध्यान करते हुए निम्नलिखित मंत्र का जाप करें, लेकिन संपूर्ण अध्याय में कहीं पर भी मंत्र का उल्लेख न होने के कारण यह संपूर्ण प्रक्रिया निरर्थक हो जाती है। लेखक के अनुसार वेदों में ग्यारह प्रकार के स्वप्नों को अशुभ बताया गया है, लेकिन पुस्तक में केवल आठ प्रकार के स्वप्नों का ही उल्लेख किया गया है।
अंत में लेखक कहते हैं कि स्वप्न में हम कल्पनाएं करते हैं एवं कल्पना सदैव ही यथार्थ से आगे रहती है। हमें किसी भी स्वप्न पद्धति पर आंख मूंद कर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए। प्रत्येक स्वप्न का भली-भांति से विश्लेषण कर तभी किसी निश्चित परिणाम पर पहुंचना चाहिए क्योंकि हमारे अधिकांश स्वप्न हमारी दिनचर्या में घटित, पाठ्य, श्रव्य अथवा दृश्य घटनाओं के परिणामस्वरूप ही आते हैं। अत: किसी भी स्वप्न का किसी भी निश्चित पद्धति अनुसार शुभ या अशुभ परिणाम निकालना उचित नहीं । पुस्तक में व्यक्त प्रत्येक निष्कर्ष, व्याख्या अथवा विश्लेषण, मनोविज्ञान व विज्ञान पर आधारित है।
वैसे तो पुस्तक में कुल 129 पृष्ठ हैं, लेकिन प्रत्येक अध्याय के अंत में एक चित्र दिया गया है, जिसकी कोई आवश्यकता प्रतीत नहीं होती । कुल 20 श्वेत-श्याम चित्र हैं । कुल 05 पृष्ठ बिलकुल कोरे हैं । इस प्रकार से मुद्रित पृष्ठ केवल 104 ही हैं जिनमें से कुल 54 पृष्ठों पर प्रूफ की अनेक अक्षम्य भूलें / गलतियां हैं । 11 पृष्ठों पर तो ऐसी हास्यास्पद गलतियां है, जिनसे अर्थ का अनर्थ हो जाता है जैसे पृ.23 पर पड़ते के स्थान पर पढ़ते, दोहराई के स्थान पर दो हराई, पृ.27 पर काल के स्थान पर कॉल, पृ.28 पर शब्द छूट गया है, वाक्य अपूर्ण है, पृ. 43 पर इस्त्री के स्थान पर स्त्री, पृ.76 पर नाविक के स्थान पर नाभिक, पृ.84 पर बड़बड़ाते के स्थान पर बढ़बढाते, ताबूत में मरा हुआ पड़ा है के स्थान पर ताबूत में भरा हुआ पड़ा है, पृ. 85 पर न के स्थान पर ना, पृ. 92 पर भाले के स्थान पर वाले पृ. 93 पर नाव के स्थान पर चुनाव, नाव के स्थान पर नाम, परवाह के स्थान प्रवाह पृ. 100 पर बजाय के स्थान पर बजाए एवं पृ 128 पर मूड़ के स्थान पर मूढ़ हो गया है । प्रूफ की गलतियों की भरमार के कारण पढ़ने में बाधा उपस्थित होती है । इससे पाठक निश्चित रूप से झल्ला जाएंगे । पुस्तक में अनेक स्थानों पर धार्मिक एवं पौराणिक ग्रंथों एवं विदेशी विद्वानों का उल्लेख किया गया है । अच्छा होता कि प्रत्येक अध्याय के अंत में संदर्भ सूची दी जाती, तो पुस्तक की प्रामाणिकता संदेह से परे हो जाती ।
सुप्रसिद्ध साहित्यकार मणिका मोहिनी जी कहती हैं कि ‘’साहित्य की भाषा और आम बोलचाल की भाषा में अंतर होता है । किसी रचना को पढ़ते हुए हम पहले उसकी भाषा से आकर्षिक होते हैं, उसकी विषय-वस्तु तो रचना के अंत तक पहुंचते हुए समझ में आती है । यह भाषा शैली ही है जो हमें फिसलाते हुए अंत तक ले जाती है । पाठक जब यह कहता है कि एक बार पढ़ना शुरू किया तो बिना रूके खत्म करके ही छोड़ा या भाषा ने ऐसा बांधा कि एक बार में पूरा पढ़ गया ….. तो यह भाषा ही है, कथा को बयान करने का अंदाज ही है, जो पाठक को बांधे रखता है । भाषा से अभिप्राय भाषा की संपूर्णता से है, व्याकरण सहित । यदि आप साहित्य की रचना कर रहे हैं तो जो मर्जी जैसे मर्जी लिख लिया से काम नहीं चलेगा, भाषा पर मेहनत करनी होगी ।‘’
अंग्रेजी एवं मराठी में तो सपनों पर बहुत कुछ लिखा गया है, लेकिन हिंदी में इस विषय पर पुस्तकों का अभाव है । मणिका मोहिनी जी की कसौटी पर तो पुस्तक खरी नहीं उतरती, लेकिन यदि लेखक एवं प्रकाशक अपने दायित्वों का निर्वहन अधिक निष्ठा एवं समर्पण से करते तो शायद यह एक उपयोगी एवं महत्वपूर्ण पुस्तक बन सकती थी । बहरहाल जो भी हो, मैंने तो कोरोना काल में इस पुस्तक को अमेजॉन की बेस्ट सेलर पुस्तक होने के कारण खरीदा था, लेकिन बाद में जब पर्याप्त अनुसंधान किया तो पता चला कि ‘’बेस्ट सेलर’’ क्या होता है ? उसका गुणवत्ता एवं लोकप्रियता से कोई लेना-देना नहीं होता।
लेखक – राजऋषि शर्मा
मूल्य -300 रूपए। पेपरबैक। पृष्ठम संख्या0 129
प्रकाशक – ऑरेंज बुक पब्लिकेशन, स्मृ्ति नगर, भिलाई (छत्तीासगढ़) 490020
rajrishisharma334@gmail.com,
उप महाप्रबंधक (राजभाषा)
मध्य रेल, मुख्यालय, मुंबई
संपर्क – 8828110026