– विनोद कुशवाहा :
म प्र के लगभग पांच लाख अधिकारियों – कर्मचारियों के लिये ये सुकून भरा समाचार हो सकता है कि उनको पदोन्नति के बावजूद अपने सेवाकाल में ही समयमान वेतनमान का लाभ मिलता रहेगा। सरकार ने इस हेतु नए नियम भी जारी कर दिए हैं। मगर इस खुशी में शासकीय अधिकारी – कर्मचारी न तो सरकार द्वारा महंगाई भत्ते पर लगाई गई रोक को भूले हैं और न ही वार्षिक वेतन वृद्धि को भुला पाए हैं। पिछले दिनों भोपाल में ‘ अखिल भारतीय राज्य सरकारी कर्मचारी महासंघ ‘ ने भी उपरोक्त मांगों के समर्थन में ” सत्याग्रह ” किया था।
उप चुनावों के पूर्व अन्य कर्मचारी संगठन भी अपनी- अपनी मांगों को लेकर धरना प्रदर्शन कर सकते हैं। महाविद्यालयीन अतिथि शिक्षक , शालेय अतिथि शिक्षक, संविदा शिक्षक, शिक्षक, आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, ग्राम रोजगार सहायक, व्याख्याता/ प्राचार्य से लेकर डिप्लोमा इंजीनियर्स के संगठनों ने म प्र सरकार की कर्मचारी विरोधी नीतियों की खिलाफत करने के लिए कमर कस ली है। ‘ इंडियन पब्लिक सर्विस एम्प्लाईज फेडरेशन ‘ ( इप्सेफ ) के आव्हान पर भोपाल में तो कर्मचारियों ने 14 अगस्त को ” अधिकार दिवस ” मनाया। इस अवसर पर ‘ एक देश एक वेतनमान ‘ एवं अन्य भत्तों सहित कर्मचारियों को समस्त सुविधाएं देने की मांग की गई। साथ ही कर्मचारियों ने सरकार को ये अल्टीमेटम भी दे दिया कि यदि उनकी मांगें पूरी नहीं की गईं तो शीघ्र ही आंदोलन किया जाएगा। विधानसभा के पावस सत्र में विपक्ष भी जोर – शोर से कर्मचारियों की इन मांगों की ओर शासन का ध्यान आकर्षित कर सकता है।
उल्लेखनीय है कि कोरोना काल में मध्य प्रदेश शासन के प्रत्येक विभाग के अधिकारी – कर्मचारियों ने अपनी जान हथेली पर रखकर सौंपे गए दायित्वों का बेहद ईमानदारी से निर्वहन किया है। इस सबका इनाम उन्हें ये मिला कि सरकार ने न केवल उनको दिए जाने वाले मंहगाई भत्ते (D A) पर रोक लगा दी बल्कि उनकी वार्षिक वेतन वृद्धि भी नियमित रूप से स्वीकृत किये जाने के बजाय ” काल्पनिक रूप ” से स्वीकृत किये जाने का तमाशा दिखाया । रोना वही कि पैसा नहीं है। तो ये रोना तो कमलनाथ भी रोते थे कि – खजाना खाली मिला है। ‘शिवराज सरकार’ को पैसे की क्या कमी है जबकि केंद्र में भी उनकी सरकार है। अन्य कामों के लिए तो पैसा है पर कर्मचारियों पर खर्च करने के नाम पर ठन – ठन गोपाल। उनको समयमान वेतनमान की लॉलीपॉप पकड़ा दी , हो गए फुरसत।
कर्मचारियों के साथ हुए इस अन्याय को पूर्व मुख्यमंत्री कमलनाथ ने भी महसूस किया। उन्होंने तत्काल मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को पत्र लिखकर कर्मचारियों के रोके गए लाभों के बिना किसी देरी के भुगतान की मांग की है। ये अक्ल उनको भी इसलिये आई है क्योंकि उपचुनाव सर पर खड़े हैं । बिना अधिकारी – कर्मचारियों के सहयोग के कोई भी पार्टी चुनाव जीतने का दावा नहीं कर सकती क्योंकि करीब प्रदेश में पांच लाख अधिकारी – कर्मचारी हैं । उनके पीछे उनका अपना परिवार भी खड़ा है। इसलिये कर्मचारियों की सहानुभूति पाना कांग्रेस के लिए भी जरूरी है।
ज्ञातव्य है कि कमलनाथ सरकार ने तो फिर भी कर्मचारियों को पांच प्रतिशत महंगाई भत्ता देने का फैसला किया था मगर शिवराज सरकार को ये भी रास नहीं आया। उन्होंने आते ही से कमलनाथ सरकार के इस निर्णय पर रोक लगा दी। इतना ही नहीं शिवराज सिंह की नई सरकार ने तो इससे भी एक कदम आगे बढ़कर शासकीय अधिकारी – कर्मचारियों को दिए जाने वाले सातवें वेतनमान के एरियर की अंतिम किश्त भी रोक ली। यहां तक कि कतिपय विभागों में कर्मचारियों के वेतन में पचास प्रतिशत तक की कटौती की गई। उधर दूसरी तरफ दल बदलू मंत्रियों के क्षेत्र में करोड़ों के काम स्वीकृत हो रहे हैं ।
‘नर्मदांचल’ भी मध्यप्रदेश के शासकीय अधिकारी – कर्मचारियों के हित में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से ये विनम्र अनुरोध करता है कि वे प्राथमिकता के आधार पर कर्मचारियों की मांगों पर सहानुभूतिपूर्वक विचार करते हुए तत्काल फैसला लेकर “कोरोना वारियर्स” को खुश होने का एक अवसर दें। अन्यथा उपचुनाव में इसका प्रतिकूल असर पड़ने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता।
विनोद कुशवाहा
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