इटारसी। जैन समाज के पर्यूषण पर्व के दसवे दिन जैन समाज ने श्री चैत्यालय, पाश्र्वनाथ मंदिर और नेमीनाथ मंदिर से पालकी शोभायात्रा निकाली। पालकी शोभायात्रा ने नगर भ्रमण किया। इस दौरान मुनि श्री निराकुल सागर भी उपस्थित रहे।
इससे पूर्व श्री चैत्यालय में शास्त्री आशीष का तारण समाज संगठन ने शास्त्र व श्रीफल भेंटकर सम्मान किया। मंदिर में आरती, भजन, प्रभावना संपन्न हुई। दसवे दिन अपने प्रवचनों में शास्त्री आशीष ने कहा कि अध्यात्म-मार्ग में ब्रह्मचर्य को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि सही मायने में वही मोक्ष का कारण है। ब्रह्म यानि आत्मा और चर्या यानि रमण* करना अर्थात् समस्त भौतिक विषयों में अनुराग (परिग्रह) छोड़कर अपने आत्म-स्वरूप में रमण करना या लीन रहना ही सच्चा-ब्रह्मचर्य है।
इसे अणुव्रत और महाव्रत दोनों ही रूप से ग्रहण किया जाता है। उत्तम-ब्रह्मचर्य तो नग्न-दिगम्बर भावलिंगी-मुनियों को ही होता है। श्रावकों के लिये इसे अणुव्रत के रूप में अवश्य ग्रहण करना चाहिये।
जो श्रावक अपनी जाति की, कुलीन घर की, समाज की साक्षी पूर्वक विवाहिता-स्त्री में संतोष धारण करके, उसके अलावा अन्य समस्त स्त्री-मात्र में राग-भाव का त्याग करते हैं, वह ब्रह्मचर्य अणुव्रत के धनी होते हैं। जो वृद्धा, बालिका, यौवना स्त्री को देखकर उनमें बड़ी को मां, छोटी को बेटी और हम उम्र को बहन समान मानकर स्त्री-संबंधी अनुराग का त्याग करते हैं, वे तीनों लोकों में पूज्य ब्रह्मचर्य-महाव्रत के धनी होते हैं।
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पर्यूषण पर्व: पालकी शोभायात्रा निकाली, पूजा-आरती हुई

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