5 वर्ष की उम्र में अमिताभ बच्चन ने की थी हौसला आफजाई,
इटारसी। मजहब नहीं सिखाता आपस में बैर रखना, हिंदी है हम वतन है हिंदुस्तान हमारा। बचपन में हर धर्म के बच्चों ने स्कूलों में यह गीत गाकर ही शिक्षा (तालीम) हासिल की होगी। यह गीत दिल्ली निवासी हमसर हयात निजामी के दिल में घर कर गया। क्योंकि 750 वर्षों से खानदानी संगीत, कव्वाली घराना रहा तो हमसर हयात (Hamsar Hayat) को यह कला विरासत में मिली।
हजरत निजामुद्दीन औलिया (Hazrat Nizamuddin Aulia) की दरगाह से पूर्वजों का ताल्लुक रहा। सिकंद्राबाद रंगीला घराना और ननिहाल उस्ताद अमीर खुसरो घराना की रही तो इनकी परवरिश पर दोनों घराना का असर पड़ा। इन्हें ख्याल गायकी कव्वाल की प्रारंभिक शिक्षा में पारंगत किया गया। उस्ताद मोहम्मद हयात निजामी के 6 पुत्रों क्रमश: जफर, अजर, मजर, अतहर, ताहिर और हमसर हयात निजामी आज निजामी सूफी ब्रदर्स के नाम से विख्यात हैं। गंगा जमुना तहजीब से यह भक्ति गीतों की प्रस्तुति से सर्वधर्म संदेश के लिए हमसर हयात तेजी से प्रसिद्ध हो रहे हैं। वर्ष 1974 में 5 वर्ष की उम्र से ही इनका रिश्ता संगीत से जुड़ गया था।
उन्होंने अपने जीवन का प्रथम प्रोग्राम मशहूर सिने स्टार अमिताभ बच्चन (Amitabh Bachchan) के सम्मुख प्रस्तुत कर खूब वाहवाही लूटी थी। यहां से मिली हौसला अफजाई ने हमसर हयात को आज बुलंदियों पर लाकर खड़ा कर दिया है। इटारसी के नाला मोहल्ला में शैलानी बाबा की दरगाह पर कव्वाली का प्रोग्राम देने आये हमसर हयात से बातचीत की गई। उन्होंने बताया कि साईं बाबा की प्रेरणा से आज इस मुकाम को हासिल कर पाया हूं। साईं भजन में नरेंद्र चंचल और कृष्ण भजन में विनोद अग्रवाल की तरह, दीवाना तेरा आया बाबा तेरी शिरडी में, ने मुझे बहुत प्रसिद्धि दिलाई है।
इनका मानना है कि दुनिया में दो ही ऐसे फनकार हैं जिन्होंने अपना संगीत लोगों के घरों में पहुंचाकर उन्हें गाने और जीने का सलीका सिखाया है। उस्ताद नुसरत अली साहब और उसके बाद उस्ताद हमसर हयात अपनी अमिट पहचान धर्म मजहब से परे लोगों के दिलों में अपना एक अलग स्थान बनाया है। आज लोग संगीत को मजहब से तौलते हैं लेकिन हमसर हयात बताते हैं कि मजहब को संगीत के माध्यम से जोडऩे की दिशा में पहल की गई है, और सभी धर्म वर्गों का भरपूर सहयोग मिल रहा है।
यहां पर है एक अवसर की तलाश
हमसर हयात कहते हैं कि भले ही दुनिया के कोने-कोने में मजहबी एकता के संदेश फैलाने की मुहिम को मैंने पूरा कर लिया हो किंतु आज भी 4 स्थानों पर जाने का सपना है। भगवान राम की जन्म स्थली अयोध्या, कृष्ण की जन्मस्थली मथुरा, काशी विश्वनाथ, तिरुपति बालाजी जाने की चाह दिल में बरकरार है।
विदेशों तक भारतीय संस्कृति की जगाई अलख
53 वर्षीय हमसर हयात ने दिल्ली से मजहबी एकता के संदेश कव्वाली धार्मिक गीतों के माध्यम से फैलाने का सिलसिला प्रारंभ किया। वर्ष 1986 में अमेरिका कोलंबिया फेस्टिवल ऑफ इंडिया में सीसीआर की ओर से भी इन्होंने अपना परफॉर्मेंस प्रस्तुत किया था। दुबई, पेरिस, कनाडा, लंदन और वर्ष 2022 में साउथ अफ्रीका में भारतीय संस्कृति की अलख जगाकर आए हैं।
अधूरा रह गया कोरियोग्राफर और मॉडलिंग का शौक
हमसर हयात बताते हैं कि बचपन में खिलौनों की जगह हारमोनियम तबला ने ले ली। छह-सात घंटे रियाज में व्यतीत हो जाते थे। कोरियोग्राफर और मॉडलिंग करने का शौक आज महज सपना बनकर रह गया है। मेरे 26 वर्षीय सुपुत्र मुजफ्फर समीर हयात निजामी विरासत की इस परंपरा को कायम रखने के लिए प्रयासरत हैं। जबकि दूसरा सुपुत्र मोहम्मद शेख अली पढ़ाई कर रहा है।