सरताज सिंह जी : एक पुण्य स्मरण बाबूजी और डाक साहब

Post by: Rohit Nage

Sartaj Singh Ji: A virtuous memory Babuji and Dak Saheb
  • पंकज पटेरिया

भाजपा के कद्दावर नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री और कभी नगर पालिका इटारसी के लोकप्रिय नगर पालिका अध्यक्ष बाबू सरताज सिंह जी हमारे बीच अब नहीं हैं, विदा हो गए। वे एक राजनेता के साथ ही, एक बेहद सरल, सौम्य, परोपकारी और सच्चे समाजसेवी व्यक्ति थे। जानकारी के मुताबिक राजनीति में पहले पहल वे प्रख्यात सांसद और संविधान सभा के एक सदस्य रहे कामथ जी के संपर्क से आए थे। वे स्वयंसेवक भी थे। संघ के प्रतिष्ठित व्यक्ति और बाद में भाजपा के विधायक और लोकप्रिय राजनेता रहे कीर्ति शेष हरि नारायण जी अग्रवाल, नर्मदा प्रसाद जी सोनी सुक्कू भैया (तत्कालीन विधायक), लीलाधर जी अग्रवाल, रामेश्वर जी आर्य, गया प्रसाद गौर, चेन्नई भैया और मेरे बड़े भाई श्री केशव प्रसाद पटेरिया और अन्य मित्रों के साथ जनसंघ के समर्पित कार्यकर्ता हो गए थे। बड़े भैया केशव भाई साहब के सह पाठी भी थे, और बहुत आत्मीय संबंध रखते थे।

Pankaj Pateriya
पंकज पटेरिया
वरिष्ठ पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार

कांग्रेस के दबदबे के दौरान भी वे अकेले, ऐसे व्यक्ति थे जो अपनी दम खम से नगर पालिका अध्यक्ष चुने गए थे, और बहुत लोकप्रिय हुए। अपने कार्यकाल में बाबू सरताज सिंह जी ने इटारसी में शहर हित में कई महत्वपूर्ण काम किए थे। सडक़, बिजली, पानी, सफाई के अलावा एक बेहद महत्वपूर्ण काम इटारसी की खूबसूरती में चार चांद लगाने का उन्होंने किया था। वह इटारसी की धडक़न रहा, प्राचीन तालाब जो अब सिकुड़ रहा था, बाबूजी ने उसकी गाद सिल्ट निकलवा कर, तालाब के बीचों कमल के फूल का रंगीन फुहारा बनवाया था, और पूरे तालाब में लाल कमल के फूल लगवाए थे। इस काम से नगर के सौंदर्य में चार चांद लग गए थे। अद्भुत श्री शोभा सुषमा का इंद्रधनुष उतर आया था। सिंन्दूरी शाम वहां से गुजरते हुए थके हारे मन को बड़ा सुकून मिलता था। लोकप्रिय विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा उन्हें अग्रजवत सम्मान देते थे। बल्कि गुरुनानक डिस्पेंसरी में हमारे विधायक डॉ. साहब की निशुल्क सेवा भाव, मानव सेवा प्रभु पूजा की भावना से बहुत अभिभूत थे।

उनकी ईमानदारी, परोपकारी स्वभाव, निश्चल, निस्वार्थ, प्रकृति और नर को नारायण मान उसकी सेवा करने के पिता प्रख्यात शिक्षाविद, समाज सेवी पंडित राम लाल शर्मा जी से विरासत में संस्कार से पारखी जोहरी सरताज बाबूजी इतने प्रभावित हुए, उन्होंने सीतासरन जी नाम के कक्का जी (शर्मा जी) के हीरा पुत्र को, समाज सेवा के बड़े केनवास राजनीति से परिचित करवाया। फिर क्या अपनी निष्ठा, ईमानदारी, परमार्थी स्वभाव से क्षेत्र में भाजपा को उन्होंने ऐसे चोखे गहरे रंग में भिगो दिया कि बड़े बड़े दिग्गजों के रंग उतर गए, और उनके सितारे ऐसे अस्त हुए कि फिर कभी उदित नहीं हुए, और डाक साहब जिन्हें कोई दादू भैया कहता, कोई भैया जी, कोई डाक्टर साहब, कोई कुछ। घर-घर के रिश्ते में गांव, शहर से प्यार स्नेह अपनेपन से बंध गए।

इससे सरताज जी के उत्कृष्ट चयन की भाजपा शीर्ष शिखर तक सराहना होती। सियासती समीकरण कुछ भी बने, मिटे बाबू जी के उपकार को कई लोगों ने भुला दिया, लेकिन डाक्टर साहब, उनके प्रति सदा सूर्यमुखी शैली में श्रद्धानत रहे। मैंने डॉ. साहब को सदा बाबू जी के चरण स्पर्श करते देखा। खैर बाबू जी स्वयं बहुत सौम्य, सद्भावी, परमाथी, लोक उपकारी व्यक्ति थे। उनकी प्राथमिकता में जनता जनार्दन के दुख तकलीफ रहते थे। कोई चूक अनजाने हो जाए तो नोटिस में आते ही सुधार लेते थे। प्रसंगवश मुझे याद आ गई यह घटना।

एक बार नगर पालिका द्वारा गांधी ग्राउंड में उन्होंने विराट कवि सम्मेलन आयोजित कराया था जिसमें देश के लोकप्रिय कवि नीरज जी, रामस्वरूप सिंदूर, चंद्रसेन विराट, आदि सहित मेरे एक और बड़े भाई जो आकाशवाणी भोपाल में सेवारत थे, स्वर्गीय मनोहर पटेरिया मधुर भी आमंत्रित थे। मैं पत्रकार के नाते कार्यक्रम को कवर करने और मधुर भाई साहब से मिलने इटारसी गया था। वहां गांधी ग्राउंड में वरिष्ठ पत्रकार प्रेम शंकर जी दुबे मिले। उन्होंने कहा केवल कवर करने आए हो या कविता भी सुनाओगे? मैंने उत्तर दिया था कवि के रूप में नहीं पत्रकार के रूप में आया हूं। उन्होंने जवाब दिया यह क्या बात हुई, तुम कवि भी हो कविता भी सुनाओगे, और उन्होंने बिना देर किए सरताज सिंह जी के पास मुझे मंच पर कविता सुनाने आमंत्रित करने का संदेश दे दिया।

अगले ही पल मेरा नाम माइक से स्वयं बाबूजी कविता पाठ के लिए पुकार रहे थे। मैं मंच पर गया, और उन दिनों का बेहद लोकप्रिय मेरा गीत मेहनत की गंगा ही कलमश धोती है, सुनाने लगा। बाद में कवियों के साथ मुझे भी पारिश्रमिक बाबूजी ने अपने हाथ से प्रदान किया था। कुछ इस तरह के सरल और अपनेपन से बाबू जी रिश्त निभाते थे। क्षेत्र की राष्ट्रपति पुरस्कार समाज सेवी श्रीमती स्वराज ग्रोवर की पुस्तक सेवा के शिखर का संपादन मैंने किया था। मैडम ग्रोवर चाहती थीं पुस्तक विमोचन सरताज जी करें। उस समय वे वन मंत्री थे, बहुत व्यस्त थे। उन्होंने कहा आप सब भोपाल आ जाइए। हम कुछ साहित्यकार मैडम ग्रोवर के साथ उनके बंगले भोपाल पंहुच गए। बाबूजी ने सीएम से खुद के लेट आने की सूचना दी। और हम लोगों की आवभगत में लग गए। ऐसे सरल संवेदनशील व्यक्तित्व के धनी थे बाबू जी। शीर्ष राजनीति में रहते हुए उनकी छवि बेदाग रही। बाबूजी की स्मृति को शत शत नमन।

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