स्कंद षष्ठी व्रत 2023 (Skanda Shashthi Vrat 2023)
Skanda Shashthi Vrat 2023 : हिन्दू पंचांग के अनुसार, प्रतिमाह शुक्लपक्ष के षष्ठी तिथि को स्कंद षष्ठी आती है। लेकिन आषाढ़ माह में पढ़ने वाली स्कंद षष्ठी व्रत का विशेष महत्व होता है। स्कंद षष्ठी को संतान षष्ठी या कांड षष्ठी भी कहा जाता है। यह व्रत हिन्दू धर्म में संतान प्राप्ति और संतान सुख प्राप्ति के लिए किया जाता है।
ऐसा माना जाता है कि इस दिन ही भगवान स्कंद (कार्तिकेय) का जन्म हुआ था। इस दिन भगवान शिव और माता पार्वती के पुत्र श्री स्कंद (कार्तिकेय) की पूजा की जाती है।
मान्यताओं के अनुसार जो भी पूर्ण श्रृद्वा भाव से इस दिन व्रत रखकर विधि-विधान से पूजा करता हैं। उन्हें संतान सुख और बच्चों के खुशहाल और स्वस्थ जीवन मिलता है।
स्कंद षष्ठी व्रत शुभ मुहूर्त 2023 (Skanda Shashthi Vrat shubh muhurat 2023)
- इस माह यह व्रत 24 जून 2023 दिन शनिवार को किया जाएगा।
- स्कंद षष्ठी प्रारंभ : 23 जून 2023 को शाम 7 बजकर 54 मिनट पर
- स्कंद षष्ठी समाप्त : 24 जून 2023 को रात 10 बजकर 17 मिनट पर
स्कंद षष्ठी व्रत का महत्व (Skanda Shashthi Vrat Importance)
हिन्दू धर्म में स्कंद षष्ठी का महत्व अधिक महत्व माना जाता हैं। मान्यताओं के अनुसार स्कंद षष्ठी (Skanda Shashthi Vrat 2023) के दिन व्रत और पूजा करने से संतान पर आए सभी कष्ट दूर हो जाते हैं। जिन्हें संतान न हो उन्हें संतान प्राप्ति का सुख मिलता है। और भगवान कार्तिकेय उन्हें हमेशा दुख और दरिद्रता से दूर रखते हैं।
स्कंद षष्ठी व्रत पूजा विधि (Skanda Shashthi Vrat Pujan Vidhi)
- स्कंद षष्ठी व्रत (Skanda Shashthi Vrat 2023) के दिन प्रात: जल्दी उठकर स्नान आदि से निवृत्त होकर स्वच्छ वस्त्र धारण करना चाहिए।
- इसके बाद सूर्य देव को प्रमाण कर जल चढ़ाते हुए व्रत का संकल्प लें।
- इसके बाद घर के मंदिर में भगवान कार्तिकेय के साथ भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा को स्थापित करें।
- इसे बाद घी का दीपक जलाएं। और उन्हें चंदन, अक्षत, पुष्प कलावा आदि चढ़ाएं।
- इसके बाद भगवान को भोग लगाकर स्कंद षष्ठी की कथा पढ़ें या सुनें। अंत में आरती करें।
- इसके बाद ब्राम्हण को भोजन कराएं और दान-दक्षिणा दें।
- शाम को इस विधि से एक बार फिर पूजा करें।
स्कंद षष्ठी व्रत कथा (Skanda Shashthi Vrat Katha)
पौराणिक कथा के अनुसार स्कंद षष्ठी के दिन ही भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ था। तब माता पार्वती ने यज्ञ कुंड में कूदकर खुद को भस्म कर लिया था। तब भगवान शिव विलाप करते हुए तपस्या में लीन हो गए थे। इस बात का फायदा उठाते हुए दैत्य तारकासुर ने चारों ओर आतंक मचा रखा था।
सभी देवी देवता तारकासुर के अत्याचारों से काफी परेशान थे। तब ब्रह्मा जी ने कहा था कि तारकासुर का वध शिव जी के पुत्र के हाथों ही होगा। इसके बाद सभी देवी देवता भगवान शिव के पास पहुंचे। महादेव ने माता पार्वती की तपस्या से प्रसन्न होकर उनसे विवाह कर लिया था।
जिसके बाद भगवान कार्तिकेय का जन्म हुआ। तारकासुर का वध करके कार्तिकेय जी ने सभी देवी देवताओं को उसके अत्याचारों से मुक्त कराया था।
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