सफाई ऐसी हो जो नजर आए, आखिर क्यों प्रयास नजर नहीं आते

Post by: Rohit Nage

Cleanliness should be such that it is visible, why are efforts not visible?

इटारसी। इस वर्ष स्वच्छता सर्वेक्षण की थीम है, ‘सफाई ऐसी हो, जो नजर आए।’ जाहिर है, इस बार स्वच्छता सर्वेक्षण का फोकस मैदानी सफाई देखने पर रहेगा, डाक्यूेमेंटेशन पर नहीं। यानी, परीक्षा बड़ी कठिन है। स्वच्छता निरीक्षक और स्वास्थ्य अधिकारी नहीं होने से मुश्किलें तो आती हैं, लेकिन यह तस्वीर तो 17 किलोमीटर दूर नर्मदापुरम की भी है, लेकिन वहां ढाई माह पूर्व से नोडल अधिकारी मैदान पर जाकर पूरी मेहनत कर रहे हैं और सीएमओ की सुबह ही वार्डों के दौरों, जनता की परेशानी सुनकर उनका समाधान करने से होती है।

नवाचार के नाम पर कुछ नहीं

नवाचार के नाम पर कुछ नहीं हो रहा है, न तो पार्षदों को इसके लिए विश्वास में लिया गया है। पार्षदों की बैठक तक सीएमओ ने लेकर उनसे सहयोग नहीं मांगा है। कोई कार्यशाला तक नहीं हुई है। पार्षद, सफाई कर्मी और स्वच्छता मित्र को अपना किरदार निभाने के लिए नहीं बताया है। नागरिक सफाई कार्य में सहयोग करेंगे तो नगर स्वच्छ और सुंदर होगा, लेकिन न तो व्यापारियों को भरोसे में लिया, न उनकी कोई बैठक अब तक ली गई। स्कूलों से काफी सहयोग मिलता था, अब तक उनकी बैठक भी नहीं हुई है। हालांकि इस बार केन्द्रीय दल आने में देरी होगी, क्योंकि दिसंबर से दलों का आना प्रारंभ हो जाता था, इस बार अब तक दलों के आने का प्रोग्राम तय नहीं हुआ है।

नागरिक सहयोग भी जरूरी

स्वच्छता सर्वेक्षण की सार्थकता तभी सिद्ध होगी जब नागरिकों का इसमें ईमानदारी से योगदान मिलेगा। नियम बन गये, सैंकड़ों बार नागरिकों से आह्वान किया जा चुका है कि उनको स्वच्छता सर्वेक्षण में महज इतना योगदान करना है कि जो आदतें हैं, उनमें बदलाव लायें, लेकिन, अपेक्षित सफलता नहीं मिली। न तो नागरिक गीला-सूखा कचरा अलग करके दे रहे हैं, न मैदानों में कचरा डालना बंद हो रहा है, ना ही अपना आंगन साफ करके सड़क पर कचरा गिराना बंद हो रहा है। नागरिक यदि थोड़ा ही सहयोग कर दे तो शहर साफ भी होगा और शहर की स्वच्छता रैंक भी बेहतर होगी।

अपना शहर की भावना

नगर पालिका ने 2014 से प्रारंभ स्वच्छता अभियान में दर्जनों बार जागरुकता कार्यक्रम चलाये हैं, स्कूलों में, बैंकों सहित सरकारी दफ्तरों, रेस्टॉरेंट, मैरिज गार्डन संचालकों को स्वच्छता का महत्व बताते हुए जागरुक करने का प्रयास किया। नुक्कड़ नाटकों के माध्यम से आमजन, कार्यशाला के माध्यम से व्यापारियों को जागरुक करने का प्रयास किया, लेकिन जो अपेक्षित सहयोग है, उसमें कहीं न कहीं कमी है। क्योंकि शहर को स्वच्छ रखना आमजन केवल सरकारी दायित्व समझता है, जो लोग वर्षों से टैक्स जमा नहीं करते, वे भी केवल नगर पालिका को ही कोसते हैं।

पार्षदों का भी अपेक्षित सहयोग नहीं

जब बात स्वच्छता की आती है, तो पार्षदों का भी अपेक्षित सहयोग मिलने की जगह विरोधी दल के पार्षद सत्ताधारियों पर उनके वार्ड के उपेक्षा का ठीकरा फोड़ते हैं, नागरिकों को जागरुक करने के लिए अपने वार्ड में कोई प्रोग्राम नहीं चलाते, ताकि नागरिक भी स्वच्छता में सहभागी बन सकें। पौधरोपण, विशेष सफाई अभियान, लोगों की स्वच्छता के लिए आदतों में बदलाव जैसे मुद्दे हैं, जिन पर काम करके हम अपने शहर को स्वच्छ बना सकते हैं।

ऐसी है नगर पालिका की तैयारी

नगर पालिका अधिकारियों का ध्यान स्वच्छता सर्वेक्षण में अव्वल आने की तैयारी का अपना जुदा अंदाज है। नपा उन कार्यों पर फोकस कर रही है, जिनमें नंबर ज्यादा मिलने हैं, मैदानी सफाई में नंबर कम हैं, बड़े प्रोजेक्ट पर ज्यादा। शहर में जगह-जगह कचरे के ढेर तैयारियों को मुंह चिड़ा रहे हैं, लेकिन नगर पालिका का ध्यान जिलवानी में हो चुके कचरे के पहाड़ को खत्म करने पर है। इसके लिए चंबल की एक कंपनी को काम मिला है। वह सेग्रिगेशन का काम कर रही है। टिंचिंग ग्राउंड पर नंबर अधिक हैं, अत: फोकस भी वहां अधिक है। कंपनी से कचरा निष्पादन का काम कराया जा रहा है। एफएसटीपी का काम प्रारंभ है, टायलेट मरम्मत, रंग-रोगन के टेंडर, डस्टबिन के टेंडर लग चुके हैं, कचरा गाडिय़ों में सुधार कार्य हो गया है।

इनका कहना है…

  • स्वच्छता सर्वेक्षण के लिए जो भी प्राथमिकताएं हैं, उन पर काम चल रहा है। मैदान पर जो करना है, वह तो प्रारंभ कर ही रहे हैं, टिंचिंग ग्राउंड पर भी काफी काम हो रहे हैं, सरकार का फोकस है कि कचरे को वहां ले जाकर खत्म कैसे किया जाए, इस पर काम करना है। जल्द ही जागरुकता कार्यक्रम भी शुरु कराये जाएंगे।

पंकज चौरे, अध्यक्ष नपा

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