नर्मदापुरम। श्री रामलीला महोत्सव (Shri Ramlila Mahotsav) देखने आने वाले श्रद्धालुओं की संख्या बढऩे लगी है। बीती रात रामलीला में दिखाया कि श्रीराम (Shri Ram), जानकी (Janaki) और लक्ष्मण (Lakshman) चित्रकूट (Chitrakoot) पहुंचते हैं। मार्ग में अत्रि मुनि के आश्रम में जाते हैं वहां ऋषि पत्नी अनसूया सीताजी को अपने पास बैठाकर धर्म-कर्म की बातें समझाकर उन्हें दिव्यवस्त्र आभूषण भेंट करतीं हैं।
आगे चलकर श्रीरामजी की भेंट श्रंगऋषि से होती है, पश्चात वन में ऋषि मुनियों के आश्रम में श्रेष्ठ मुनियों के समूह उनको हड्डियों का ढेर दिखलाते हैं, ये देखकर श्रीरामजी अपनी दोनों भुजाएं उठाकर प्रण करते हैं कि मैं पृथ्वी को राक्षसों से रहित कर दूंगा। मुनि सुतीक्ष्ण से भेंट करके अगस्त मुनि से मिलन होता है और श्रीरामजी का दण्डक वन में प्रवेश होता है जहां जटायु मिलते हैं। श्रीराम जी, जानकी जी और लक्ष्मण जी दण्डक वन में पंचवटी (Panchavati) आश्रम में रहने लगते हैं, तभी वहां एक दिन रावण की बहन शूर्पणखा (Shurpanakha) अपना वेश बदल कर आती है, लक्ष्मण जी उसके नाक कान काटकर मानों रावण को चुनोती दे देते हैं।
लीला में श्री सीताजी जी अग्नि में प्रवेश दिखलाया। इधर नाक कान कटी हुई शूर्पणखा अपने भाई रावण (Ravana) के पास पहुंचकर बताती है कि उसकी यह दशा श्रीराम ने की है और खर दूषण आदि का भी वध कर दिया है, तब रावण विचार करता है क्योंकि ताड़का, सुबाहु, खर और दूषण आदि सभी रावण जितने ही बलशाली थे, तब वह मारीच के पास जाता है और षड्यंत्र कर उसे स्वर्ण मर्ग बनाकर पंचवटी में ले जाता है, जहां सीताजी श्रीरामजी से स्वर्ण मृग को लाने कहती हैं, श्रीराम जी उसके पीछे जाते हैं, आश्रम को सूना देखकर राक्षसराज रावण साधु का वेेष बनाकर भडि़हाई जैसा आता है और सीताजी का हरण कर रथ में बैठाकर आकाश मार्ग से ले जा रहा होता है तभी आकाश में उसका युद्ध गीधराज जटायु से होता है, जहां रावण उसके पंख काट देता है। मारीच का वध करने के बाद जटायु श्रीरामजी को बतलाते हैं कि रावण सीताजी का हरण करके दक्षिण दिशा की ओर ले गया है, श्रीराम जी सीता जी की खोज में आगे निकलते हैं।