महोदय ,
अन्य राज्यों की तुलना में मध्यप्रदेश में दुष्कृत्य के मामले कुछ ज्यादा ही हो रहे हैं । इनमें भी छोटे-छोटे मासूम बच्चे हैवानियत का शिकार हो रहे हैं । ध्यान देने वाली बात यह है कि छोटे बच्चे अक्सर चॉकलेट के लालच में आ जाते हैं । इस तरफ न तो मध्य प्रदेश सरकार का ध्यान जा रहा है , न महिला बाल विकास विभाग का और न ही स्कूल शिक्षा विभाग का । इधर तमाम आयोग भी बाल संरक्षण के नाम पर बस लीपापोती भर ही कर रहे हैं । …और एन जी ओ मात्र कागजों तक ही सिमट कर रह गए हैं । उनकी लालची नजरें शासन से मिलने अनुदान पर ही टिकी रहती हैं । नोबल पुरस्कार विजेता कैलाश सत्यार्थी के एन जी ओ इस दिशा में क्या प्रयास कर रहे हैं ? मुझे आज तक ये समझ नहीं आया कि इस व्यक्ति को नोबल पुरस्कार मिल कैसे गया ? कहां गये वे 80 हजार बंधुआ बाल मजदूर जिनको कैलाश सत्यार्थी ने मुक्त कराया था ? सत्यार्थी तथा उनकी पत्नी सुमेधा पर मुक्ति प्रतिष्ठान के पैसों के दुरुपयोग का आरोप है । इस पैसों से उन्होंने विदेश यात्राएं कीं एवं अन्य सुविधाओं पर ये पैसे खर्च किये । जब इस सबकी जांच हुई तो ट्रस्ट के रिकार्ड गायब कर दिए गए । खैर । इस पर विस्तृत चर्चा फिर कभी । मेरा सुझाव केवल इतना है कि सरकार आंगनबाड़ी केन्द्रों पर और प्राथमिक तथा माध्यमिक शालाओं में पोषण आहार एवं मध्यान्ह भोजन के साथ बच्चों को चॉकलेट का भी प्रतिदिन वितरण कराने की व्यवस्था करे ताकि कोई भी बच्चा चॉकलेट के लालच में दुष्कृत्य का शिकार न हो । मैं जब महिला बाल विकास विभाग में कार्यपालिक पद पर कार्यरत था तब मैंने ये देखा कि एक आंगनबाड़ी में बच्चों की उपस्थिति औसत से अधिक रहती थी । मैंने इसका कारण जानना चाहा तो मालूम पड़ा कि आंगनबाड़ी कार्यकर्ता आंगनबाड़ी पर आने वाले हर बच्चे को अपने खर्च पर चॉकलेट देती थी । तो फिर सरकार ही क्यों न ऐसा करे ? ऐसे में बच्चे चॉकलेट के लालच में दुष्कृत्य का शिकार होने से तो बचे रहेंगे ।
विनोद कुशवाहा
एल आई जी / 85
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