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बहुरंग: अफसोस है कि…

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आज मदनमोहन की आवाज में ‘ नैना बरसे…’गीत फिर सुना। साथ ही इसी गीत को पुनः एक बार लता जी की आवाज में भी सुना। अफसोस कि 1964 में रिलीज इस फिल्म ( वो कौन थी )के गीत – संगीत को फिल्म फेयर एवार्ड के योग्य नहीं समझा गया। लता जी ने जब संगीतकार मदनमोहन से व्यक्तिगत रूप से इस बात के लिए अफसोस जाहिर किया तो उन्होंने सहजता से उत्तर दिया- ‘तुम्हें अफसोस हुआ मेरे लिए यही क्या कम है’।ऐसे ही जब 1963 में साहिर साहब को फिल्म’ ताजमहल ‘(जो वादा किया) के लिए फिल्म फेयर अवार्ड दिया गया था तो उन्होंने गीतकार शैलेंद्र को इसका असली हकदार बताते हुए उन्हें फिल्म ‘ बंदिनी ‘ (मत रो) के गीत के लिए ये अवार्ड समर्पित कर दिया। इतना बड़प्पन अब फिल्म इंडस्ट्री में कहां रह गया है। खैर। ‘ वो कौन थी ‘ फिल्म की नायिका थीं साधना। नायक थे मनोज कुमार। मनोज कुमार ने तो देशभक्ति की राह पकड़ ली परन्तु साधना के चेहरे पर जैसे ज़िंदगी भर के लिये ‘सस्पेंस’ चिपक गया। उनकी बराबरी के नायक केवल एक ही थे । वे थे विश्वजीत। याद कीजिये उनकी ‘ बीस साल बाद ‘ (1962) और ‘ कोहरा ‘ ( 1964 ) जैसी फिल्मों ने बॉक्स ऑफिस पर कितनी धूम मचाई थी लेकिन दोनों ही फिल्मों में उनकी नायिका थीं वहीदा रहमान। दोनों ही फिल्मों के निर्देशक थे बीरेन नाग। संगीतकार थे हेमंत कुमार । जिन्हें हिंदी फिल्मों का अल्फ्रेड हिचकॉक कहा जाए तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। रामसे बन्धु तो बहुत बाद में आये । वो भी ‘ सी ग्रेड ‘ की फिल्में लेकर। उनकी सभी फिल्में एक जैसी रहती थीं । साथ ही उनकी फिल्मों का सबसे कमजोर पक्ष रहता था उनका गीत संगीत। हालांकि उनकी शुरुआत बहुत अच्छी रही।

रामसे ब्रदर्स की बहुचर्चित फिल्म ‘दरवाजा’ आप अब तक नहीं भूले होंगे। ‘ सामरी ‘ भी आपको याद ही होगी। साथ ही आपको याद होंगे चरित्र अभिनेता जयंत के बड़े सुपुत्र और अमजद खान के बड़े भाई इम्तियाज खान भी। चलिए बात हो रही थी विश्वजीत की। उन्होंने भी ” भारतीय जनता पार्टी ” का दामन थामकर राजनीति में प्रवेश कर लिया है। उनके पुत्र प्रसेनजीत बांग्ला फिल्मों के जाने – माने अभिनेता हैं। स्टार किड की बात करें तो केवल रणवीर कपूर ही प्रभावित करते हैं जबकि उनके पिता ऋषि कपूर औसत दर्जे के अभिनेता थे। रणवीर कपूर को भी रणवीर सिंह से जोरदार टक्कर मिल रही है। जहां रणवीर कपूर ने रॉक स्टार, तमाशा जैसी फिल्मों में प्रभावित किया है वहीं रणवीर सिंह ‘बैंड बाजा बारात ‘से’ गली बॉय ‘तक खलबली मचाते नजर आए। ‘गली बॉय’ को तो ऑस्कर के लिए भी नॉमिनेटेड किया गया था। ऋतिक केवल अपने होम प्रोडक्शन की फिल्मों के लिए ही बने हैं। हां निर्देशक डेविड धवन के पुत्र वरुण धवन ने जरूर फिल्म ‘ अक्टूबर ‘ से उम्मीदें जगाई हैं । नायिकाओं में केवल आलिया भट्ट का ही काम उनके पिता महेश भट्ट के नाम की गरिमा के अनुरूप रहा है। आलिया की ‘हाई वे’ और ‘ राजी ‘ फिल्मों में उन्होंने कमाल का अभिनय किया है । शेष स्टार किड की चर्चा करना व्यर्थ है। बाहरी अभिनेताओं में मात्र विकी कौशल और राजकुमार राव के नाम उल्लेखनीय हैं।

आयुष्मान खुराना, कार्तिक आर्यन तो औसत दर्जे के भी कलाकार नहीं कहे जा सकते। नई नायिकायें भी बदन दिखाने के अलावा कुछ नहीं कर पा रहीं हैं। गायकों में अरिजीत सिंह के अतिरिक्त्त सब बेफजूल हैं । जब संजय दत्त, सलमान जैसे अभिनेता भी अपनी भोंडी आवाज में गाने लगें तो समझो बेड़ा गर्क है । वैसे भी गीत संगीत के नाम पर पंजाबी पॉप सांग का बोलबाला है। वजह साफ है। फिल्म इंड्रस्टी को न तो अच्छी कहानियां मिल रही हैं न ही अच्छे गीत । कैसे मिलेंगे ? गीतकार गुलजार और जावेद अख्तर आजकल की धुनों के साथ तालमेल नहीं बिठा पा रहे हैं । इधर प्रसून जोशी जैसे नवोदित गीतकारों को हाशिये पर धकेल दिया गया है । वो जमाने गए जब पहले सिचुएशन पर गीत लिखे जाते थे बाद में उसका संगीत तैयार होता था। फिल्मों की बात करें तो अब या तो आप हॉलीवुड की फिल्मों की हिन्दी में डबिंग देखिए या फिर दक्षिण भारतीय फिल्मों की डबिंग या उसका हिंदी रीमेक देखने के लिए आप बाध्य हैं । ‘ नेट सीरीज ‘ में परोसी गई अश्लीलता तो अब जैसे बच्चों के लायक ही रह गई है । क्या नहीं परोसा जा रहा है बच्चों को जरा सोचियेगा ? दुखद स्थिति तो ये है कि अमिताभ बच्चन जैसा गम्भीर अभिनेता भी झंडू बाम की मानिंद रह गया है । फोन कॉल पर आने वाले संदेश से तो उनको बेइज्जत कर के कब का बाहर निकाल दिया गया मगर ‘ पधारो म्हारे देश ‘ कहते हुए ये बाबू मोशाय अभी भी हमारी छाती पर लदे हुए हैं । बच्चन जी हमने नाहक ही अब तक आपको और आपके ‘ दसवीं पास ‘ बेटे को ढोया है। बाइज्जत हमारे सर पर से उतर जाओ भाई।… इस सबसे और कितना पैसा कमाओगे। घर चलाने के लिए कब तक अपने को बेचोगे। ‘ निःशब्द ‘ जैसी घटिया फिल्म अभी तक दर्शक भूले नहीं हैं।

vinod kushwah

विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)

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