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बहुरंग: संघर्ष के पर्याय सीबी काब्जा

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विनोद कुशवाहा/ विगत् कुछ दिनों में हमारे कितने ही अपने हमें हमेशा-हमेशा के लिए छोड़कर चले गए। उनमें एक शख्स तो सारे शहर को वीरान कर गया। जी हां आप ठीक समझे। मैं बात कर रहा हूं सीबी काब्जा की। बहुत से लोग न भी जानते हों उनका पूरा नाम था चतुर्भुज काब्जा। हरदा जिले के एक छोटे से गांव में काब्जा जी का जन्म एक बहुत ही गरीब दलित परिवार में हुआ था। उनके जन्म के पहले काब्जा जी के माता-पिता अपने कुछ बच्चों को खो चुके थे। सो उनकी माँ ने उनके लिए एक टोटका करते हुए उन्हें गोद से उतारकर घूड़े पर रख दिया। परिणाम यह हुआ कि उनको कभी किसी की नजर भी नहीं लगी बल्कि हुआ यूं कि वे सबकी नजरों के तारे बन गए। अन्यथा उनको नजर लगने के अवसर कुछ ज्यादा ही थे क्योंकि भले ही उनका जन्म दलित परिवार में हुआ था परंतु कद, काठी, वर्ण, कर्म से वे किसी भी ठाकुर ब्राह्मण से कम नहीं ठहरते थे। ये एक अलग बात है कि उन्हें बाल्यकाल से अस्पृश्यता-छुआछूत जैसी बुराईयों का सामना करना पड़ा। यहां तक कि इस छोटे से चतुर्भुज को अपने विराट स्वरूप लिए चतुर्भुज भगवान का दर्शन भी मंदिर के बाहर से ही करना पड़ता था। इस सबने उनके बाल मन पर गहरा असर डाला। उन्हें इतना तो समझ आ गया कि आगे बढ़ने के लिए संघर्ष के अलावा कोई और रास्ता नहीं है। उन्होंने संघर्ष किया भी। ऐसा संघर्ष जिसका सामना करना तो दूर उसके विषय में हम सोच भी नहीं सकते। ट्रेन में चने बेचने से लेकर बूट पालिश करने तक का संघर्ष उनके हिस्से में आया। बस यहीं से शुरुआत हुई चतुर्भुज काब्जा के सी बी काब्जा बनने की।

अंततः उन्होंने समाज की मुख्य धारा में शामिल होकर कुप्रथाओं के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। यह गांधी का युग था सो वे भी गांधी जी की विचार धारा से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके। हरदा में उनको स्वतंत्रता संग्राम सेनानी महेशदत्त जी मिश्र का साथ मिला। मोदी जी का स्वच्छता अभियान तो हम आज देख रहे हैं। काब्जा जी ने मिश्र जी के नेतृत्व में सफाई अभियान में भाग लेते हुए सर पर मैला तक ढोया। महेशदत्त जी मिश्र की पुस्तक में इस घटना का ससम्मान उल्लेख किया गया है।

इस सबके बावजूद उनका अध्यनन बदस्तूर जारी रहा। उन्होंने एम.ए. हिंदी में करने के साथ-साथ अपने प्रिय विषय समाजशास्त्र में भी स्नातकोत्तर परीक्षा उत्तीर्ण की। बाद में रेलवे स्कूल में अध्यापन करते हुए वे प्राचार्य पद तक पहुंचे लेकिन उन्होंने प्रिंसिपल बनने की अपेक्षा अध्यापन को ही प्राथमिकता दी। खंडवा, इटारसी, जबलपुर जैसे शहर उनकी कर्मभूमि रहे मगर उनके सेवाकाल का अधिकांश समय इटारसी में ही व्यतीत हुआ। उनके पढ़ाये हुए विद्यार्थियों में विपिन पंवार जैसी शख्सियत भी हैं जो आज दिल्ली के रेलवे बोर्ड में निदेशक, राजभाषा जैसे महत्वपूर्ण पद पर अपनी सेवायें दे रहे हैं।

अपनी सहजता, सरलता, आत्मीयता, अपनत्व के चलते काब्जा जी के सम्बन्ध सर्व व्यापक थे। सर्वश्री स्व समीरमल गोठी, शिखरचंद जैन, टी आर चोलकर, हमीर सिंह बघेल, अरविंद वीरानी, अजातशत्रु, कैलाश मंडलेकर, दिनेश द्विवेदी, स्व. डॉ. बीडी तिवारी, डॉ. ज्ञानेन्द्र पांडे, डॉ. विनोद सीरिया, अशोक सक्सेना, बीके पटेल, देवेन्द्र सोनी से लेकर युवा पत्र लेखक मंच के अध्यक्ष राजेश दुबे तक उनके संबंधों के दायरे में थे।

साहित्य से समाज सेवा जैसे विभिन्न क्षेत्रों में काब्जा जी जीवन पर्यंत सक्रिय रहे। इस शहर ने उनको उतना सम्मान भी दिया। विपिन जोशी स्मारक समिति, मानसरोवर साहित्य समिति, संकल्प आदि संस्थाओं ने शिक्षा एवं साहित्य के क्षेत्र में उनके उल्लेखनीय योगदान के लिए उन्हें समय-समय पर सम्मानित किया।
इतना ही नहीं भाई विपिन पंवार ने तो उप महाप्रबंधक, राजभाषा, रेलवे के पद पर रहते हुए भी उन पर लिखने के लिए समय निकाला। उनके नवीनतम कथा संग्रह ‘पीली रोशनी का समन्दर’ में’ इस रिश्ते को क्या नाम दूं’ कहानी काब्जा जी पर ही केन्द्रित है।

मानसरोवर साहित्य समिति ने भी उनकी प्रकाशित पुस्तकों में से कतिपय किताबों के प्रकाशन में सहयोग दिया है। जिनमें उनकी आत्मकथा ‘मेरा संघर्ष’ प्रमुख है। उनकी अन्य प्रकाशित पुस्तकों भावनाओं का ताप, जाति धर्म के दंश, भाई लोग आदि ने उन्हें हिंदी साहित्य जगत में स्थापित ही नहीं किया बल्कि उन्हें चर्चा में ला दिया।

उनके लेखन का सार बस इतना ही था कि व्यक्ति जो कुछ भी हो उसे वैसा ही दिखना भी चाहिये। वैसा ही होना भी चाहिए। चाहे वह कवि ही क्यों न हो। आप स्वयं भी वैसे ही तो थे सर। हरदा उनके हृदय में बसा था लेकिन सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने हमेशा के लिए बसने हेतु इटारसी को ही चुना। परिस्थितियों पर यदि उनका वश होता तो वे शायद हरदा में बसना पसन्द करते। सम्भव है कि उन्होंने अपनी टूटती सांसों के बीच हरदा को ही बेहद शिद्दत से याद किया हो।

कतिपय विघ्नसंतोषी लोगों ने इटारसी की निरन्तर, अनवरत्, अविरल बहने वाली साहित्य की रसधारा में जहर घोल दिया है किंतु विषपान करने वाले शिव अब नहीं हैं। सीबी काब्जा हमारे बीच नहीं हैं लेकिन हमारी स्मृतियों में वे हमेशा मौजूद रहेंगे। जो बीत गया है वो दौर न आएगा पर हम आपको कभी नहीं भूल पाएंगे सर, आप हमेशा याद आयेंगे।

vinod kushwah

विनोद कुशवाहा (Vinod Kushwaha)

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