राजधानी से पंकज पटेरिया :
मप्र की अयोध्या कहीं जाने वाली रामराजा सरकार की प्रसिद्ध नगरी ओरछा में राम राजा जी सरकार माता जानकी जी की शादी हर्षोल्लास के वातावरण में धूमधाम से संपन्न हुई। अलौकिक विवाह के साक्षी आसपास के 10 से 15 जिलों के सैकड़ों श्रद्धालु बने। राम राजा सरकार माता सीता जी की विवाह में बेला में शामिल होने लोग 2 दिन पहले से ऐतिहासिक नगरी ओरछा में पहुंच गए थे।
अत्यंत आल्हादित, मोहक, मधुर वैभवपूर्ण बुंदेली वातावरण में वर वधु पक्ष के श्रद्धालु जन बुंदेली गीत, बन्ना को चढ़ रहो तेल, बन्नी तेरी अखियां सुरमेदानी जैसे मीठे लोक गीतों की सुरीली सरगम की
मंगल बेला में पुजारी रमाकांत महाराज एवं वीरेंद्र विदूआ ने वैदिक मंत्रोचार के साथ गणेश पूजन मंडप तेल हल्दी की रस्में संपन्न करवाई।
मंदिर प्रांगण में जब ये शुभ रस्मेंअत्यंत अलौकिक वातावरण में संपन्न हो रही थी तो लग रहा था साक्षात रामराजा सरकार और माताजी सिया जी पधारे हैं। यहां एक बात उल्लेखनीय है कि ऐसी मान्यता है कि हल्दी की रस्म के समय यदि कोई विवाह योग्य युवक-युवती जिसकी शादी नहीं हो रही है इस पावन रस्म के चलते शामिल हो जाता है तो सिया राम की कृपा से उसका विवाह होता ही है। इस मानता के चलते अनेकअविवाहित युवक युवती इस अवसर पर उपस्थित होते हैं।
राम राजा सरकार का यह विश्व प्रसिद्ध मंदिर निमाड़ी जिले में स्थित है। पहले यह टीकमगढ़ जिले में आता था और ओरछा टीकमगढ़ राजा के अधीन था। मुंबई दिल्ली मार्ग पर झांसी रेलवे स्टेशन से उतर कर ऑटो टेंपो बस निजी वाहन से 17 किलोमीटर दूर ओरछा पहुंचा जा सकता है। राजधानी भोपाल से ओरछा की दूरी करीब 335 किलोमीटर है। रेल के अलावा सड़क मार्ग से भी ओरछा पहुंचा जा सकता है।
ऐतिहासिक नगरी ओरछा प्रसिद्ध पर्यटक स्थान वेदमती नदी के तट पर बसा है। अत्यंत सुंदर भव्य महल किले मंदिर यहां की वैभव पूर्ण विरासत है। इसके पीछे की कथा भी बहुत मनोहारी और भक्ति पूर्ण है।ओरछा मधुकर शाह श्री कृष्ण भक्त थे, लेकिन उनकी पत्नी रानी गणेश कुंवरी श्री राम जी की भक्त थी।
दोनों में इस बात को लेकर अक्सर चर्चा होती रहती थी। एक बार यह तय हुआ कि दोनों जने अपने अपने इष्ट को लेने जाएं जिनके पहले आएंगे उनका भव्य मंदिर ओरछा में निर्माण किया जाएगा। यह होते ही मधुकर शाह वृंदावन और रानी गणेश कुवरी अयोध्या रवाना हो गई।
यहां रानी ने बड़ी कठोर तपस्या की तब जाकर राम जी ओरछा चलने के लिए राजी हुए। उन्हीं दिनों में बाबा तुलसीदास तपस्यारत थे। तुलसीदास जी से आशीर्वाद लेकर रानी ने सरयू तट पर तपस्या की। बाल रूप राम जी रानी के साथ कुछ शर्तों के साथ चलने को राजी हुए।
जिसमें पहली शर्त सिर्फ पुष्य नक्षत्र में चलूंगा, वह भी साधु-संतों के साथ जहां एक बार बैठा दिया जाऊंगा तो वहीं बैठ जाऊंगा राजा के रूप में रहूंगा और मेरा ही राज रहेगा। दिन में और चलूंगा और रात्रि में अयोध्या में वास करूंगा। महारानी ने अपनी सहमति दी।
इस तरह भगवान को अपनी गोद में लेकर महारानी 8 माह 28 दिन पैदल चलती हुई चैत्र शुक्ल नवमी संवत् 1631 सोमवार सन 1574 में पुष्य नक्षत्र में ओरछा पहुंची। महारानी ने राजा मधुकर शाह को राम जी के साथ ओरछा आने का समाचार दे दिया था।
लिहाजा मधुकर शाह ने राम जी के लिए एक भव्य मंदिर जिसे आज चतुर्भुज मंदिर कहते हैं निर्माण शुरू करवा दिया था। अपितु जिस समय प्रभु का शुभ आगमन और ओरछा हुआ, वहां ओरछा प्रवेश पर विभिन्न देवताओं ने रानी की गोद में पधार रहे राम जी का भव्य स्वागत किया था।
उसके प्रमाण स्वरूप गणेश द्वार जैसे अवशेष आज भी हैं। मंदिर का निर्माण पूरा नहीं हो पाया था लिहाजा शर्त अनुसार राम जी रानी के महल में विराज गए। उन्होंने कहा भी कि मैं अपनी मां पर महल छोड़कर मंदिर में कैसे जाऊं।
दूसरा रामजी ने यह भी कहा था कि मेरा शासन चलेगा वे रामराजा कहे जाएंगे। तदा अनुरूप ओरछा में रामराजा सरकार विराजे और वहां के नरेश उसी समय टीकमगढ़ चले गए थे। यहां रामराजा सरकार को गार्ड ऑफ ऑनर दिया जाता है।
देश के किसी प्रधानमंत्री राष्ट्रपति आदि को भी ओरछा में गार्ड ऑफ ऑनर नहीं दिया जाता है। ओरछा में मधुकर शाह और कुंवरी गणेश में विवाह पंचमी के दिन संपूर्ण रीति रिवाज वैभव के साथ माता-पिता का धर्म निभाते हुए प्रभु राम का राजतिलक किया था। अभी से भगवान राम ओरछा के राजा हैं।ओरछा मे रामराजा सरकार के दर्शन करने देश विदेश से बड़ी संख्या में श्रद्धालु लोग आतेरहते हैं रामनवमी और विवाह पंचमी यहां के दो प्रमुख महोत्सव है।
और जब आई राम राजा की भव्य बारात
ढोल नगाड़े आतिशबाजी करतब दिखाते घोड़े और उमंग उत्साह से भरे झूमते नृत्य करते देशी विदेशी श्रद्धालु, अबीर गुलाल पुष्प की वर्षा, गुलाब केवड़ा की सुगंध में भीगा वातावरण, राजसी ठाठ बाट राम जी बने दूल्हा के मीठे मंगल जयकारे लगते सजे धजे दुलाराम जी सरकार की बारात सोमवार को राम राजा की नगरी ओरछा की गलियों में आई समूचा ओरछा जैसे अयोध्या नगरी बन झूम उठी थी।
इस अवसर पर मार्गों पर लाल कालीन बिछाई गई थी और नगर की भी आकर्षक नयनाभिराम साज सज्जा की गई थी। बारात में शामिल आसपास के शहर, गांव के लोग ही नहीं विदेशी पर्यटक भी बराती बन आमोद प्रमोद में डूबे नाच गा रहे थे। रामराजा मंदिर से शहर मार्ग पर आई बारात का हर घर पर तिलक कर और आरती उतार कर अगवानी की गई। सजे धजे बुंदेलखंड की परंपरा अनुसार खजूर के पत्तों का मुकुट लगाएं रामराजा सरकार अत्यंत सुंदर और मनोहारी लग रहे थे। बारात के पूर्व 11 सशस्त्र बल सैनिकों ने गार्ड ऑफ ऑनर दिया।
सैकड़ों श्रद्धालु की उपस्थिति में माता जानकी मंदिर में माता सीता संग रामराजा सरकार की शादी की सारी पावन रसमें पूरी कराई गई। माता जानकी की पांव पाखरे रस्म में भी सैकड़ों श्रद्धालुओं ने भाग लिया। 50,000 से अधिक लोगों ने रामराजा की शादी का दिव्य भोजन ग्रहण किया। पंडित हरीश दुबे ने राजा जनक की तरफ से दुल्हा राजा का तिलक किया। मंदिर मंडप में पहुंचने पर निमाड़ी कलेक्टर ने माता जानकी का कन्यादान किया।
नर्मदे हर
पंकज पटेरिया
पत्रकार साहित्यकार
ज्योतिष सलाहकार
भोपाल
9340244352 ,9407505651