भगवान के वनगमन और उसके पीछे की शिक्षा की कथा सुनायी
इटारसी। जब राजा दशरथ (King Dasharatha), प्रभु श्री राम (Shri Ram) को आयोद्धा का युवराज बनाना चाहते थे, लेकिन मंथरा और कैकई के कपट के कारण श्री राम ने युवराज न बनते हुए 14 वर्ष का वनवास स्वीकार कर लिया। संपूर्ण जीवन में मर्यादा में रहकर श्रीराम ने सबका कल्याण किया। वनवासियों को गले लगाया। गरीब और वंचित भक्तों को अपनाया। शबरी के झूठे बेर खाए। इन सब कार्यो से उन्होंने एक ही शिक्षा दी कि दूसरों का सहयोग करें, दूसरों का भला करें। तभी यह मानव जीवन सार्थक होगा। वरना स्वयं के लिए तो कुत्ता बिल्ली सहित अन्य जानवर जीते हैं। जो दूसरों के लिए जीता है उसका समाज में सदा स्मरण होता है। और जो खुद के लिए जीता है उसका एक दिन सड़ सड़कर के मरण होता है।
उक्त उद्गार श्री द्वारकाधीश (बड़ा) मंदिर (Shri Dwarkadhish (Big) Temple) में आयोजित संगीतमय श्री राम कथा (Shri Ram Katha) के छठवें दिन श्री राम के वनगमन प्रसंग पर गुना से पधारे बाल संत शाश्वत महाराज ने व्यक्त किए। कथा में महाराज श्री ने बताया कि रामायण में श्रीराम के चरित्र से हमें बहुत कुछ सीखने को मिलता है हमें कैसा मित्र बनाना चाहिए। कैसा भाई बनाना चाहिए। कैसा पति बनना चाहिए। कैसे माता-पिता का आचरण होना चाहिए, यह सब हमें रामायण सिखाती है। इसलिए सभी को अपने बच्चों को घर-घर रामायण का पाठ अर्थ सहित कराना चाहिए। गुरुवार को कथा में समाजसेवी एवं व्यापारी शिरीष कोठारी, निपुण गोठी, दीपक हरिनारायण अग्रवाल, सत्यम अग्रवाल नीरज जेन, अशोक सोनी एवं मयंक मेहतो सहित अन्य लोगों ने व्यासपीठ का पूजन अर्चन किया एवं महाराज श्री का स्वागत किया। इस अवसर पर समिति के मुख्य संरक्षक डॉ सीतासरन शर्मा, संरक्षक प्रमोद पगारे, अध्यक्ष सतीश अग्रवाल सांवरिया, कार्यकारी अध्यक्ष जसवीर छाबड़ा, सचिव एडवोकेट पं अशोक शर्मा सहित समिति के पदाधिकारी एवं सदस्य मौजूद रहे। 8 अप्रैल को कथा का विश्राम होगा।