स्नेह सुरभि। ना मैं भक्त हूं ना विपक्ष और ऐसा विपक्ष ताे कतई नहीं जाे पंगू हाे, भीरू हाे। आत्महिताें के लिए आत्मा का साैदा कर चुका हाे। मैं उन चिताओं की उठती लपटाें में धूं- धूं कर जल रहे लाेगाें का सवाल हूं.. जाे पूछना चाहता है मेरी गलती क्या थी…
यह कि तुमने स्कूल भवन बना दिया, शिक्षक नहीं दिए
तुमने अस्पताल बना दिया, डाक्टर स्टाफ नहीं दिए
कंपनियां ले आए राेजगार नहीं दिया
पद सृजित किए बजट बढ़ाया भर्ती नहीं करी
सीमेंट कांक्रीट के महल खड़े करते रहे मेनपावर काे उपेक्षित किया
तुमने कीमत बढ़ाई और आदि हाे चुका मैं चुकाता रहा दाम
तुमने फ्री बांट दिया और मैने अपना हक समझ लिया हराम
पर
मैंने तुमसे सवाल नहीं किया, ना तुम्हारा विराेध। हां यही मेरी गलती है। इसलिए आज आदमी काे आदमी की जरूरत नहीं रही। सब तकनीक और स्क्रीन पर ऑनलाइन हाे गया है। पावर तब भी तुम्हारे हाथ में था और पावर अब भी तुम्हारे हाथ में रहे इसलिए नहीं रुक रहे तुम्हारे राजनैतिक पाखंड। पर रुक गए हैं मेरे आस्था के मंदिर, विश्वास के अनुष्ठान यहां तक कि रुक गई वह टूटी फूटी शिक्षा जिसमें आज भी मैकाले की परतंत्रता की बू आती है लेकिन उम्मीद रहती है कि कुछ नहीं ताे अक्षर ज्ञान ताे मिल रहा है। शिक्षा काे ताे तुमने पहले ही तिलांजलि देना शुरु कर दिया था। साक्षर बेराेजगाराें की फाैज खड़ी हुई। पर कम से कम भराेसा ताे जिंदा था कि कमा खा लेगी। अब ये जाे नई तरकीब लाए हाे ना प्रमाेशन.. राम ही राखे। तुम और वाे सब जिनकी जेबे हरी हाे रही हैं, आज ताे अधकचराें काे अपनी सेवा खुशामद के लिए अवसर दे देते हाे। कुछ नहीं ताे तुम्हारे तलुए चांटने वालाें काे कुर्सी ताे दे देते हाे। बात और है कि कूबत नहीं हाेती ताे गिर जाते हैं धड़ाम से जाे सक्षम हाेते हें बढ़ जाते हैं आराम से, वैसे तुम सक्षम का सहारा नहीं बनते कभी यह ताे धाेखे धड़ाके की बात है। पर इस प्रमाेशन के दाैरान की शिक्षित पीढ़ि की अंकसूची देखकर तुम और तुम्हारे अवसराकांक्षी ठिठक जाएंगे। काबिलियत से तुम्हारी खुशामद भी नही कर पाएंगे। तुम्हें आपदा में अवसर दिख रहा है और मुझे यह आपदा अब कहर बरपाती दिख रही है।
क्याें जानते हाे
मैने तुम्हारे काेराेना की डिक्शनरी के केवल दाे शब्द बड़ी गहराई से पढ़े.. साेशल डिस्टेंस और आईसाेलेशन।
साेशल डिस्टेंस की हिंदी कहती है सामाजिक दुराव या दूरी और आईसाेलेशन का हिंदी अर्थ है अलग हाे जाना। मुझे इन दाेनाे शब्दाें से एक बड़े घात की बू आती है। हम त्वरित लाभालाभ के माेह में पड़े इन शब्दाें के दूरगामी परिणाम ताे मंहगे चश्माें से भी नहीं देख पा रहे। यदि संक्रमण है ताे शरीर से दूरी जरूरी है, यानी फिजिकल डिस्टेंस ताे समाज से दूरी क्याें…और संक्रमण से समाज काे सुरक्षित करना है ताे एजुकेशन जरूरी है आइसाेलेशन क्याें..
कहीं इसलिए ताे नहीं कि हमारा यही सामाजिक जुड़ाव और अलग- थलग ना रहने की आदत हमें दूसराें से अलग करती है। यही हमारी ताकत है। विदेशाें से महानगराें तक पहुंच पहले पहुंचने में इस माॅर्डनिज्म काे कई बरस लग गए। पर इस करामाती काेराेना ने एक झटके में पढ़े अनपढ़ सबकाे अंग्रेजी रटा दी भाई.. वाे भी एकदम सटीक उच्चारण के साथ।
साेचिए शायद कहीं काेई नया सवाल मिले।
जाे भी हाे अगर मानसिक और बाैद्धिक रूप से जिंदा हाे ताे एक संकल्प ठान लाे अपने आत्मसम्मान के लिए..
विधाता ने मनुष्य का जन्म देकर सम्मान दिया है
अपने सदकर्माें से हमने अपने जीवन काे सम्मान देने का संभव प्रयास भी यथाशक्ति किया ही हाेगा
वनवास ना सही जीवन में आई कठिनतम परिस्थितियाें से राम बनकर निकलने का प्रयत्न भी हर जीवन में आया हाेगा
ताे अपनी मृत्यू काे भी सम्मान दीजिए
किसी सर्दी जुकाम जैसी मुसीबत के डर से मर जाना मृत्यु का अपमान ही ताे है
आना नहीं था हाथ में
जाना मगर है तय
जीवन का मृत्यु से
है परिणय अक्षय
सुन माैत तेरा वरण भी उत्सव सा ही करूंगा मैं।
स्नेह सुरभि
मोबाइल नंबर- 98938 23981