विशेष : आंचल में खेलने वाले बच्चों को न पाकर मां मायूस है

Post by: Manju Thakur

होशंगाबाद। मां मायूस है। उसको वे बच्चे दिखाई नहीं दे रहे, जो उसके आंचल के साये में खेला करते थे, हर रोज उसके पास आशीर्वाद पाने के लिए आते और नतमस्तक होकर अपने को धन्य करते थे। कोरोना संकट के काल में अब भी बच्चे तो आना चाहते हैं, लेकिन नियमों में बंधे होने के कारण वे चाहकर भी मां के दर्शन करने नहीं आ पा रहे हैं। मां के आंचल आंचल का सानिध्य पाने को बेताब तो हैं, लेकिन मजबूर भी।
हम बात कर रहे हैं, मां नर्मदा (Maa Narmada) की। उसके बच्चे जो मां के भक्त बनकर हर रोज आते थे, दर्शन करके शीश झुकाते थे, वे अब दिखाई नहीं दे रहे हैं। कोरोना का संकट अब मां के आंचल (सेठानी घाट (Sethani Ghaat) सहित अन्य सभी घाट) पर भी भारी पड़ रहा है। लेकिन, कहावत है न, कि संकट की घड़ी में धैर्य से काम लेकर वक्त का अनुकूल होने का इंतजार करना चाहिए। मां और उसके बच्चे भी इन दिनों यही कर रहे हैं। वे इस संकट के निकलने और फिर से मां के सानिध्य को पाने का इंतजार कर रहे हैं। मां मायूस जरूरी है, नाउम्मीद नहीं है। मां के दर पर भक्तों के भरोसे रोजी-रोटी चलाने वाले भी पहले जितना धंधा नहीं होने से निराश हैं।

सभी घाटों पर है सन्नाटा
वैश्विक महामारी के असर से प्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा नदी (Narmada River) के किनारे बसा होशंगाबाद (Hoshangabad) शहर भी इससे अछूता नहीं रहा। वैसे तो होशंगाबाद में करीब 16 घाट हैं, जिन पर लगभग सैकड़ों मंदिर बने हुए हैं। लेकिन अब इन सभी घाटों पर सन्नाटा पसरा हुआ है। कोविड-19 (Covid-19) के कारण प्रशासन ने सभी घाटों पर स्नान के लिए रोक लगा दी है। हर-हर नर्मदे के जयकारों से सदैव गूंजने वाला नर्मदा का सेठानी घाट भी वीरान हो गया है। सेठानी घाट पर छोटे-बड़े करीब 20 प्राचीन मंदिर हंै, इतनी ही दुकानें बाहर लगी हैं। श्रद्धालुओं की संख्या में कमी से दुकानदारों के परिवारों का भरण पोषण मुश्किल हो गया है।

बमुश्किल एक सैंकड़ा ही आते
महामारी के पहले इन सभी घाटों पर हर रोज हजारों की संख्या में श्रद्धालु मां नर्मदा के दर्शन के लिए पहुंचते थे। वहीं तीज त्यौहारों पर तो लाखों की तादात में श्रद्धालु मां नर्मदा के दर्शन, स्नान आदि करने के लिए आते थे। लेकिन कोरोना काल ने सब कुछ बदल कर रख दिया। अब इन घाटों पर दिनभर में सौ, सवा सौ ही श्रद्धालु पहुंचते हैं। इसका सबसे ज्यादा असर स्थानीय दुकानदारों की रोजी रोटी पर पड़ा है। श्रद्धालु प्रसाद लेते हैं तो उनकी रोजी रोटी चलती है। अब दुकानदार अधिकांश समय खाली बैठते हैं। दुकानदारों का कहना है कि लॉकडाउन के पूर्व यहां हर दिन हजारों श्रद्धालु आते थे। जिससे उनकी अच्छी खासी कमाई हो जाती थी। लेकिन अब उनका दिनभर में 100 रुपये का धंधा करना भी मुश्किल हो गया है। जिससे परिवारों के सामने आर्थिक तंगी की नौबत आ गई है। नर्मदा का सेठानी घाट पर दूर-दूर से परिक्रमावासियों का आना लगा रहता था। लेकिन अब कुछ ही संख्या में परिक्रमावासी देखने को मिल रहे हैं। उनका गुजारा भी श्रद्धालुओं के दान से चलता था, अब आसपास से भिक्षा मांगकर काम चलाना पड़ रहा है।

इनका कहना है…!

लॉकडाउन से पहले अच्छी खासी कमाई हो जाया करती थी। लेकिन अब मुश्किल से सेठानी घाट पर दिनभर में 50- 60 लोगों ही पहुंचते हैं। ऐसे में 150 रुपये तक का ही धंधा नहीं हो पाता है, जिसके कारण परिवार चलाने में बहुत परेशानियां हो रही है।
गुलाब साहू, दुकानदार (Gulab Sahu)

पहले अच्छी खासी बिक्री होती थी, दिनभर में 600 से 800 रुपये तक कमा लिया करते थे। लेकिन अब बड़ी मुश्किल से 150 से 200 रुपये ही कमा पाते हैं। महामारी के कारण कोई भी ग्राहक नहीं आ रहे हैं।
गौतम सोनी, दुकानदार (Goutam Soni)

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