*प्रसंग वश : वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल*
आज यह कालम यदि मैं लिख पा रहा हूं तो इसका श्रेय इटारसी के शासकीय कन्या महाविद्यालय को है, जिन्होंने कल इस संदर्भ में आयोजित एक संगोष्ठी में मुझे विशेष वक्ता के रूप में बुलाया। तब मैंने अपने संबोधन में कहा था कि हिंदी माध्यम से हायर सेकेंडरी बोर्ड परीक्षा मेरिट लिस्ट में आकर उत्तीर्ण करने पर, क्योंकि तब 12 वी नहीं होती थी, मेरे पिता मुझे डॉक्टर बनाना चाहते थे। मैने पी एम टी परीक्षा भी क्लियर की पर फिर मेरा इरादा बदल गया यह सोचकर कि एम बी बी एस की पढ़ाई अंग्रेजी माध्यम से करने में मुझे बहुत दिक्कत होगी। साथ ही तब देश भर में अंग्रजी हटाओ आंदोलन भी अपने अंतिम चरण में चल रहा था। एक संवेदनशील छात्र होने से इस आंदोलन का भी मुझ पर बाल्य काल से ही गहरा प्रभाव रहा। क्योंकि तब मैं भी अन्य बहुत से लोगों की तरह अंग्रेजी माध्यम से पढ़ाई को एक तरह की मानसिक गुलामी की तरह ही देखता था। वह वैश्वीकरण का दौर भी नहीं था। हालांकि मुझे तब भी अंग्रेजी विषय में भी 85 प्रतिशत अंक मिले थे,फिर भी अन्य सभी विषय तब तक हिंदी माध्यम से ही पढ़े थे। अतः अंग्रेजी का ज्ञान काम चलाऊ ही था। अंग्रेजी सुन कर बहुत कुछ समझ तो जाते थे पर उस समझे हुए को अंग्रेजी में लिख या बोल नहीं सकते थे। हालांकि मेरे ही बैच के दिवंगत डा. दीपक जैन ने यह हिम्मत की तो वे विशेषज्ञ डा. भी बन गए। पर निश्चय ही यदि उस समय एम बी बी एस की पढ़ाई यदि हिंदी में होती तो मैं भी डॉक्टर पहले बनता,लेखक या कवि या पत्रकार बाद में। मैने कालेज कार्यक्रम में यह भी कहा की मेडिकल साइंस भी मानती है कि हम जिस भी भाषा के परिवेश में रहते हैं,उसी भाषा में किसी भी विषय की उच्च स्तरीय शिक्षा या कोई शोध करें तो अधिकतम रूप से सफल होंगे। मेरे मित्र पूर्व जिला शिक्षा अधिकारी ब्रजकिशोर पटेल ने भी बड़े रोचक अंदाज में यह समझाया कि हिंदी माध्यम होने से अब मेडिकल की पढ़ाई बोझ नहीं बनेगी,बल्कि आनंद प्रद हो जायेगी,जिसके अच्छे रिजल्ट मिलेंगे। हिंदी में पढ़कर डॉक्टर बनें लोग रोगियों की शारीरिक व मानसि क पीड़ा को भी बेहतर ढंग से समझ सकेंगे व समझा भी सकेंगे। उन्होंने मेरी तरफ देखकर यह भी कहा कि यदि यह निर्णय 1980 में तब की सरकार ने कर लिया होता तो चंद्रकांत जी आज एक बड़े काबिल डॉक्टर के रूप में हमारे बीच होते। खैर।कार्यक्रम से लौटकर मैने सोचा कि इस मूवमेंट को इस अंजाम तक पहुंचाने में किसने क्या किया होगा तो मुझे खोजबीन करने से पता चला कि देश के पहले प्रदेश बने मध्यप्रदेश में हिंदी भाषा में एम बी बी एस की मेडिकल पढ़ाई प्रारंभ किए जाने के इस ऐतिहासिक पल को देने में, इसी प्रदेश के,उज्जैन जिले के खाचरोद,नागदा के मूल निवासी व अब इंदौर के हो गए, डा. मनोहर भंडारी का बड़ा व महत्वपूर्ण योगदान है। वे हिंदी पाठ्यक्रम तैयार करने वाली मध्य प्रदेश सरकार की कमेटी में भी रहे। उन्होंने कई प्रधानमंत्रियों, मुख्यमंत्रियों को इस हेतु दर्जनों पत्र भी लिखे। देश में पहली बार चिकित्सा शिक्षा की पढ़ाई हिंदी में प्रारंभ कर मध्य प्रदेश ने आज एक नया इतिहास रच दिया है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने आज भोपाल में इसका शुभारंभ करते हुए एम बी बी एस के प्रथम वर्ष की तीन पुस्तकों का लोकार्पण किया। देश को यह ऐतिहासिक पल देने में इंदौर के डा. मनोहर भंडारी का भी बड़ा व महत्वपूर्ण योगदान है। उन्होंने मध्य प्रदेश में चिकित्सा शिक्षा हिंदी में देने की लड़ाई वर्ष 1990 में प्रारंभ की थी। तब उन्होंने तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा को कहा था कि हिंदी में पढ़े-लिखे चिकित्सक तैयार कीजिए साहब, वे ही प्रदेश की हिंदी समझने वाली जनता का दुख-दर्द समझ पाएंगे। महात्मा गांधी स्मृति चिकित्सा महाविद्यालय इंदौर से सेवानिवृत्त डा. भंडारी ने वर्ष 1992 में एमडी का शोध प्रबंधन हिंदी में प्रस्तुत किया था। तब वे ऐसा करने वाले मध्य प्रदेश के पहले व देश के तीसरे व्यक्ति थे। उनकी हिंदी की एमडी थिसिस को तब देशभर में सुर्खियां मिली थी।
मध्य प्रदेश शासन ने जब हिंदी में एमबीबीएस पाठ्यक्रम लागू करने का निर्णय लिया, तो चिकित्सा शिक्षा मंत्री की अध्यक्षता में 14 सदस्यों की समिति बनाई गई। इसमें डा. भंडारी के अनुभव को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार ने उनको भी कमेटी में शामिल किया। इसी समिति ने वह पाठ्यक्रम तैयार किया, जो अब मध्य प्रदेश के चिकित्सा महाविद्यालयों में पढ़ाया जाएगा। डा. भंडारी ने कई मुश्किल अंग्रेजी शब्दों के आसान हिंदी शब्द सुझाए। डाक्टर भंडारी ने एमडी होकर एमजीएम मेडिकल कालेज में अपने दायित्व निभाते हुए शोध भी जारी रखा। उन्होंने चिकित्सा के क्षेत्र में पांच महत्वपूर्ण शोध पत्र लिखे, जो मेडिकल काउंसिल आफ इंडिया द्वारा मान्यता प्राप्त जर्नल्स में प्रकाशित हुए। वर्ष 2013 में विज्ञान व प्रौद्योगिकी विषय पर दिल्ली में हुए अंतरराष्ट्रीय विज्ञानियों के सम्मेलन में आइआइटी दिल्ली ने उन्हें एक चिकित्सा भाषा विज्ञानी के रूप में आमंत्रित किया और अपनी पत्रिका जिज्ञासा का संपादक भी बनाया था। वे शिक्षा संस्कृति उत्थान न्यास नई दिल्ली के चिकित्सा शिक्षा प्रकोष्ठ में राष्ट्रीय संयोजक होकर वर्तमान में हिंदी में चिकित्सा पढ़ाई के लिए देश भर में काम कर रहे हैं। डा. भंडारी ने 28 अक्टूबर 1990 को मप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा से चिकित्सा शिक्षा में हिंदी पाठ्यक्रम लागू करने की बात कहकर जो अभियान शुरू किया, उसे वे तत्कालीन राष्ट्रपति शंकरदयाल शर्मा, तत्कालीन मानव संसाधन मंत्री अर्जुन सिंह तक ले गए। उन्होंने अलग-अलग प्रधानमंत्रियों को दर्जनों पत्र लिखे, कई बार मंत्रियों, मुख्यमंत्रियों से भेंट की। उनके इस संघर्ष पर अटल बिहारी वाजपेयी हिंदी विश्वविद्यालय भोपाल ने मुख्यमंत्री शिवराज सिंह के हाथों 2014 में उन्हें सम्मानित भी किया। हिंदी में एमडी की थिसिस लिखने पर 1998 में उप्र के तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने उप्र हिंदी साहित्य सम्मेलन के पंडित नारायण चतुर्वेदी सम्मान से सम्मानित किया था। वर्ष 2014 में जब नरेन्द्र मोदी प्रधानमंत्री बने, तब जैन संत आचार्य विद्यासागर जी ने समय के संकेत को भांपते हुए देश में हिंदी को लेकर महत्वपूर्ण पहल की थी। उसी कड़ी में आचार्य श्री ने डा. मनोहर भंडारी व वरिष्ठ साहित्यकार तथा दूरदर्शन के पूर्व निदेशक प्रभु जोशी को नेमावर (जिला देवास) प्रवास के दौरान बुलाकर चिकित्सा शिक्षा में हिंदी पर काम करने को कहा था। उसके बाद डा. भंडारी ने काम को और गति दी व प्रधानमंत्री से लेकर सभी प्रमुख स्तरों पर चिकित्सा शिक्षा में हिंदी पाठयक्रम को लेकर पत्र लिखे, पुरजोर आवाज उठाई। पूर्व संघ प्रमुख कुप्प सी सुदर्शन ने भी डा. भंडारी के हिंदी चिकित्सा पाठयक्रम पर किए जा रहे काम को आगे बढ़ाया था। डा. भंडारी ने अब तक हजारों युवा डाक्टर तैयार किए। एमजीएम मेडिकल कालेज में वे युवा डाक्टरों को हिंदी में ही पढ़ाने का प्रयास करते थे। इसके बावजूद कि पाठयक्रम हिंदी में उपलब्ध नहीं था, वे स्वयं अंग्रेजी पाठयक्रम का हिंदी रूपांतरण करते और हिंदी के उदाहरणों से विद्यार्थियों को समझाते। इसका लाभ यह होता था कि ग्रामीण, कस्बाई या छोटे शहरों से आने वाले कई युवा डाक्टर बनने में सफल हो सके। खाचरौद नागदा जिला उज्जैन के मूल निवासी डाक्टर मनोहर भंडारी ने देश में पहली बार एमडी की थीसिस हिंदी भाषा में प्रस्तुत की थी। तब पहली बार देश में यह मामला सुर्खियों में आया था।
डाक्टर भंडारी इस मिशन में बरसों से जुड़े रहे और समय समय पर जिम्मेदारों के समक्ष इस मांग को उठाया । वे महात्मा गांधी मेडिकल कॉलेज इंदौर में बतौर सह प्राध्यापक फिजियोंलॉजी विभाग में पदस्थ रहे और इन दिनों सेवानिवृत हैं। उनके द्वारा पढ़ाए गए हजारों डाक्टर आज देश विदेश में अपनी सेवाए दे रहे हैं। उनके नाम लगभग 6 हजार डाक्टरों की फौज को खड़ी करने का रिकार्ड बताया जाता है। इन दिनों वे आरटीआई के क्षेत्र में भी एक मिशन के रूप में कार्यरत हैं। कस्बा खाचरौद के स्व. शांतिलाल भंडारी के यहां जन्मे डा. भंडारी की प्रारंभिक शिक्षा खाचरौद के शासकीय विक्रम उच्चतर विद्यालय में हुई। इस स्कूल में कक्षा 11वीं तक शिक्षा के बाद वे एमबीबीएस की शिक्षा के लिए इंदौर गए। बाद में मेडिकल के क्षेत्र में और भी उच्च शिक्षा प्राप्त की। महात्मा गांधी मेडिकल कालेज इंदौर में उन्होंने लगभग 38 वर्ष तक बतौर सहायक प्राध्यापक कार्य किया। इस दौरान हिंदी में मेडिकल पाठयक्रम के लिए लिए उन्होंने कड़ा संघर्ष किया। वे खाचरौद निवासी भाजपा के पूर्व जिला अध्यक्ष अनोखी लाल भंडारी के भाई हैं। उनके पिता स्व. शांतिलाल भंडारी किसी जमाने में कलाकंद वाले सेठ के नाम से भी जाने जाते थे।
मप्र शासन ने जब हिंदी में एमबीबीएस पाठयक्रम लागू करने का निर्णय लिया तो इसको अमलीजामा पहनाने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया। मप्र शासन चिकित्सा मंत्री की अध्यक्षता में इस समिति को बनाया गया। प्रदेश के जाने माने चिकित्सा क्षेत्र से जुडे लोगों के नाम को जब तलाशा गया तो 14 सदस्यों की कमेटी में डा.भंडारी का नाम सबसे पहले उभरकर सामने आया। इस समिति में नई दिल्ली एवं लखनऊ जैैसे शहरों के विशेषज्ञों के नाम उल्लेखनीय है। मप्र शासन कमेटी के सदस्य डा. भंडारी ने मीडिया से बातचीत में बताया कि मप्र में मेडिकल पाठयक्रम हिंदी में लागू करने के लिए वे कई दिनों से संघर्ष रत थे। शासन ने इस मामले में एक कमेटी का गठन किया जिसमें उन्हें सदस्य बनाया गया। मप्र शासन के उपसचिव चिकित्सा शिक्षा विभाग द्वारा बनाई कमेटी में उन्हें बतौर सदस्य पाठयक्रम के बारे में जिम्मेदारी सौपी गई थी। उन्होंने वर्ष 1992 में एमडी का शोध प्रबंधन हिंदी में प्रस्तुत किया था। यह कार्य मप्र का पहला एवं देश का तीसरा उदाहरण बना। हालांकि इस मिशन के लिए कड़ा संघर्ष करना पड़ा। यह मामला उस समय समूचे देश भर में सुर्खियों में आया था। इस कार्य पर आपका उतरप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन ने 31 अक्टूबर 1998 में सम्मानित किया। यह सम्मान पंडित नारायण चतुर्वेदी अभिनंदन था। इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि उत्तर प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री स्व मुलायमसिंह यादव थे। इस सौगात को लेकर जब उनसे पूछा गया कि हिंदी में मेडिकल शिक्षा से कई प्रकार की अड़चन संभव है तो उनका कहना था कि सरकार के इस निर्णय से महात्मा गांधी, महादेवी वर्मा, सूर्यकांत त्रिपाठी, जयशंकर प्रसाद आदि की आत्मा खुश हो रही होगी। उनका कहना है कि जहां तक विरोध का सवाल है गुलाम मानसिकता के लोग ऐसी आवाज उठा रहे हैं। इस पाठयक्रम से हिंदी का तो मान बढ़ेगा, साथ ही मेडिकल के विधार्थियों का भविय भी उज्जवल होगा। उनका यह भी कहना था कि ऐसे पाठयक्रम को लागू कराने के लिए उन्होंने 28 अक्टूबर 1991 को तत्कालीन प्रदेश के मुख्यमंत्री सुंदरलाल पटवा, पूर्व राष्ट्रपति स्व शंकरदयाल शर्मा, एवं मानव संसाधन मंत्री अर्जुनसिंह से भेंटकर हिंदी पाठयक्रम के लिए प्रयास किया था। पुनः इस कालम के लिए कहना चाहूंगा कि इटारसी के शासकीय कन्या महाविद्यालय ने कल मुझे इस विषय पर बोलने के लिए विशेष वक्ता के रूप में आमंत्रित किया। तो मुझमें यह जिज्ञासा जगी कि इस संबंध में हुए संघर्ष को मैं जानूं ,समझूं व अपने पाठकों तक पहुंचाऊं।
जय श्री कृष्ण।
वरिष्ठ पत्रकार चंद्रकांत अग्रवाल