भारत नारियों के सम्मान का देश है। लेकिन, चंद वहशियों के कारण उसका यह तमगा इसलिए छीना जा सकता है, क्योंकि नारियों पर होने वाले अत्याचार, दैहिक शोषण और अन्य उत्पीडऩ पर समाज भी अब चुप रहता है। इस देश में नारी को पूजा जाता है। अभी नवरात्रि पर्व का माहौल है, और एक बड़ी आबादी नारी शक्ति के रूप में देवी दुर्गा, काली, सरस्वती और अन्य ऐसे ही स्वरूपों की पूजा-उपासना में लीन है। सवाल यह उठता है कि जिस देश में नारी को पूजा जाता है, वहां उसे उत्पीडऩ, शोषण और अत्याचार क्यों सहना पड़ता है। क्या यह देश अब नारी को पहले जैसा सम्मान देने की हिमायती नहीं रहा। क्या, वर्तमान की पीढ़ी नारी को केवल भोग की वस्तु समझने लगा है? यदि हां, तो फिर ये पूजा-उपासना का ढोंग क्यों, यदि नहीं तो फिर अत्याचार क्यों?
जब देश में दिल्ली की घटना ने झकझोर दिया था, फिर हैद्राबाद, हाथरस और ऐसी ही दर्जनों घटनाएं होती हैं तो मन में एक टीस सी उठती है कि आखिर नारी का जीवन कब तक खतरों से घिरा रहेगा। महिलाओं के साथ दुष्कर्म, छेड़छाड़, भूण हत्या और दहेज की ज्वाला में कब तक जलती रहेगी? कब तक उसे अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ेगा। कब तक आखिर उसकी अस्मिता को तार-तार किया जाता रहेगा? यह देश नारी की स्थिति में बदलाव कब तक कर सकेगा। नारी पर जुल्म की एक लंबी फेहरिस्त बन सकती है। न जाने कितनी महिलाएं, कब तक ऐसे जुल्मों का शिकार होती रहेंगी? कौन रोकेगा ऐसे लोगों को जो इस तरह के जघन्य अपराध करते हैं, नारी को अपमानित करते हैं।
जननी जब खुद की मर्जी से जिंदगी जीये और वह बहन हो तो भाईयों को यह नागवार गुजरता है, बूढ़ी मां बेटे-बहू के अत्याचारों से तंग होती हैं तो बहू के रूप में दहेज के दानवों से सतायी जाती हैं। नारी को स्वयं इस स्थिति से निकलना होगा। उसे पुरुष समाज को अहसास कराना होगा कि वह केवल भोग की वस्तु नहीं है। जननी है, वह है तो पुरुष हैं। नारी इस सृष्टि पर ईश्वर की बनायी सर्वोत्तम कृति है। नारी से ही सृष्टि का जन्म व पालन पोषण होता है। नारी नहीं हो तो संसार की कल्पना भी नहीं की जा सकती है। अत: केवल भाषणों में नहीं, लेखों में नहीं, दिखावों में नहीं बल्कि वास्तव में नारी का सम्मान करना होगा, वह पुरुष को पूर्ण करती है, उसके बिना पुरुष भी अधूरा है। जितना इस संसार को पुरुषों की जरूरत है, उतनी ही नारी की। ईश्वर के अर्धनारीश्वर का रूप भी हमें यही सिखाता है। भगवान भी उसके बिना अधूरे हैं, तभी कहा जाता है कि शक्ति के बिना शिव भी शव के समान हैं। शक्ति के मिलन से ही वे शिव होते हैं।