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गजल : मुहब्बत ख़ुदा है…
मुहब्बत ख़ुदा है बताना पड़ेगा,
दिलों की ये दूरी मिटाना पड़ेगा ।
सफ़र में कटी ज़िंदगी अपनी सारी,
बता ज़िंदगी , कब ठिकाना पड़ेगा ।
मज़ा उनको आता सताने में मुझको,
भला अश्क़ कब तक बहाना पड़ेगा ।
बुज़ुर्गो की सेवा से बढ़कर नहीं कुछ,
दुआ कीमती है कमाना पड़ेगा ।
नहीं आते महफ़िल में वो तो किसी की,
कसम दे के ख़ुद की बुलाना पड़ेगा ।
कहाँ तक निहारें तुम्हारी ये राहें ,
किसी को क़दम अब उठाना पड़ेगा ।
वो होते हैं ख़ुश देखकर आंसुओं को ,
हमें अब तो आँसू बहाना पड़ेगा ।
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महेश कुमार सोनी
माखन नगर
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