पुण्य तिथि स्मरण विशेष: जब राजेंद्र बाबू आए थे नर्मदा पुरम…

Post by: Poonam Soni

झरोखा: पंकज पटेरिया। देश के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद जी सादा जीवन उच्य विचार के समर्थक एक महान व्यक्ति थे। उनके हृदय में पुण्य सलिला माँ नर्मदा के अपार श्रद्धा भक्ति आस्था का भाव था। राजेंद्र प्रसाद को सतपुड़ा की रानीपच मंडी से भी बहुत लगाव था, इसी कारण वे ग्रीष्मकाल पुष्पो और प्रापतो की नगरी हिल स्टेशन पचमढ़ी में व्यतीत करते थे। उनकी स्मृति अक्षुन्य रखने के लिए प्रदेश शासन ने एक स्थान का नाम राजेंद्र गिरी रखा है। राजेंद्र बाबू अध्ययन चिंतन मनन मे अपना समय बिताते। नर्मदा पुरम होशंगाबाद आते माँ नर्मदा जी के दर्शन स्नान करते, ओर प्राचीन नर्मदा मन्दिर बैठ अपलक नर्मदा मइया को निहारते रहते। लगता माँ रेवा से मन्हु मन्हू संवाद कर रहे। नर्मदा मन्दिर के मुख्य अर्चक पंडित गोपाल प्रसाद खद्दर बताते है राजेंद्र बाबू घंटो मन्दिर मै बैठ उनके पिताजी दादा के साथ बैठ राज राजेश्वरी नर्मदा की महिमा की चर्चा करते थे। बताते है राजेंद्र प्रसाद जी के एक बार नगर आगमन पर प्रमुख शिक्षा विद एडवोकेट पंडित राम लाल शर्मा (कक्का जी) ने जो हमारे विधायक पूर्व विधान सभा अध्यक्ष डाक्टर सीतासरन शर्मा के पिता थे, नागरिकों के साथ राजेंद्र बाबू से भेंट कर नर्मदा के टूटफुट रहे घाटों की स्थिति से अवगत करा मरम्मत आदि का अनरोध किया था। राजेंद्र प्रसाद जी बहुत ध्यान से सारी बाते सुनकर तात्कालिक लोक निर्माण मंत्री बाबू मथुरा प्रसाद दुबे, (विधान पुरुष) को पत्र लिख कर तत्काल मरम्मत के निर्देश दिए। उसके बाद अविलंब घाटों की मरम्मत प्रदेश शासन ने करवाई थी।

विशुद्ध गांधी वादी चिंतक और बापू के आदर्श पर चलने वाले राजनीति नभ के ऐसे उज्जवल नक्षत्र थे, जिनके प्रभा मंडल से अच्छे-अच्छे राजनेता प्रभावित होकर न केवल सम्मान करते, बल्कि राजनेतिक उलझनों ओर देश के विकास प्रगति के लिए मार्ग दर्शन लेते थे। बहुत सादा मोटी खादी धोती, कुर्ता, उनकी प्रिय पोशाक थी। सकीरण विचार धारा उपर विराट दृष्टि रखने वाले महापुरुष थे। उसका यह एक उदाहरण पर्याप्त है। वे जात-पात के घोर विरोधी थे। यह उन्होंने खुद पर लागू किया, विहार के कायस्थ होने के बाद उन्होंने जाती सूचक सरनेम हटा दिया था। इसी लिए विभिन्न जाति लोग प्रेम सदभाव से राष्ट्रपति भवन सेवा करते थे। राजेंद्र बाबू के प्रति समान स्नेह भाव रखते थे। मात्र एक रुपए बतौर वेतन लेते थे।उच्य शिक्षा दीक्षा के बाद सुख सुविधा एश्वर्य की आकांक्षा नहीं की बल्कि सघर्ष की राह चु नी राष्ट्र पिता महात्मा गांधी के आव्हान पर आजादी के आंदोलन मे कुद गए, भारी दुख तकलीफ उठाई, अनेक बार जेल यात्रा की। जीवनभर बापू के मार्ग पर चलते हुए राष्ट्र की सेवा करते रहे। ऐसे साधु संत प्रकृति के महापुरुष की पुण्य स्मृति (28 फ़रवरी) में शत शत नमन।

pankaj pateriya

पंकज पटेरिया, संपादक शब्द ध्वज
9407505691,9893903003 होशंगाबाद

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