होली विशेष: पंकज पटेरिया/ आपसी भाईचारे सदभाव प्यार मोहब्बत का अदभुत महापर्व है, रसरंग,मौज, मस्ती भीगा होली का त्यौहार। घर आंगन बरसते रंग गुलाल के बादल एक बिरादरी, एक संप्रदाय और एक धर्म। कोई जात-पात, ऊंच-नीच का चक्कर नहीं। सब एक धुन लय मिजाज में भीगे महके झूमते इस पवित्र प्रेम पर्व को जीवंत करते। यही हमारी गौरवमई विरासत, परंपरा है। आपसी सदभाव सौहाद्र इस रसरंग भरे भारतीय पर्व की आत्मा है। यही हमारी संस्कृति संस्कार, वसुधैव कुटुंबकम वाला चिंतन है, दर्शन है।
राम, रहीम, अल्फ्रेड, जोगेंदर एक लय हो जाते। और एक रंग एक रूप हो जाते कुर्ता शेरवानी।
नजमा, नीलम, गुजिया, पपड़ियां की प्लेट लिए एक दूसरे के घर दावत का लुत्फ उठाती झूमती गाती धमाचौकड़ी करती डोलती। यही हमारा फलसफा है, यही हमारी ताकद जो हर हालातो में हमारा हौसला ऊंचा रखता विश्व दृष्टि को अचंभित कर देता है। यह ठीक है कि आज की भागमभाग भरी मशीनी दिनचर्या में समय ने हमे बांध दिया है, लेकिन हमारी आपसदारी प्यार उत्साह मे कहीं कोई कमी नहीं। यही जज़्बा सदा हमे दिल से बांधा है। यह ईश्वर की महान कृपा है। विश्व व्यापी आपदा के दौर में हम नियम कायदों का पालन करते हुए पावन मनभावन, महापर्व का स्वागत करे। रसीली रंगीली संदली स्मृतियों को ताजा करे। यही समय धर्म और पर्व की सार्थकता है।
रंग ओर गुलाल में डूबा होगा सारा गांव
आंगन आंगन ठुमके होगे जोडी जोडी पांव संदली देह पर छुअन छंद सी
स्मृति बज गई होगी, तुम कुछ और और हो गई होगी
अपनी इन्हीं गीत पंक्तियों के साथ होली के महापर्व की मंगल कामनाएं।
पंकज पटेरिया, वरिष्ठ पत्रकार/कवि
संपादक. शब्दध्वज, मो. 9893903003