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बहुरंग: अकेला चला था मैं…

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– विनोद कुशवाहा :  इटारसी की युवा पीढ़ी के साहित्यकारों में उन दिनों एक नाम बहुत तेजी से उभरा। वह नाम था रवि पांडे का जो  ‘अकेला’  उपनाम से लिखा करते थे।

                       निजी ज़िंदगी में भी वे अपने आप को बेहद अकेला महसूस करते थे । मगर उन्होंने इस अकेलेपन को अपनी रचनाओं पर हावी नहीं होने दिया ।
                        रवि भाई एक संजीदा इन्सान थे । उनकी सृजनात्मकता के अलावा रवि पांडे की कुछ विशेषतायें थीं जो उन्हें औरों से अलग करती थीं । भीड़ में भी आप उन्हें अलग से पहचान सकते थे।
                       रवि भाई कभी बालों को कंघी से नहीं संवारते थे । उन्होंने अपने छोटे से जीवन में कभी रंग बिरंगे कपड़े नहीं पहने । वे हमेशा सफेद कपड़े ही पहनते थे । उन दिनों बंबई वाली चाल में रहने वाले बम्बई वाले सेठ ही एकमात्र व्यक्ति थे जो न केवल सफेद कपड़े पहनते थे बल्कि उनके जूते भी सफेद ही रहते थे । हाथ में हमेशा सफेद सिगरेट रहती थी।
                   … लेकिन रवि पांडे से उनका कोई मुकाबला नहीं था क्योंकि सफेद पेंट शर्ट पहने रवि भाई चप्पल चटकाते हुए चलते थे । उन्होंने कभी पान सिगरेट को हाथ तक नहीं लगाया। इसके बावजूद उनको हीमोफीलिया नामक जान लेवा बीमारी हो गई । जिसमें जरा सी भी चोट लगने पर उनके शरीर में ब्लड के क्लॉट बन जाते थे।
                       रवि पांडे को क्रिकेट का बहुत शौक था । क्रिकेट कॉमेंट्री के तो वे दीवाने थे । किंतु हीमोफीलिया  के कारण स्वयं कभी क्रिकेट नहीं खेल पाए।
                    रवि भाई की मृत्यु भी एक दुर्घटना में हुई । हुआ यूं कि वे छत पर टी वी का एंटीना सुधार रहे थे । उसी दौरान उनका गिरना हुआ और रवि पांडे चोटग्रस्त हो गए । बस यही उनकी मृत्यु का कारण बना ।
                    अब बात करें रवि पांडे ‘अकेला ‘ की सृजनात्मकता की । वे मूलतः व्यंग्यकार थे । उन्होंने क्षणिकाएं भी लिखीं । ‘ साप्ताहिक युवा प्रवर्तक ‘ में तो रवि भाई एक स्तम्भ ही लिखा करते थे । सामाजिक विसंगतियों पर उनके तीखे प्रहार से राजनेता तिलमिला जाते । इसके चलते कई बार उन्हें इटारसी से स्थानांतरित भी किया गया परन्तु वे कभी इससे घबराए नहीं । उन्होंने अपना लेखन जारी रखा और व्यवस्था के खिलाफ उनका संघर्ष भी जारी रहा । ज्ञातव्य है कि रवि पांडे मध्यप्रदेश विद्यु-त मंडल MPEB में कार्यरत थे ।
                    सीहोर स्थानांतरित किये जाने के बाद तो उनकी तबियत ज्यादा बिगड़ गई । मैंने उन्हें हमीदिया हॉस्पिटल में एडमिट कराया और उनके स्वस्थ होते  ही उनको सीहोर से सामान सहित इटारसी ले आया । बाद में जैसे – तैसे रवि भाई का स्थानांतरण भी इटारसी हो गया । खैर ।
                       रवि पांडे ‘ अकेला ‘  ” मानसरोवर साहित्य समिति “से भी जुड़े हुए थे और संस्था की गतिविधियों में हमेशा सक्रिय रहते थे । इसके अतिरिक्त नगर की साहित्यिक यात्रा में भी उनका उल्लेखनीय योगदान रहा । वे साहित्यिक संस्था ‘दस्तक’ में भी शामिल थे जिसका मैं अध्यक्ष था।
                      शहर में होने वाली गोष्ठियों की रवि भाई शान हुआ करते थे । उनके बिना कोई भी काव्य गोष्ठी अधूरी रह जाती।
                     चंद विघ्नकारी तत्वों के कारण उभर आई गुटबंदी के चलते नगर में गोष्ठियों का दौर तो खत्म हो गया लेकिन रवि पांडे ‘ अकेला ‘ को ये शहर कभी नहीं भूल पाएगा । आज वे होते तो इस छल , कपट , ईर्ष्या , द्वेष का डटकर मुकाबला करते । ये भी सम्भव था कि इन बाहरी व्यक्तियों और स्वयम्भू मठाधीशों द्वारा उनको हाशिये पर ढकेल दिया जाता । तब वे बेहद दुखी होते। व्यथित होते।
                      आप हमेशा याद आयेंगे रवि भाई । हम आपको कभी नहीं भूल पाएंगे । आज भी आपकी जरूरत महसूस होती है।
vinod kushwah
विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)
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