ईद-उल-फितर : आपसी प्रेम और भाईचारे का त्यौहार

Post by: Manju Thakur

वैसे तो ईद की अपनी ख़ुशी है किन्तु इस वर्ष ईद का महत्व इसलिए भी बढ़ेगा क्योंकि पिछले दो साल लोगों ने कोरोना के कारण घर में रहकर ईद की नमाज अता की, लेकिन इस बार कोरोना से थोड़ी राहत मिलने के कारण लोग मस्जिदों में जाकर नमाज पढ़ेंगे और अल्लाह की इबादत करेंगे।कल यानि मंगलवार 3 मई को देश भर में ईद मनाई जाएगी। ईद का त्यौहार मुस्लिम समाज के लोगों के लिए पाक त्यौहार होता है। इस त्यौहार को मुस्लिम समाज के लोग बड़ी धूमधाम से बनाते हैं।

ईद शब्द का अर्थ

ईद : (अरबी और उर्दू : عید) यह शब्द अरबी है, उर्दू और फ़ारसी में भी ईद शब्द का ही उपयोग होता है। ईद का अर्थ हिन्दी में “पर्व” या “त्योहार” से हैं। ईद शब्द का अर्थ अरबी, उर्दू और फ़ारसी में “खुशी” या “हर्शोल्लास” के लिये किया जाता है।

कितने प्रकार की ईद

इस्लामिक कैलेण्डर के अनुसार एक साल में दो ईद आती हैं, ईद-उल-जुहा और ईद-उल-फितर। ईद-उल-फितर को मीठी ईद भी कहा जाता है। वहीं ईद-उल-जुहा को बकरीद के नाम से जाना जाता है। रमजान के 30 वें रोजे के चांद को देखकर मीठी ईद या ईद-उल-फितर मनाई जाती है। ईद को रमजान महीने के आखिरी दिन मनाया जाता है। ईद उल-फ़ित्र का त्योहार भाईचारे का संदेश देता है।

ईद का इतिहास

ईद के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि 624 ईस्वी में पहली ईद-उल-फितर या मीठी ईद मनाई गई थी।
मक्का से मोहम्मद पैगंबर के प्रवास के बाद पवित्र शहर मदीना में ईद-उल-फितर का उत्सव शुरू हुआ। माना जाता है कि पैगम्बर हजरत मुहम्मद ने बद्र की लड़ाई में जीत हासिल की थी। इस जीत की खुशी में सबका मुंह मीठा करवाया गया था, इसी दिन को मीठी ईद या ईद-उल-फितर के रुप में मनाया जाता है। तभी से ईद मनाने की परंपरा चली आ रही है।

ईद उल फितर का महत्व

ईद-उल-फितर का पर्व भाई-चारे एवं आपसी सद्भाव का त्यौहार है। इस दिन सभी लोग एक-दूसरे से गले मिल कर अथवा उपहार भेंट कर ईद मुबारक करते हैं। रमजान के माह में रोजे की समाप्ति के बाद ईद के दिन अल्लाह का शुक्रिया अदा करते हैं कि अल्लाह ने उन्हें पूरे माह उपवास रखने की शक्ति एवं संयम प्रदान किया। इस पवित्र दिन सुबह की नमाज मस्जिदों में अदा की जाती है। इसके साथ ही इस दिन गरीबों को जकात (दान) देकर ही ईद की सच्ची खुशियां प्राप्त होती हैं।

ईद का सेलिब्रेशन

इस्लाम धर्म में ईद-उल-फित्र का त्यौहार बहुत खास होता है। इस दिन घरों में तमाम किस्म के मीठे व्यंजन बनाए जाते हैं। इस दिन शिराकोरमा या कई प्रकार की सेवई आदि खाने के लजीज पकवानों को बनाया जाता है। मीठी सेवइयां घर आए मेहमानों को खिलाई जाती हैं और रिश्तेदारों आदि में बांटी जाती है। इस दिन मुस्लिम समाज के लोग सुबह उठकर मस्जिदों में अल्लाह को नमाज अता करते हैं। नमाज अता करने के बाद लोग एक दूसरे के गले मिलकर ईद की मुबारकबाद देते हैं। नमाज अता करने के बाद सभी लोग एक साथ बैठकर खाना खाते हैं। कहा जाता है कि ऐसा करने से आपसी प्रेम और भाईचारे की भावना बढ़ती है। इस दिन मुस्लिम समाज के लोग अपनी हैसियत के हिसाब जरूरतमंद लोगों को दान करते हैं। दान करने को फितरा या जकात कहा जाता है।

ईद-उल-जुहा

इसके अलावा ईद-उल-जुहा भी मनाई जाती है। इस ईद को बकरीद भी कहा जाता है। अरबी भाषा में इसका मतलब कुर्बानी होता है। मुस्लिम धर्म के लोगों के लिए यह त्यौहार बहुत महत्वपूर्ण होता है।  
इस ईद के बारे में जानकारों का कहना है कि इस दिन हजरत इब्राहिम साहब अपने बेटे की कुर्बानी देने को तैयार हो गए थे। ऐसा कहा जाता है कि अल्लाह ने उनके बेटे को जीवनदान दे दिया। तभी से हजरत इब्राहिम के पुत्र की याद में ईद का पर्व मनाया जाता है।

Leave a Comment

error: Content is protected !!