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ऐसे थे पत्रकारिता के पुरोधा पुरुष दद्दा जी…

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मैं कबीर तुलसी का वंशज, दरबारों में नहीं मिलूंगा
सच्ची घटना हूं मैं तुमको, अखबारों में नहीं मिलूंगा,
दिल की हो या अखबारों की हो, दीवारों में नहीं मिलूंगा,
हाथ भले कट जाए मेरे तलवारों में नहीं मिलूंगा…..

एक कवि की ये रचना, दादा स्व. प्रेमशंकर दुबे के जीवन को चरितार्थ करती हैं। विचारों से गांधीवादी, स्वभाव से सरल, सहज, निर्मल, लेखनी की भाषा में तुनक मिजाज, ईर्ष्या-द्वेष से कोसों दूर उनका समाज के लिए हमेशा प्रेरणादायी रहा है। जीवन के उतार चढ़ाव में उन्होंने कितने ही राजनेता, पत्रकार और नामचीनों को बनते बिगड़ते देखा है। उनकी स्वभाव में सीख की डांट जरूर रही लेकिन जिसने डांट सुनकर शांति से उनका अनुसरण किया, उसका भी जीवन सार्थक हो गया। यही कारण भी था कि उनके चिर परिचित और अपरिचित लोग उन्हें दद्दा कहकर बुलाते थे।

दद्दा जी: जन्म-देवलोकगमन और बदलता परिवेश

1 सितंबर 1926 को इटारसी के समीप ग्राम बिछुआ में दद्दा प्रेमशंकर दुबे का जन्म हुआ और 13-14 दिसंबर 1991 की मध्य रात्रि में क्रूर काल उन्हें अपने साथ ले गया। दद्दाजी की पत्रकारिता राष्ट्र के नवनिर्माण से शुरू हुई थी और जब उनकी आत्मा ने देह को त्यागा उस समय देश में भटकाव, भ्रम, आतंक, फरेब अपनी चरम सीमा पर था। उनके समकालीन साथी बताते हैं कि इटारसी का रेलवे जंक्शन पूरे देश में अपना महत्वपूर्ण स्थान रखता है, उसी का लाभ उठाकर इटारसी व्यापारिक मंडी बना। दद्दा जी ने रेलवे प्लेटफार्म से पत्रकारिता की शुरुआत कर राष्ट्र और समाज को जोडऩे का काम किया। उस समय सीधी और लंबी दूरी की बहुत कम यात्री गाडिय़ां हुआ करती थी। इटारसी जंक्शन ऐसा था जहां से मुंबई, कोलकाता, दिल्ली, मद्रास का आवागमन सरल था। जबलपुर और नागपुर के मध्य इटारसी एक पड़ाव की भूमिका अदा करता था। शहर के कुछ वर्ष पूर्व बंद हो चुके जनता उच्चतर माध्यमिक शाला की नींव रखने में स्वर्गीय दुबे के योगदान को इटारसी वासी कभी भुला नहीं सकते।

ऐसे हुई पत्रकारिता की शुरुआत…

स्व. दद्दाजी ने अपनी पत्रकारिता की शुरुआत अंग्रेजी दैनिक हितवाद से 1953 में शुरु की थी। देश की आजादी और उसके कुछ वर्षों बाद तक की पत्रकारिता आदर्शवादी समाज की स्थापना से जुड़ी रही। पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से जहां नए युग का सूत्रपात हो रहा था। वहीं देश के राज्यों का पुनर्गठन और नई राजधानियां अपना आकार ले रही थीं। देश और प्रदेश के समाचार पत्र भी निर्मित हुई परिस्थितियों में अपनी अपनी पहुंच गांव-गांव तक बनाने में लगे हुए थे। श्रेष्ठ रिपोर्टिंग के लिए योग्य निष्पक्ष और साफ-सुथरे व्यक्तित्व की जरूरत संपादकों को रही। बात 1953 की है जब हितवाद के संस्थापक एडी मणि इटारसी आये। जहां उनकी मुलाकात खादी कुर्ता धारी पायजामा पहने एक साधारण कद काठी के दिखने वाले प्रेम शंकर दुबे से हुई। उस समय दुबे जी देश के समाचार पत्र पत्रिकाएं बेचने का कार्य रेलवे स्टेशन के बिल्कुल सामने गोठी धर्मशाला द्वार पर एक छोटी सी दुकान में किया करते थे। श्री मणि ने दुबे जी को पत्रकारिता कार्य हेतु उत्साहित किया। श्री दुबे ने आंग्ल दैनिक हितवाद से पत्रकारिता की शुरुआत की और निष्पक्ष पत्रकार की छवि को बनाए रखा। उस समय इटारसी में पत्रकारिता के नाम पर सिर्फ अकेले श्री दुबे जी की ही पहचान थी

इन समाचार पत्रों में दद्दा जी ने दी सेवाएं…

हितवाद के बाद दद्दा जी इंडियन एक्सप्रेस, फ्री प्रेस जनरल, नागपुर टाइम्स, नवभारत टाइम्स, नवभारत के सभी संस्करण, देशबंधु तथा नई दुनिया से भी संबंद्व रहे तथा समाचार लेखन कार्य करते रहे। वह पत्रकारिता का एक ऐसा दौर था, जब पत्र स्वामी बमुश्किल डाक खर्च दे पाते थे। उन विषम परिस्थितियों में अपने जेब खर्च में कमी कर दद्दा जी न केवल इटारसी अपितु नर्मदांंचल के महत्वपूर्ण समाचार प्रेषित किया करते थे और उसी प्रमुखता से समाचार प्रकाशित होते थे।

खबरों से व्यक्ति का परिचय कराने का महारथ

स्व. दद्दा जी को अपनी खबरों के माध्यम से किसी वस्तु, व्यक्ति या परिस्थिति का परिचय आम लोगों को कराने में महारथ हासिल थी। उन्होंने समय-समय पर देश के ख्यात और महत्वपूर्ण व्यक्तियों को खोज लिया, उनसे सार्थक संवाद स्थापित किया और समाचार पत्रों में खबर के माध्यम से प्रदेश और देश को दूसरे ही दिन परिचित करवा दिया। यह उनकी विशेषता थी। दद्दा जी एक ऐसे पत्रकार थे जिनका हिंदी एवं अंग्रेजी पर समान अधिकार था। वे अपने भाषा ज्ञान का पूरा उपयोग किया करते थे। प्रदेश और राष्ट्रीय समस्याओं पर विभिन्न नेताओं से विस्तृत चर्चा करने में वे पारंगत थे। 1956 में नये मध्य प्रदेश का गठन हुआ और भोपाल उसकी राजधानी बना। तब इटारसी जैसे जंक्शन पर रहकर पत्रकारिता करने के लिए दद्दा जी पर गुरुतर भार आ गया। पत्रकारिता में लिखने की उनकी अपनी एक शैली थी। राजनीति में उनकी कोई खास दिलचस्पी नहीं थी लेकिन उन्होंने कभी उसे नकारा भी नहीं।

जब तत्कालीन मुख्यमंत्री ने किया सम्मानित…

14 फरवरी 1982 को मध्यप्रदेश आंचलिक पत्रकार संघ द्वारा आयोजित षष्ठम वार्षिक सम्मेलन में तत्कालीन मुम्यमंत्री अर्जुन सिंह ने फ्रेंड्स स्कूल मैदान में स्व. श्री प्रेम शंकर दुबे को दीर्घ सेवाओं के लिए सम्मानित किया। उस समय अर्जुन सिंह ने अपने भाषण में कहा था कि आज की उथल-पुथल भरी पत्रकारिता की दिनचर्या में श्रद्धेय दुबे जी जैसे लोग ढूंढने पर ही बमुश्किल मिल पाते हैं। हमें उनके आदर्शों, निष्पक्ष पत्रकारिता और राष्ट्र तथा समाज के प्रति त्याग की भावना से सबक सीखना चाहिए। पत्रकारिता के साथ ही दादा प्रेम शंकर जी दुबे का साहित्य एवं शिक्षा से भी निकट का संबंध रहा।

स्मृति में बना है पत्रकार भवन

कुछ विरले ही होते हैं वो लोग। जिनका स्मरण कालांतर तक समाज और लोग करते रहते हैं। दादा श्री प्रेम शंकर दुबे की स्मृति को अक्षुण्य बनाए रखने के लिए एक पत्रकार भवन इटारसी शहर में रेस्ट हाउस के पास पोस्ट ऑफिस जाने वाले मार्ग पर पूर्व एसडीएम निवास के बाजू से बनाया गया है। तत्कालीन गृह उपमंत्री विजय दुबे काकू भाई के प्रयास से चतुर्थ पुण्यतिथि पर 14 दिसंबर 1995 को तत्कालीन नगर पालिका अध्यक्ष अनिल अवस्थी ने सुधार न्यास का पुराना शेड पत्रकार भवन के लिए तत्कालीन होशंगाबाद जिला पत्रकार संघ वर्तमान में नर्मदापुरम पत्रकार संघ को उपलब्ध कराया। तत्कालीन सांसद सरताज सिंह, सुरेश पचौरी, विधायक डॉ. सीतासरन शर्मा, उद्योगपति एवं समाजसेवी बंशीलाल राठी, तत्कालीन मंत्री कर्नल अजय नारायण मुश्रान, हजारीलाल रघुवंशी एवं मध्य प्रदेश लघु उद्योग निगम के अध्यक्ष माणक अग्रवाल, विधायक विजयपाल सिंह, तत्कालीन सांसद सुंदरलाल पटवा के प्रयासों से पत्रकार भवन बनकर तैयार हो गया। जो शासन-प्रशासन तथा नगर वासियों सहित पत्रकारों के निरंतर उपयोग में आ रहा है।
नर्मदा अंचल में पत्रकारिता की जीती, जागती, निष्कलंक छवि के धनी श्री प्रेम शंकर दुबे थे। जिले में पत्रकारिता कर रहे कई पत्रकारों को उनका मार्गदर्शन और प्रेरणा समय-समय पर मिली है। स्व. दुबे के निर्वाण दिवस 14 दिसंबर को उनकी स्मृति को पुन: याद करते हैं तथा उनके आदर्श और सिद्धांतों को अपना सके प्रभु हमें इतनी ताकत दे। अंत में उनकी जीवन आदर्श को परिलक्षित करती युवाओं के लिए प्रेरणाप्रद अथर्ववेद की इन पंक्तियों के साथ उन्हें सादर श्रद्धांजलि…
उद्यानं ते पुरूष नावयानं जीवातुं ते दक्षतातिं कृणोमि।
आ हिं रोहेमममृतं सुखं रथमथ जिविर्विदथमा वदामि।।

(मानव तेरे जीवन का लक्ष्य ऊपर को चढऩा है, नीचे को जाना नही, उन्नति ही करनी है, अवनति नही। आगे प्रभु प्रेरणा देते हैं-हे मानव इस प्रकार जीने के लिए मैं तुझे बल देता हूं। इस जीवनरूपी रथ पर चढ़कर उन्नति को प्राप्त कर और संसार में अपने चरित्र के बल पर प्रशंसित होकर दूसरों को भी प्रेरणा दे।
प्रमोद पगारे
अध्यक्ष नर्मदापुरम पत्रकार संघ

Rohit Nage

Rohit Nage has 30 years' experience in the field of journalism. He has vast experience of writing articles, news story, sports news, political news.

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