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विशेष : आवारा कुत्तों की समस्या, कैसे मिलेगी निजात

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मिलिन्द रोंघे :

अनेक फिल्मों में नायक खलनायक के लिए कुत्ते शब्द का प्रयोग करते रहे है लेकिन कुछ फिल्मों में नायक के वफादार साथी के रूप में कुत्ते की भूमिका रही है और इसके लिए उनके मालिकों को को इसका भुगतान भी मिला है। मनुष्य के सबसे वफादार प्राणीयों में माना जाने वाला कुत्ता या श्वान का उल्लेख अनेक धार्मिक और पौराणिक ग्रंथों में भी हुआ है।
दत्तात्रय भगवान के साथ चार कुत्ते बताये गये है। वाल्मिकी रामायण में रामचन्द्रजी के द्वार पर न्याय माँगने आए एक कुत्ते का प्रसंग है। तो महाभारत में कुत्ते के विरूध्द शब्दभेदी बाण चलाने एवं पांडवों के स्वर्ग प्रस्थान के प्रसंगों में कुत्ते का उल्लेख है। आमीन राईन के अनुसार इस्लाम में कुत्ता पालना प्रतिबंधित है तो बाइबिल में इसका तिरस्कारपूर्ण चरित्र के रूप में उल्लेख है। ऐसे लाखों नागरिक है जो विभिन्न मान्यतों को एक तरफ करके अपने शौक के लिए मुँह माँगी कीमत देकर इनको खरीदते है और एक सामान्य नागरिक से अधिक धन कुत्ते की सुख सुविधा पर व्यय करते है।
भारत में यह परंपरा रही है कि घरों में जब भोजन बनता है तो पहले गाय और फिर कुत्ते के लिए रोटी निकालकर फिर घर के सदस्य भोजन लेते है। समय के साथ बदलती आवश्यकताओं और परिस्थितियों के बाद भी यह परंपरा अनेक घरों में है। आबादी बढ़ने से कुत्तें और मनुष्यों के मध्य संघर्ष एक विवाद को जन्म दे रहा है तो इन निरीह प्राणियों के जीवन संरक्षण और उनके मानव के समान अधिकारों की बात भी उठ रही है।

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कुत्तों की बढ़ती आबादी का एक कारण यह भी है कि पूर्वी राज्यों को छोड़कर देश के बाकी हिस्सों में इसके माँस का सेवन नहीं किया जाता। सम्पूर्ण विश्व में प्रतिवर्ष 60 हजार लोग कुत्तों के काटने से हुई रेबीज की बीमारी से मरते है। कुत्ते के काटने के इलाज हेतु आवश्यक रैबीज के इंजेक्शन हेतु प्रतिवर्ष भारत सरकार को करोड़ों रूपये की राशि व्यय करनी पड़ती है। इसमें से 40 प्रतिशत मौतें 15 वर्ष के नीचे के बच्चों की होती है। सिर्फ पंजाब में ही सन 2022 में एक लाख पैंसठ हजार प्रकरण कुत्ते काटने के हुए है तो मध्य प्रदेश में भी हजारों प्रकरण हुए है।
कुत्तों के काटने से मौतें हो रही है तो उनके कारण होने वाला संघर्ष का परिणाम नागारिकों में आपसी मारपीट तक पहुँच रहा है। कई हाई प्रोफाईल मामले हो रहे है तो कई लो प्रोफाइल। हजारों प्रकरणों में तो रिपोर्ट ही दर्ज नहीं की जाती। विदेश की बात करें तो नवम्बर 2023 में मोल्देवा के राष्ट्पति मोई संदू के पालतू कुत्ते कोडरूद ने ऑस्ट्रेलिया के राष्ट्रपति एलेक्जेंडर वान डेर वेलेन को काट खाया तो मार्च 2023 में घटित हाईप्रोफाइल मामले में केन्द्रीय अतिरिक्त गृह सचिव चन्द्राकर भारती की पत्नि अनिता भारती ने लिखित शिकायत दिल्ली पुलिस और एम.सी.डी. में बताया कि उनके कुत्ते पर कांग्रेस सांसद मनीश तिवारी के कुत्ते ने दो बार हमला किया। तो अभी गुना जिले में एक कुत्ते को दर्दनाक मौत देने वाला विडियो केन्द्रीय मंत्री श्री ज्योतिरादित्य सिंधिया द्वारा शेयर करने के बाद उस पर कार्यवाही की गयी थी।

सुरक्षा से चाक चैबंद रहने वाले नई दिल्ली रेलवे स्टेशन के अंदर अक्टुबर के दुसरे सप्ताह में एक बुजुर्ग महिला यात्री को एक कुत्ते ने शिकार बनाया तो रेलवे स्टेशन के बाहर एक अन्य महिला यात्री को। मई 2023 में अलीगढ़ में एक पार्क में घुम रहे एक बुजुर्ग को कुत्तों ने नोंच-नोंच कर मार डाला ।
कुत्ता प्रेमियों के भी अनेक उदाहरण है इनमें कुछ समय पूर्व म.प्र. पुलिस में नगर निरिक्षक राजेन्द्र सोनी ने अपने पालतु कुत्ते के निधन उपरांत बाकायदा धार्मिक रीति रिवाजों से ओम्कारेश्वर में अंतिम संस्कार कराया वे जिस शहर में भी पदस्थ रहते है वहां प्रतिदिन अपने वेतन से आवारा कुत्तों को भोजन कराने से नहीं चुकते। तो रेलवे में कार्यरत गुप्ता प्रतिमाह एक क्विंटल आटे की रोटियां आवारा कुत्तों के लिए बनवाते है तो सतीश बांगड़ इन्हें प्रतिदिन टोस और ब्रेड खिलाते है ।
कुत्तों की बढ़ती आबादी से उत्पन्न समस्या किसी एक नगर या मोहल्ले की समस्या नहीं अपितु राष्ट्रव्यापी समस्या बनती जा रही है, इसके बाद भी सामाजिक संगठनों ने अभी तक इसका संज्ञान नहीं लिया है। पूर्व केन्द्रीय मंत्री विजय गोयल ने सितम्बर 2023 में उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीक्ष को पत्र लिखकर आवारा कुत्तों की समस्या पर संज्ञान लेने का अनुरोध करते हुए अवगत कराया कि आवारा कुत्तों से ज्यादा समसस्या उनकी तेजी से बढ़ती आबादी है।
एक अनुमान के अनुसार देश में आवारा कुत्तों की संख्या वर्तमान मे 12 करोड़ है मध्यप्रदेश की बात करें तो पालतू कुत्तों की संख्या 3,03,567 और आवारा कुत्तों की संख्या 10,09,076 है। यदि आवारा कुत्तों की नसबंदी की तरफ जल्दी ध्यान नही दिया गया तो इनकी आबादी शीघ्र ही 20 करोड़ तक पहुँच जावेगी क्योंकि इनमें प्रजनन क्षमता त्रीव होती है और ये एक बार में अनेक बच्चों को जन्म देते है। आवारा कुत्तों का सर्वाधिक शिकार बच्चे,वृध्द और महिलाऐं हो रही है।
नर्मदापुरम् जिले से आवारा एवं पालतू कुत्तों द्वारा नागरिकों को काटे जाने या कुत्ते भौंकने के कारण हुई आपसी लड़ाई के अनेक प्रकरण थाने में दर्ज हो चुके है। इटारसी की द ग्रेंड एवेन्यू,सांई फारच्र्युन कालोनी से लेकर देश की अधिकांशतः कॉलोनियां भी इस समस्या से ग्रस्त है। म.प्र. नगर पालिका अधिनियम में पातलू कुत्तों का पंजीयन अनिवार्य है लेकिन शिक्षित नागरिक भी अपने पालतू कुत्तों का पंजीयन भी नही कराते है।
दिल्ली उच्च न्यायालय द्वारा दिल्ली नगर निगम को आवारा कुत्तों का खतरा एक गंभीर खतरा बताते हुए इस पर तत्काल ध्यान दिए जाने की आवश्यकता है। आवारा कुत्तों से हो रही समस्या को लेकर दिल्ली में नई दिल्ली के कांस्टीट्यूशन क्लब में ‘आवारा कुत्तों के काटने की समस्या और समाधान’ विषय पर संगोष्ठी का आयोजन किया गया था जिसमें पशुप्रेमी पशुओं को इंसानों की तरह अधिकार दिये जाने की वकालत कर रहे थे तो दूसरा पक्ष आवारा कुत्तों से उत्पन्न समस्या पर अपनी बात रख रहे थे। वाद-विवाद में दोनों पक्षों की महिलाओं में मारपीट हो गयी और पुलिस को हस्तक्षेप करना पड़ा। हालात यह हो गये है कि विगत लोकसभा चुनावों में पंजाब में अनेक शहरो के नागरिकों ने उम्मीद्वारों से आवारा कुत्तों की समस्या से अवगत कराते हुए इनसे निजात दिलवाने का अनुरोध किया। अमृतसर से सांसद गुरजीत औजला ने लोकसभा में इस विषय की ओर भारत सरकार का ध्यान आकृष्ट कराया।
जब देश में मनुष्यों की जनसंख्या पर नियंत्रण की मांग उठायी जा रही थी तभी मत्स्य पालन, पशुपालन और डेयरी मंत्रालय भारत सरकार द्वारा पशुओं के प्रति क्रुरता निवारण अधिनियम 1960 के प्रावधानों को ध्यान में रखते हुए 10 मार्च 2023 को पशु जन्म नियंत्रण नियम 2022 का प्रारूप राजपत्र में प्रकाशित किया गया ।
सरकार के इस अधिनियम में इतने पेंच है कि ऐसा लगता है कि जिस उदेश्यों के लिए लाया गया है उस उदेश्य का निदान बहुत ही असंभव है। सर्वप्रथम में उसमें जिन पशुओं के जन्म पर नियंत्रण का उल्लेख किया गया है उसमें सिर्फ कुत्ते और बिल्ली का उल्लेख किया गया है, सुअर का उसके मांस के कारण और गाय, भैंस और बकरी दुध उपयोगी होने के कारण इन पर नियंत्रण की आवष्यकता नहीं मानी गयी होगी।

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पशु जन्म नियंत्रण नियम के प्रावधान के अनुसार मादा पशु (कुत्ता या बिल्ली) की नसबंदी तभी हो सकती है जब उसके बच्चे दो माह के हों (स्त्री की नसबंदी प्रसव के तत्काल बाद की जा सकती है। इस संबध में सेवानिवृत संयुक्त संचालक पशु चिकित्सा श्री कुल्हारे का कहना है कि मादा पशु में आक्सीटोन हारमोन का रिलिज बंद हो जाता है कि इसलिए दो माह की अवधि दी गई)। इस नियम के अनुसार नसबंदी के लिए सुसज्जित आपरेशन थियेटर होना आवश्यक है, नसबंदी शल्यक्रिया पशु चिकित्सक द्वारा ही की जानी चाहिए।
नसबंदी के बाद चार दिनों तक उनकी देखरेख के बाद ही उनको छोडा जाना आवश्यक है। इस दौरान भी नर और मादा को अलग-2 रखा जाना चाहिए उन्हें स्वस्थ्य भोजन और पानी दिया जाना चाहिए। सम्पूर्ण परिसर में सीसीटीवी लगाना अनिवार्य है और इसकी फुटेज एक माह तक सुरक्षित रखना अनिवार्य किया गया। आवारा या मार्ग के कुत्तों को पकड़ने के पूर्व उस क्षेत्र के नागरिकों को सूचित किया जाना आवश्यक है और जिस स्थान से पकड़ा जावे, नसबंदी उपरांत उसी स्थान छोड़ा जाना अनिवार्य है।
आखिर नसबंदी के बाद ये कुत्ते नागरिकों को परेशान नहीं करेंगे सड़कों पर गंदगी नहीं करेंगे इसकी क्या ग्यारंटी है। छः माह से छोटे कुत्तों की नसबंदी नहीं की जा सकती। कुत्तों को पकड़ने के लिए चिमटे या तारों का उपयोग नहीं किया जा सकता। ऐसा लगता है कि नागरिकों की तुलना में कुत्तों की सुरक्षा हेतु अधिक अधिकार है। नसबंदी के बाद कुत्ते काटेंगें नहीं इसकी क्या ग्यारंटी है, नसबंदी के बाद उन्हें उसी क्षेत्र में छोडा जाना क्यों आवश्यक है । पशुओं की चिकित्सा सेवाओं पर दृष्टि डाले तो हम देखते है कि प्रति पांच हजार पशुओं पर एक पशु चिकित्सक होना चाहिए परंतु वर्तमान में 15 से 25 हजार की आबादी पर पशु चिकित्सक होने से न तो इनके स्वास्थ्य पर पर्याप्त ध्यान दिया जाता है न ही इनकी नसबंदी पर ध्यान दिया जाता है। इसके साथ ही नसबंदी के लिए दिया जाने वाला बजट भी पर्याप्त नहीं होता कि नसबंदी का कार्य संपादित हो सके ।
एक बात विचारणीय है कि जो कुत्तों के प्रति संवेदनशीलता या प्रेम रखते है वे मनुष्यों, गायों या अन्य प्राणीयों के लिए भी क्या वही संवदेनशीलता या प्रेम रखते है। पशु प्रेमी आवारा कुत्तों को मारने या भगाने पर आपत्ति लेते है विरोध करते है पर उन्हीं आवारा कुत्तों के नागरिकों को काटने पर मौन क्यों रहते है। वो यदि आवारा कुत्तों की सुरक्षा और भोजन का जिम्मा उठाते है तो फिर आवारा कुत्तों से काटने से घायल नागरिक की सुरक्षा का दायित्व क्यों नहीं उठाते है क्यों नहीं आवारा कुत्तों को इंजेक्शन लगाते ताकि उसके काटने से कोई बीमारी न हो। जितना चिंता कुत्तों की उतनी नागरिक या अन्य पशुओं की क्यों नहीं।
निसंदेह बंबई उच्च न्यायालय के न्यायाधीक्ष जी.एस.कुलकर्णी और आर.एन.लढढा की खंडपीठ द्वारा 28 मार्च 2023 को दिए गये निर्णय में उल्लेखित इस बात से सभी सहमत होंगे ‘आवारा कुत्तों से नफरत करना या उनके साथ क्रुरता का व्यवहार करना सभ्य समाज के व्यक्तियों के लिए स्वीकार्य नही है। ये जीवित प्राणी भी समाज का हिस्सा है’ लेकिन आखिर यह प्रश्न तो उठता ही है कि नागरिकों के अधिकारों का क्या। इस समाज में कुत्ते के अधिकार ज्यादा है या नागरिकों के। आवारा कुत्तों के आतंक का जिम्मेवार कौन है। जनता को आवारा कुत्तों के संकट के कब तक और किस प्रकार निजात मिलेगी ।

Milind ji

मिलिन्द रोंघे
द ग्रेंड एवेन्यू, इटारसी
9425646588

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