Editorial: देश हो रहा अनलॉक, कोरोना को लॉक करने दिखाना होगा समझदारी

Post by: Poonam Soni

देश अनलॉक हो रहा है, लेकिन कोरोना को लॉक करने का वक्त आ गया है। बीते आठ माह से देश लक्ष्मण रेखा के भीतर रहकर डरा-डरा सा जी रहा है। अब अनलॉक का वक्त है, यह डर का नहीं समझदारी दिखाने का वक्त है। अब तक बे-खौफ घूमकर लोगों में खौफ पैदा कर रहे कोरोना को अब लॉक करके उसके ताबूत में अंतिम कील ठोंकने का वक्त है। लेकिन, समझदारी और सावधानी से।
मौसम बदल रहा है और हल्की सर्दी और उसके साथ ही त्योहारों का दौर शुरू होने वाला है। अर्थव्यवस्था भी रफ्तार पकडऩे लगी है। हमारे प्रधानमंत्री ने जागरुकता की नई मुहिम शुरु की है। जब तक दवाई नहीं, तब तक ढिलाई नहीं। सच, कोरोना से निपटने के लिए यह बेहद जरूरी है कि उसे पहले की तरह खुला घूमने का अवसर न दिया जाए। खबरें, सुकूनभरी आ रही हैं। संक्रमित से ज्यादा अब स्वस्थ होने वालों की संख्या निकल रही है। होशंगाबाद जिला भी इसमें अपनी समझदारी भरी भागीदारी निभा रहा है। ऐसे में जरूरी है कि कोरोना से निपटने और बचने के लिए हम पहले से कहीं ज्यादा सावधान रहें। आजीविका के लिए घर से निकल रहे लोगों के मन में तो डर कम हो गया है। लेकिन खतरा कम नहीं हुआ। अब संक्रमितों की संख्या कम हुई है तो इसके पीछे प्रशासन की मेहनत, आमजन की समझदारी और सामाजिक संगठनों के जागरुकता अभियान की मेहनत है। बीते करीब एक पखवाड़े की मेहनत के नतीजे में हम सुकून के दिन निकाल पा रहे हैं। जरा सी असावधानी या फिर लापरवाही इन सब पर भारी पड़ सकती है। क्योंकि खतरा कम होते दिख तो रहा है। लेकिन, बदलते मौसम में यह पहले की तुलना में बढ़ सकता है। सरकारों ने जितने प्रयास करने थे, कर लिए। अब सरकार भी चाहती है कि यह अभियान जन-आंदोलन की बने और जनता इसमें भागीदार हो। जनता को केवल इतनी समझदारी दिखानी होगी कि मास्क पहनने, शारीरिक दूरी बनाए रखने और हाथ धोने के मामले में कोई कोताही न बरते। यह कोरोना से सबसे सस्ता और कारगर बचाव है।

इसी वर्ष जब पहली बार 22 मार्च को जनता कफ्र्यू लगा था, तब से प्रधानमंत्री प्रयास कर रहे हैं कि जनता की भागीदारी हो। लॉकडाउन जैसे अप्रिय कदम और घर के भीतर मानसिक तनाव झेल रहे लोगों का ध्यान कोरोना के डर से हटाने के लिए उन्होंने स्वयं कई प्रयोग कराए जो, कई लोगों को बचकाना अवश्य लगे हैं। लेकिन, लोग वास्तव में समझ नहीं सके और विपक्षी दलों ने इसे हंसी का पात्र बना दिया। दरअसल, थाली बजाने से, शंख बजाने से, गो कोरोनो गो कहने से कोरोना भागने वाला नहीं है, यह तो स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी जानते थे और उनके विरोधी भी। प्रधानमंत्री तो कोरोना की तरफ से लोगों का ध्यान हटाकर कुछ मनोरंजक तरीके बता रहे थे, यह विरोधी भी भली-भांति जानते थे। लेकिन, विपक्ष का भी धर्म निभाना था और प्रधानमंत्री के इस तरह के उपायों को हंसी का पात्र बनाकर उनको घेरने का अवसर भी बनाना था।

दरअसल, मास्क, शारीरिक दूरी, सेनेटाइजर से या साबुन से बार-बार हाथ धोने से कोरोना को हम 90 फीसदी तक हरा सकते हैं। कहीं कोई चूक या असावधानी न हो तो कोरोना को हावी भी नहीं होने दिया जा सकता है। लेकिन, देश में जो इतनी अधिक समस्या बढ़ी है, वह सरकारों की चूक भी थी और आमजन की नादानी और अक्खड़पन भी। बार-बार बिना जरूरत घर से निकलने को मना करने के बावजूद लोग लॉकडाउन को तोड़ते और जनता कफ्र्यू में शहर कैसा दिखता है, यह देखने घर से निकलते थे, वह भी बिना मास्क लगाये। आमजन की इन्हीं हरकतों ने कोरोना का संकट तेजी से बढ़ाया था। अब वक्त है, पुरानी गलतियों को न दोहराते हुए, समझदारी दिखाकर कोरोना को हराने का। आईए, हम दिखा दें कि जब हम एकजुट होकर लड़ते हैं, हारते नहीं और किसी को जीतने नहीं देते हैं।

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