इटारसी। समीपस्थ ग्राम डोलरिया में आयोजित संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के तीसरे दिवस कथा व्यास पं. भगवती प्रसाद तिवारी ने अपने मुखारबिंद से सतगुरू महामुनि शुकदेव महाराज ने राजा परीक्षित को कथा के माध्यम से समझाया कि संसार में परम पिता परमेश्वर, धर्म, सत्य, ईमानदारी, न्याय, नीति, सदाचार, सेवा, सत्संग पर पूर्ण विश्वास रखना चाहिये। चाहे इन बातों का पालन करते हुए हमें, दुख, अपमान, गरीबी, निंदा, परेशानी, विपत्ति का सामना करना पड़े तब भी भरोसा कम न हो। जिन लोगों का भरोसा धर्म, सत्य, न्याय, ईश्वर पर नहीं है। वे लोग ही अधर्म, असत्य, अन्याय का सहारा लेते। वेद, शास्त्र, पुराण, कथा, मंदिर, सत्संग हमें यही प्रेरणा देते हंै कि मनुष्य शरीर सतकर्म, पुण्य, भजन, आत्म उद्धार के लिये मिला है। कहते हैं (मनुर्भव) मनुष्य बनो, मनुष्य शरीर तो सबके पास लेकिन मनुष्यता के गुण संस्कार, सभी के पास नहीं हैं। आदमी चाहता है मैं बड़ा बन जाऊं, अच्छी बात है। बड़े बनो लेकिन बड़ा बनने के साथ-साथ अच्छा मनुष्य बनना बड़ी बात है।
आप बड़े बनो न बनो कोई बात नहीं लेकिन अच्छे गुणवान, चरित्रवान, दयावान, वैराग्यवान जरूर बनो। मनुष्य जीवन को सही ढंग से जीना, ढोंग से नहीं। जब तक मनुष्य संसार के सुखों के पीछे छिपे हुए दुखों को समझ नहीं लोगे, तब तक वैराग्य उत्पन्न नहीं होगा। बिना वैराग्य के चंचल मन एकाग्र नहीं होगा। मन की एकाग्रता, स्थिरता रुक जाना ही ध्यान, शांति, आंनद का मूल आधार है। अज्ञानी मनुष्य ही जड़ वस्तु को जैसे भूमि, भवन, सोना, चांदी आदि तथा चेतन वस्तुओं को पति, पति, पुत्र, मित्र आदि अपनी आत्मा का एक भाग मानकर लाभ हानि होने पर सुखी और दुखी होता है। जबकि हमारा शरीर भी हमारा नहीं है। ये पांच तत्व का है। यह भी मेरा नहीं है तो और जड़ चेतन वस्तु मैरी कैसे हो सकती है। मनुष्य जीवन ईश्वर प्राप्ति के लिये मिला है। इस मुख्य लक्ष्य को ध्यान में रखते हुए अपने कत्र्तव्य कर्म को पूर्ण ईमानदारी और समझदारी से करना चाहिये। कर्म ही धर्म पूजा बनाओ।